कुछ नहीं हुआ
बस एक कूँची
चलाना सिखाने
वाले ने पेपर
कटर घुमा दिया
अपनी ही एक
शिष्या को
सुना है
हस्पताल में
पहुँचा दिया
सुबह से खबर
पर खबर
चल रही थी
इधर से उधर
भी आ और
जा रही थी
इसके मुँह में
बीज थी उसके
मुँह में फूल सा
एक बनता हुआ
दिखा रही थी
अखबार वाले
टी वी वाले
पुलिस वाले
हाँ असली
भूल गया
मेरे घर के
अंदर के ,
डंडे वाले
सभी टाईम
से आ गये थे
अपना अपना
धरम सब ही
निभा गये थे
टी वी में
कच्ची खबर
चलना शुरू
हो चुकी थी
असली खबर
मसाले के साथ
प्रेस में पकना
शुरु हो चुकी थी
कल सुबह
सारे अखबारों
के फ्रंट पेज में
आ भी जायेगी
क्या बतायेगी
ये तो कल को
ही पता
चल पायेगी
बहुत से मेडल
मिल रहे हैं
मेरी संस्था को
उसमें एक को
और
जोड़ ले जायेगी
मैंने जो क्या
किया है कुछ
मुझको क्यों
शरम आ जायेगी
सारी दुनियाँ
में जब हो
रहे हैं हजारों
कत्लेआम
रोज का रोज
एक बस
मेरे घर में
होने को हुआ
तो क्या हुआ
बस इतना सा
ही तो हुआ
और किसी
को कुछ भी
तो नहीं हुआ
चिंता किसी
को बिल्कुल
भी नहीं हुई
ये सबसे
अच्छा हुआ
जवाबदेही
किसी की
नहीं बनती है
थोड़ी सी भी
जब कुछ भी
कहीं भी
नहीं हुआ ।
बस एक कूँची
चलाना सिखाने
वाले ने पेपर
कटर घुमा दिया
अपनी ही एक
शिष्या को
सुना है
हस्पताल में
पहुँचा दिया
सुबह से खबर
पर खबर
चल रही थी
इधर से उधर
भी आ और
जा रही थी
इसके मुँह में
बीज थी उसके
मुँह में फूल सा
एक बनता हुआ
दिखा रही थी
अखबार वाले
टी वी वाले
पुलिस वाले
हाँ असली
भूल गया
मेरे घर के
अंदर के ,
डंडे वाले
सभी टाईम
से आ गये थे
अपना अपना
धरम सब ही
निभा गये थे
टी वी में
कच्ची खबर
चलना शुरू
हो चुकी थी
असली खबर
मसाले के साथ
प्रेस में पकना
शुरु हो चुकी थी
कल सुबह
सारे अखबारों
के फ्रंट पेज में
आ भी जायेगी
क्या बतायेगी
ये तो कल को
ही पता
चल पायेगी
बहुत से मेडल
मिल रहे हैं
मेरी संस्था को
उसमें एक को
और
जोड़ ले जायेगी
मैंने जो क्या
किया है कुछ
मुझको क्यों
शरम आ जायेगी
सारी दुनियाँ
में जब हो
रहे हैं हजारों
कत्लेआम
रोज का रोज
एक बस
मेरे घर में
होने को हुआ
तो क्या हुआ
बस इतना सा
ही तो हुआ
और किसी
को कुछ भी
तो नहीं हुआ
चिंता किसी
को बिल्कुल
भी नहीं हुई
ये सबसे
अच्छा हुआ
जवाबदेही
किसी की
नहीं बनती है
थोड़ी सी भी
जब कुछ भी
कहीं भी
नहीं हुआ ।
बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,बधाई सुसील जी
जवाब देंहटाएंrecent post : मैनें अपने कल को देखा,
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार (11-06-2013) के "चलता जब मैं थक जाता हुँ" (चर्चा मंच-अंकः1272) पर भी होगी!
सादर...!
शायद बहन राजेश कुमारी जी व्यस्त होंगी इसलिए मंगलवार की चर्चा मैंने ही लगाई है।
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार ११ /६ /१ ३ के विशेष चर्चा मंच में शाम को राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी वहां आपका स्वागत है
जवाब देंहटाएंसारी दुनियाँ में
जवाब देंहटाएंजब हो रहे हैं
हजारों कत्लोआम
रोज का रोज
एक बस मेरे घर में
होने को हुआ
तो क्या हुआ
bahut sateek
जवाब देंहटाएंइसे व्यंग कहूँ या कटु सत्य ? प्रस्तुति अच्छी है
latest post: प्रेम- पहेली
LATEST POST जन्म ,मृत्यु और मोक्ष !
yah ak hakikat hai jo roj kahin n kahi ghatati rahati hai ,aaj hamare ghar me kal kahi aur,,,,,,,,nice creation, chintniy
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन यात्रा रुकेगी नहीं ... मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंवाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
http://madan-saxena.blogspot.in/
http://mmsaxena.blogspot.in/
http://madanmohansaxena.blogspot.in/
http://mmsaxena69.blogspot.in/
समाज का कटु सत्य है
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति