उलूक टाइम्स: हस्पताल
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मंगलवार, 31 दिसंबर 2024

लिखने लिखाने की बीमारी है कौन सा हस्पताल में बिस्तर बदलना है

 

मालूम है कि कुछ भी कहीं भी बदला नहीं है सालभर में
ना ही आगे बदलना है
किसलिए तोलना है मिट्टी को हवा को पानी को
रहने दे उन्हें अभी संभलना है

सच सच है सच को रहने देना है सच कहना नहीं है
रेत पर नंगे पाँव टहलना है
निशान अपने आप ही  मिट जाएंगे समय के साथ
थोड़ा झूठ को बस संभलना है

कौन निराश है किसने कहा है बुरी बात है सब ठीक तो है
बिना डर रात में निकलना है
मौत सबको आती है एक दिन रोज का डरना अच्छा नहीं है
समय को बस फिसलना है

इसकी कुछ लिख कर उसकी कुछ लिख देने के बाद ही
घर से बाहर निकलना है
शहर में होती हैं अफवाहें ध्यान नहीं देना है
मुसकुराते हुए गली गली टहलना है

अपनी लिखने कि हिम्मत होती तो कितने होते अर्जुन उठाते गांडीव
सब बहलना है
‘उलूक’ साल को जाना ही होता है एक दिन
तुम्हें भी निकलना है
उसे भी निकलना है

चित्र साभार: https://www.shutterstock.com/



सोमवार, 10 जून 2013

कुछ नहीं हुआ

कुछ नहीं हुआ

 बस एक कूँची
चलाना सिखाने
वाले ने पेपर
कटर घुमा दिया

अपनी ही एक
शिष्या को
सुना है
हस्पताल में
पहुँचा दिया

सुबह से खबर
पर खबर
चल रही थी

इधर से उधर
भी आ और
जा रही थी

इसके मुँह में
बीज थी उसके
मुँह में फूल सा
एक बनता हुआ
दिखा रही थी

अखबार वाले
टी वी वाले
पुलिस वाले
हाँ असली
भूल गया
मेरे घर के
अंदर के ,
डंडे वाले

सभी टाईम
से आ गये थे
अपना अपना
धरम सब ही
निभा गये थे


टी वी में
कच्ची खबर
चलना शुरू
हो चुकी थी


असली खबर
मसाले के साथ
प्रेस में पकना
शुरु हो चुकी थी


कल सुबह
सारे अखबारों
के फ्रंट पेज में
आ भी जायेगी


क्या बतायेगी
ये तो कल को
ही पता
चल पायेगी


बहुत से मेडल
मिल रहे हैं
मेरी संस्था को
उसमें एक को
और
जोड़ ले जायेगी


मैंने जो क्या
किया है कुछ
मुझको क्यों
शरम आ जायेगी


सारी दुनियाँ
में जब हो
रहे हैं हजारों
कत्लेआम
रोज का रोज


एक बस
मेरे घर में
होने को हुआ
तो क्या हुआ


बस इतना सा
ही तो हुआ
और किसी
को कुछ भी
तो नहीं हुआ


चिंता किसी
को बिल्कुल
भी नहीं हुई


ये सबसे
अच्छा हुआ
जवाबदेही
किसी की
नहीं बनती है

थोड़ी सी भी
जब कुछ भी
कहीं भी
नहीं हुआ ।