कभी
मिलेगी फुरसत
इन सब बातों से
तो तेरी कुछ बात भी
लिख के कहीं रख लूंंगा
अभी तो
समेटने में
लगा हूँ
अपने आस पास
के फैल चुके रेगिस्तानी
कांंटो की फसल को
जो
जाने अन्जाने में
खुद ही बोता
चला जा रहा हूँ
देख कर उगे हुऐ
बहुत ही खूबसूरत
फूल कैक्टस के
बहुत से रेगिस्तानों में
बिना पानी और
मिट्टी के भी
कई कई तो उगते हैं
कई कई सालों में
बस एक बार ही
और हमेशा इंतजार
रहता है उनके
किसी सुबह मुँह अंधेरे
खिल उठने का
चुभने वाली चीजें
वैसे तो वास्तु
के अनुसार
घर के सामने से
नहीं रखी जाती हैं
लेकिन
बैचेनियाँ
कोई बेचे
या ना बेचे
अपने लिये
अपने आप ही
खरीदी जाती हैं
धुंंऐ और
कोहरे में
वैसे भी
दूर से कोई
फर्क नजर
नहीं आता है
एक कहीं कुछ
जलने से बनता है
और दूसरा कहीं
कुछ बुझाने के बाद ही
राख के ऊपर से मडराता है
अब
कैसे कहे कोई
कि इतना कुछ है
उलझा हुआ
आस पास
एक दूसरे से
सुलझाने की
कौन सोचे
बस लिख कर
रख देने से ही
काम चल जाता है
तुझ पर है
और
बहुत कुछ है
लिखने के लिये
लिखूंंगा भी
किसी दिन
अभी तो
अपने बही खाते
के हिसाब किताब
को ही कुछ
लिख लिखा
कर रख लूँ कहीं
किसी पन्ने पर
तब तक
तेरे पास भी
बहुत मौके हैं
अपने हिसाब किताब
निबटाने के लिये
मिलते हैं
किसी दिन
कभी बैठ कर
अपने अपने
बही खातों
के साथ
कुछ
सवालों के हल
हर किताब में
एक जैसे ही
मिला करते हैं ।
चित्र साभार: http://www.clipartillustration.com
मिलेगी फुरसत
इन सब बातों से
तो तेरी कुछ बात भी
लिख के कहीं रख लूंंगा
अभी तो
समेटने में
लगा हूँ
अपने आस पास
के फैल चुके रेगिस्तानी
कांंटो की फसल को
जो
जाने अन्जाने में
खुद ही बोता
चला जा रहा हूँ
देख कर उगे हुऐ
बहुत ही खूबसूरत
फूल कैक्टस के
बहुत से रेगिस्तानों में
बिना पानी और
मिट्टी के भी
कई कई तो उगते हैं
कई कई सालों में
बस एक बार ही
और हमेशा इंतजार
रहता है उनके
किसी सुबह मुँह अंधेरे
खिल उठने का
चुभने वाली चीजें
वैसे तो वास्तु
के अनुसार
घर के सामने से
नहीं रखी जाती हैं
लेकिन
बैचेनियाँ
कोई बेचे
या ना बेचे
अपने लिये
अपने आप ही
खरीदी जाती हैं
धुंंऐ और
कोहरे में
वैसे भी
दूर से कोई
फर्क नजर
नहीं आता है
एक कहीं कुछ
जलने से बनता है
और दूसरा कहीं
कुछ बुझाने के बाद ही
राख के ऊपर से मडराता है
अब
कैसे कहे कोई
कि इतना कुछ है
उलझा हुआ
आस पास
एक दूसरे से
सुलझाने की
कौन सोचे
बस लिख कर
रख देने से ही
काम चल जाता है
तुझ पर है
और
बहुत कुछ है
लिखने के लिये
लिखूंंगा भी
किसी दिन
अभी तो
अपने बही खाते
के हिसाब किताब
को ही कुछ
लिख लिखा
कर रख लूँ कहीं
किसी पन्ने पर
तब तक
तेरे पास भी
बहुत मौके हैं
अपने हिसाब किताब
निबटाने के लिये
मिलते हैं
किसी दिन
कभी बैठ कर
अपने अपने
बही खातों
के साथ
कुछ
सवालों के हल
हर किताब में
एक जैसे ही
मिला करते हैं ।
चित्र साभार: http://www.clipartillustration.com
Waah .... Bahut hi sunder likhaa hai aapne ...umdaaaaaa !!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (06-10-2014) को "स्वछता अभियान और जन भागीदारी का प्रश्न" (चर्चा मंच:1758) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी लिखी रचना मंगलवार 07 अक्टूबर 2014 को लिंक की जाएगी........... http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसर आपकी रचनाओँ मेँ प्रवाह है, जो अनुकरणीय है...बेहतरीन
जवाब देंहटाएं