उलूक टाइम्स: समझदारी
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बुधवार, 29 जुलाई 2015

समझदारी है सफेद को सफेद रहने देकर वक्त रहते सारा सफेद कर लिया जाये

छोड़ दिया जाये
कभी किसी समय
खींच कर कुछ
सफेद लकीरें
सफेद पन्ने के
ऊपर यूँ ही
हर वक्त सफेद
को काला कर
ले जाने की मंशा
भी ठीक नहीं
रंग रहें रंगीन रहें
रंगीनियों से भरे रहें
रहने दिया जाये
काले में सफेद भी
और सफेद में
काला भी होता है
कहीं कम कहीं
ज्यादा भी होता है
रहने भी दिया जाये
ढकने के लिये सब
कुछ नजर सफेद
पर टिकी रहे
रहनी ही चाहिये
मौका मिले ओढ़ने का
सफेदी को कभी
अच्छा होता है अगर
खुद ही ओढ़ लिया जाये
सर से शुरु होती है
सफेदी जहाँ सब
सफेद दिखता है
पाँवो के तले पर भी
सफेद ही कर लिया जाये
सफेद पर ही चलना हो
सब कुछ सफेद ही रहे
सफेद पर ही
रुक लिया जाये
इससे पहले किसी को
ढकना पढ़े तेरा भी कुछ
सफेद सफेद से ‘उलूक’
वक्त को समझ कर
जितना कर सकता है
कोई सफेद सफेदी के साथ
सफेद कर लिया जाये ।

चित्र साभार: itoon.co

रविवार, 26 जुलाई 2015

समझदार को बहुत ज्यादा ही समझदारी आती है

सब्जी
और घास
साथ साथ
उगती हैं
दूर से
देखने पर
दोनों एक
सी नजर
भी आती हैं

पर सब्जी
पकाने के
लिये घास
नहीं काटी
जाती है

बकरियों के
रेहड़ में
कुत्ते भी
साथ में हों
तब भी
वही बात
हो जाती है

मांंसाहारियों
के द्वारा
खाने के लिये
बकरियाँ ही
काटी जाती हैं

हिंदी में लिखी
किसी की
अपने घर
की रोज की
चुगलखोरी
साहित्य में नहीं
गिनी जाती हैं

कोई कुछ
लिख रहा
हो अगर
पहले उसकी
लिखी गई
बातों को
समझने की
कोशिश की
जाती है

अपने ही
घर के किसी
आदमी के
द्वारा कही
जाती हैं
और
समझ में
रोज रोज
ही नहीं अगर
आती हैं तो
किसी दिन
कभी पहले
उससे ऐसी
उल जलूल
क्यों लिखी हैं
इस तरह
की बातें
पूछे जाने
की कोशिश
की जाती है

काले अक्षरों
की भैंसे
बनाना अच्छी
बात नहीं
मानी जाती हैं

अक्षरों की
भैंसों की
रेहड़ को
हाँकने वाले
की तुलना
साहित्यकारों
से नहीं
की जाती है

‘उलूक’
बैचेन मत
हुआ कर
अगर कभी
तेरे कनस्तर
पीटने की
आवाज दूर
से किसी को
शादी बारात के
ढोल नगाड़े
का भ्रम पैदा
कर जाती हैं

साहित्यकार
समझने वाले
को समझदारी
आती है और
बहुत आती है ।

चित्र साभार: www.fotosearch.com

सोमवार, 4 फ़रवरी 2013

मदारी छोड़ रहा है का राग क्यों गा रहा है नया सीख कर क्यों नहीं आ जा रहा है


बहुत से मदारी
ताजिंदगी
एक 
ही बंदर से काम चलाते हैं

इसीलिये
जमाने की दौड़ में बस
यूँ ही पिछड़ते चले जाते हैं

मेरा मदारी 
भी सुना है
अब समझदारी 
कहीं से सीख के आ रहा है

कहते सुना 
मैने उसे
अब 
मेरे नाच में मजा नहीं आ रहा है
वो एक नये बंदर को ट्रेनिंग देने
चुपचाप 
कहीं कहीं कभी कभी आ जा रहा है

जंजीर और 
रस्सियों को
करने वाला वो दरकिनार है
जमाना कब से 
वाई फाई का हुआ जा रहा है
उसकी अक्ल में
अब ये बहुत अच्छी तरह से घुस पा रहा है

रस्सी से तो 
एक समय में 
एक ही बंदर को नचाया जा रहा है
बंदर भी दिख जा रहा है
रस्सी को भी वो छुपा नहीं पा रहा है

 ई-दुनियाँ में 
देखिये
कितना 
मजा आ रहा है
सब कुछ पर्दे के पीछे से ही चलाया जा रहा है

बंदर और मदारी
दोनो का एक साथ दीदार हुआ जा रहा है

लेकिन
किसने 
मदारी बदल दिया
और
किसके पास 
नया बंदर आ रहा है
इसका अंदाज कोई भी नहीं लगा पा रहा है

इन
सब के बीच
गौर करियेगा जरा

मेरा
सीखा 
सिखाया हुआ नाच
कितनी बेदर्दी से डुबोया जा रहा है

दिमाग वालों को कम
देखने वालों को ज्यादा
बारीकी से 
ये सब
समझ में 
आ जा रहा है ।

चित्र साभार: https://www.istockphoto.com/