गिद्ध
कम हो गये हैं
दिखते ही नहीं
आजकल
आकाश में भी
दूर उड़ते हुऐ
अपने डैने
फैलाये हुऐ
जंगल में पड़ी
जानवरों
की लाशें
सड़ रही हैं
सुना जा रहा है
गिद्धों
के बहुत
नजदीक
ही कहीं
आस पास में
होने का
अहसास
बढ़ रहा है
कुछ
नोचा जा रहा है
आभास हो रहा है
अब
किस को
क्या दिखाई दे
किस को
क्या सुनाई दे
अपनी अपनी
आँखें
अपना अपना
देखना
अपने अपने
भय
अपना अपना
सोचना
किसी ने
कहा नहीं है
किसी ने
बताया नहीं है
कहीं हैं
और बहुत ही
पास में हैं
बहुत से गिद्ध
हाँ
थोड़ा सा साहस
किसी ने
जरूर बंधाया
और समझाया
बहुत लम्बे समय
तक नहीं रहेंगे
अगर हैं भी तो
चले जायेंगे
जब निपट
जायेंगी लाशें
इतना समझा
ही रहा था कोई
समझ में आ
भी रहा था
आशा भी कहीं
बंध रही थी
अचानक
कोई और बोला
गिद्धों
को देख कर
नये सीख रहे हैं
गिद्ध हो जाना
ये चले भी जायेंगे
कुछ दो चार सालों में
नये उग जायेंगे गिद्ध
नई लाशों को
नोचने के लिये
आकाश में कहीं
उड़ते हुऐ पक्षी
तब भी नजर
नहीं आयेंगे
लाशें तब भी
कहीं नहीं दिखेंगी
सोच में दुर्गंध की
तस्वीरें आयेंगी
आज की तरह ही
वहम अहसास
आभास सब
वही रहेंगे
बस
गिद्ध तब भी
उड़ नहीं
रहे होंगे कहीं
किसी भी
आकाश में ।
चित्र साभार: www.pinstopin.com
कहाँ हो गुरु
दिखाई नहीं
देते हो
आजकल
कहाँ रहते हो
क्या करते हो
कुछ पता
ही नहीं
चल पाता है
बस दिखता है
सामने से कुछ
होता हुआ जब
तब तुम्हारे और
तुम्हारे गुरुभक्त
चेलों के आस पास
होने का अहसास
बहुत ही जल्दी
और
बहुत आसानी
से हो जाता है
एक जमाना था गुरु
जब तुम्हारे लगाये
हुऐ पेड़ सामने से
लगे नजर आते थे
फल नहीं
होते थे कहीं
फूल भी नहीं
तुम किसी को
दिखाते थे
कहीं दूर
बहुत दूर
क्षितिज में
निकलते हुऐ
सूरज का आभास
उसके बिना
निकले हुऐ ही
हो जाता था
आज पता नहीं
समय तेज
चल रहा है
या
तुम्हारा शिष्य ही
कुछ धीमा
हो गया है
दिन ही होता है
और रात का
तारा निकल
बगल में
खड़ा हो कर
जैसे मुस्कुराता है
और
मुँह चिढ़ाता है
गुरु
क्या गुरु मंत्र दिये
तुमने उस समय
लगा था
जग जीत
ही लिया जायेगा
पर आज
जो सब
दिख रहा है
आस पास
उस सब में तो
गुरु से कुछ
भी ढेला भर
नहीं किया जायेगा
तुमने जो
भी सिखाया
जिस की
समझ में आया
उसकी पाँचों
अँगुलियाँ
घी में हैं
जो दिख रहा है
उसका सिर
भी कढ़ाही
में है या नहीं है
ये पता नहीं है
अपना सिर
पकड़ कर
बैठे हुऐ
एक शिष्य को
आगे उससे
कुछ भी नहीं
अब दिख रहा है
जो है सो है
गुरु
गुरु तुम भी रहे
कुछ को
गुरु बनने
तक पहुँचा ही गये
लेकिन लगता है
दिन गुरुओं के
लद गये गुरु
गुरु घंटालों के
बहुत जोर शोर के
साथ जरूर आ गये
जय तो होनी
ही चाहिये गुरु
गुरु की
गुरु गुरु
ही होता है
पर गुरु
अब बिना
घंटाल बने
गुरु से भी
कुछ
नहीं होता है ।
चित्र साभार: blogs.articulate.com
महीने
के अंतिम
दिनों के
मुद्दों पर
भारी पड़ती
महत्वाकाँक्षाऐं
अहसास
जैसे
महीने के
वेतन में से
बची हुई
कुछ
भारी खिरची
आवाज
करती हुई
बेबात में
जेब को
ही जैसे
फाड़ने
को तैयार
पुरानी
पैंट की
कच्ची
पड़ती हुई
कपड़े की
जेब से
दिखाई
देती हुई
जमाने
के साथ
चलने से
इंकार
कर चुकी
चवन्नी के
साथ में
एक अठन्नी
जगह
घेरने को
इंतजार करते
दिमाग के
कोने को
अपने अपने
हिसाब से
राशन
पानी
बिजली
गैस दूध
अखबार
सब्जी
टेलिफोन के
बिल के
बिलों के
हिसाब किताब
की हड़बड़ाहट
के साथ
टी वी पर
चलती बहस
लाशें
जलती कहीं
कहीं
दफन होती
कहीं
कानून
कहीं धर्म
आम आदमी
की समस्यायें
उसकी
महत्वाकाँक्षाऐं
उसके मुद्दे
सब गडमगड
थोड़ा देश
थोड़ा
देश भक्ति
के साथ साथ
रसोई
से आती
तेज आवाज
खाना
बन चुका है
लगा दूँ क्या ?
चित्र साभार: www.123rf.com
छोड़ दिया जाये
कभी किसी समय
खींच कर कुछ
सफेद लकीरें
सफेद पन्ने के
ऊपर यूँ ही
हर वक्त सफेद
को काला कर
ले जाने की मंशा
भी ठीक नहीं
रंग रहें रंगीन रहें
रंगीनियों से भरे रहें
रहने दिया जाये
काले में सफेद भी
और सफेद में
काला भी होता है
कहीं कम कहीं
ज्यादा भी होता है
रहने भी दिया जाये
ढकने के लिये सब
कुछ नजर सफेद
पर टिकी रहे
रहनी ही चाहिये
मौका मिले ओढ़ने का
सफेदी को कभी
अच्छा होता है अगर
खुद ही ओढ़ लिया जाये
सर से शुरु होती है
सफेदी जहाँ सब
सफेद दिखता है
पाँवो के तले पर भी
सफेद ही कर लिया जाये
सफेद पर ही चलना हो
सब कुछ सफेद ही रहे
सफेद पर ही
रुक लिया जाये
इससे पहले किसी को
ढकना पढ़े तेरा भी कुछ
सफेद सफेद से ‘उलूक’
वक्त को समझ कर
जितना कर सकता है
कोई सफेद सफेदी के साथ
सफेद कर लिया जाये ।
चित्र साभार: itoon.co
निराशा
घेरती है
जिंदगी को
बहुत ही
बेरहमी से
सूख जाती हैं
आँखे भी
भूले जाते हैं
आँसू
याद में बस
पानी रह जाता है
देखते देखते
अपने आस पास
कुछ दूर कुछ
नजदीक
हर जगह फैली हुई
उदासी
कचोटती रहती है
अंदर से कहीं
डर गिद्धों को
देख देख कर
नुची हुई कुछ
लाशें
जानवरों की
जीवन चक्र हमेशा
खूबसूरती में
नहीं घूमता है
बहुत तेजी से
बढ़ते कैक्टस
भयभीत करते हैं
और फिर
किसी दिन
अचानक जिंदगी
नहीं मौत
जगाना शुरु
करती है
खुद के अंदर की
मरती हुई
आत्मा को
एक संबल
सा देती हुई
जब साफ साफ
दिखता है
श्रद्धाँजलि अर्पित
करते हुऐ कैक्टस
बहुत बौने
नजर आते हैं
सूखी हुई
बरसों से आँखें
नम होना
शुरु हो जाती हैं
झरने बहने
लगते हैं
एक हमेशा
के लिये
नींद में चला
गया शख्स
जिंदगी हो
जाता है
सारे बौनो
के सामने
मौत बहुत
ही ज्यादा
विशाल नजर
आती है ।
चित्र साभार: www.clipartbest.com