कहाँ जरूरत है
किसे जरूरत है
पढ़ने याद करने
या समझने की
संविधान को
कुछ दिन होते हैं
बस करने को सलाम
दूर ऊपर देखते हुऐ
फहराते हुऐ तिरंगे को
और नीले आसमान को
किसने कह दिया
चलते रहिये
बने हुऐ
रास्तों पर पुराने
बना कर पंक्तियाँ
मिला कर कदम
बचा कर
अपने स्वाभिमान को
उतर कर तो देखिये
बाहर किनारे
से सड़क के लेकर
भीड़ एक बेतरतीब
चिल्लाते हुऐ कहीं
किसी बियाबान को
सभी कुछ सीखना
जरूरी नहीं है
लिखी लिखाई
किताबों से पढ़कर
एक ही बात को
रोज ही सुबह
और शाम को
दिख रही है
मौज में आयी हुई
तालीमें घर की
सड़क पर पत्थर
मारती हुई बच्चों
के मुकाम को
सम्भाल कर
रखे हुऐ है पता नहीं
कब से सोच में
तीन रंग झंडा एक
और कुछ दुआएं
अमनोचैन की
याद करते हुए
मुल्क-ए-राम को
लगा रहता है
‘उलूक’
समझने में
झंडे के बगल में
आ खड़े हुऐ
एक रंगी झंडे
की शखसियत
सत्तर मना लिये
कितने और भी
मनायेगा अभी
गणतंत्र दिवस
बढ़ाने को
गणों के
सम्मान को ।
चित्र साभार: https://www.canstockphoto.com
बहुत देर से
कोशिश कर
रहा होता है कोई
एक तितली
सोच कर
उसे उड़ाने की
तितली होती है
कि नजर
ही नहीं आती है
तितली को
कहाँ पता होता है
उसपर किसी को
कुछ लिखना है
हरे भरे पेड़ पौंधे
फूल पत्ती खुश्बू
या कुछ भी
जिसपर तितली
उड़ान भरती है
लिखने वाला
लगा होता है
तितली को
उड़ाने की
सोच जगाने की
ताकि कुछ
निकले तितली सा
कुछ उड़े
आसमान में
कुछ रंगीन सा
इंद्रधनुषीय
सच में
एक तितली
सोचने में
इतना ज्यादा
जोर पड़ता है
दिमाग पर
कभी नहीं
सोच पाता
है कोई
एक चालू
लिखने वाला
जोर डालता
है अचानक
तो
समझ में आना
शुरु होता है
तितलियों से
भरा एक देश
उसका
तितली राजा
तितली प्रजा
और सारे
उड़ते हुऐ
मडराते हुऐ
फूलों के ऊपर
गाते हुऐ
तितली गीत
सब कुछ तो
हरा भरा होता है
सब कुछ तो
ठीक ठाक होता है
फिर
किसलिये
‘उलूक’
तितली पर
लिखने के लिये
तुझे एक तितली
सोचने पर भी
दूर दूर तक
नजर नहीं आती है
कुछ
इलाज करवा
कुछ दवा खा
डाक्टर को
अपना मर्ज बता
कि तितली
सोची ही
नहीं जाती है
नींद जैसी
कुछ उबासी
के साथ
चली आती है
उनींदी सी
सोती हुई
पंख बंद
किये हुऐ
एक तितली
बताती हुई
कि वो
एक तितली है
और उस पर
उसे कुछ
तितली सा
लिखना है ।
चित्र साभार: http://clipart-library.com
एक
वबाल है
कुछ पूछने
वाला आज
इनकी उनकी
सबकी नजरों में
इनकी नजर है
कि एक सवाल है
हमेशा इसकी उसकी
सबकी नजरों में
नजर
उठती नहीं है
वबाल होती है
अपने लिये ही
अपने नखरों में
लावबाली होती है
बड़ी वबाल होती है
उठती है तो ठहर
जाती है नजरों में
वबाल
और भी होते हैं
कुछ बह जाते हैं
समय की लहरों में
वबाल से
झुकी होती है
कमर लावबाली
फिर भी लचक लेती है
जिन्दगी के मुजरों में
‘उलूक’
वबाल होते हैं
तो सवाल होते हैं
सवाल होते हैं
तो वबाल होते हैं
वबाल-ए-दोश
सवाल है
बड़ा ही वबाल है
सवाल है आज मगर
है सारे सवालों के पहरों में ।
वबाल = बोझ, मुसीबत,
लावबाली = लापरवाह
वबाल-ए-दोश = कंधे का भार
चित्र साभार: http://www.chrismadden.co.uk
कभी
अखबार
को देखते हैं
कभी
अखबार
में छपे
समाचार
को देखते हैं
पन्ने
कई होते हैं
खबरें
कई होती हैं
पढ़ने वाले
अपने
मतलब के
छप रहे
कारोबार
को देखते हैं
सीधे चश्मे से
सीधी खबरों
पर जाती है
सीधे साधों
की नजर
केकड़े कुछ
टेढ़े होकर
अपने जैसी
सोच पर
असर डालने
वाली
टेढ़ी खबर
के टेढ़े
कलमकार
को देखते हैं
रोज ही कुछ
नया होता है
हमेशा खबरों में
आदत के मारे
कुछ पुरानी
खबरों
से बन रहे
सड़
रही खबरों
के अचार
को देखते हैं
‘हिन्दुस्तान’
लाता है
कभी कभी
कुछ
सदाबहार खबरें
कुछ
आती हैं
समझ में
कुछ
नहीं आती हैं
समझे बुझे
ऐसी खबरों
के खबरची
खबर छाप कर
जब अपनी
असरदार
सरकार को
देखते हैं
‘उलूक’
और
उसके
साथी दीमक
आसपास की
बाँबियों के
चिलम
लिये हाथ में
फूँकते
समय को
उसके धुऐं से
बन रहे छल्लों
की धार
को देखते हैं ।
चित्र साभार: दैनिक ‘हिंदुस्तान’ दिनाँक 21 जनवरी 2018
कुछ में
बहुत कुछ
लिख देते हैं
बहुत से लोग
बहुत से लोग
बहुत कुछ
लिख देते हैं
कुछ नहीं में भी
कुछ शराब
पर लिख देते
हैं बहुत कुछ
बिना पिये हुऐ भी
कुछ पीते हैं शराब
लिखते कुछ नहीं हैं
मगर नशे पर कभी भी
कुछ दूसरों
के लिखे को
अपने लिखे में
लिख देते हैं
पता नहीं
चलता हैं
पढ़ने वाले को
बहुत बेशरम
होते हैं बहुत से
बहुत शरीफ
होते हैं लोग
चेहरे कभी
नहीं बताते
हैं शराफत
बहुत ज्यादा
शरीफ होते हैं
बहुत से लोग
दिमाग घूम
जाता है
‘उलूक’ का
कई बार
उसकी पकाई
हुई रोटियाँ
अपने नाम से
शराफत के
साथ जब
उस के सामने
से ही सेंक
लेते हैं लोग ।
चित्र साभार: http://www.clker.com