लिख लिया जाये कहीं किसी कागज में
एक खयाल
एक खयाल
बस थोड़ी देर के लिये उसे रोकना चाहता हूँ
ना कागज होता है कहीं
ना कलम होती है हाथ में
यूँ ही सब भूल जाने के लिये
भूलना चाहता हूँ
भूलना चाहता हूँ
ख्वाहिशें होती हैं बहुत होती हैं
इधर से लेकर उधर तक होती हैं
इधर से लेकर उधर तक होती हैं
उनमें से कुछ समेटना चाहता हूँ
तरतीब से लगाने में ख्वाहिशों को
पूरी हो गयी जिंदगी
उधड़े हुऐ में से
गिरी ख्वाहिशों को लपेटना चाहता हूँ
गिरी ख्वाहिशों को लपेटना चाहता हूँ
सच और सच्चाई
बहुत पढ़ लिया छपा छपाया
बहुत पढ़ लिया छपा छपाया
कुछ अधलिखी किताबों को अब ढूँढना चाहता हूँ
झूठ के पैर ही पैर देखे हैं
एक नहीं हैं कई हैं इफरात से हैं
अब बस उन्हीं में लोटना चाहता हूँ
उसकी चौखट पर सुना है बड़ी भीड़ है
दो गज की दूरी से उसपर बहुत कुछ चीखना चाहता हूँ
उसका ही किया कराया है सब कुछ
उसी के बादलों की बारिश में
जी भर कर भीगना चाहता हूँ
जी भर कर भीगना चाहता हूँ
खोदने में लगा हूँ कबर कुछ शब्दों की
मतलब मरा मिलता है जिनका
मतलब मरा मिलता है जिनका
शब्दकोश में देखना चाहता हूँ
लगे हैं कत्ल करने में
शब्द दर शब्द हर तरफ शब्दों का बेरहमी से
रुक भी लें
मैं घुटने टेकना चाहता हूँ
शब्द दर शब्द हर तरफ शब्दों का बेरहमी से
रुक भी लें
मैं घुटने टेकना चाहता हूँ
लिखने वाले कुछ अलग पढ़ने वाले कुछ अलग
लिखने पढने वाले कुछ अलग से लगें
लिखने पढने वाले कुछ अलग से लगें
किताबें बेचना चाहता हूँ
कुछ तो लगाम लगा
अपनी चाहतों पर ‘उलूक’
सम्भव नहीं है सोच लेना
सब तो हो लिया
अपनी चाहतों पर ‘उलूक’
सम्भव नहीं है सोच लेना
सब तो हो लिया
अब खुदा हो लेना चाहता हूँ
चित्र साभार: https://friendlystock.com/product/german-shepherd-dog-barking/
उसकी चौखट पर सुना है बड़ी भीड़ है
जवाब देंहटाएंदो गज की दूरी से उसपर बहुत कुछ चीखना चाहता हूँ
उसका ही किया कराया है सब कुछ
उसी के बादलों की बारिश में जी भर कर भीगना चाहता हूँ...वाह!गज़ब ।
सादर
ख्वाहिशें होती हैं बहुत होती हैं
जवाब देंहटाएंइधर से लेकर उधर तक होती हैं
उनमें से कुछ समेटना चाहता हूँ
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 06 जून 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर!!!
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (6 -6-21) को "...क्योंकि वन्य जीव श्वेत पत्र जारी नहीं कर सकते"(चर्चा अंक- 4088) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
--
कामिनी सिन्हा
सुन्दर ख्वाहिशों के रंग !
जवाब देंहटाएंझूठ के पैर ही पैर देखें हैं इफ़रात से.....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
अति सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंखोदने में लगा हूँ कबर कुछ शब्दों की
जवाब देंहटाएंमतलब मरा मिलाता है जिनका
शब्दकोश में देखना चाहता हूँ - - सार्थक सृजन - - साधुवाद सह।
बहुत ख़ूब ...
जवाब देंहटाएंसब चाहते हैं ख्वाहिशें समेटना पर ऐसा कहाँ हो पाता है ...
अच्छी रचना ...
उसकी चौखट पर सुना है बड़ी भीड़ है
जवाब देंहटाएंदो गज की दूरी से उसपर बहुत कुछ चीखना चाहता हूँ
उसका ही किया कराया है सब कुछ
उसी के बादलों की बारिश में जी भर कर भीगना चाहता हूँ
वाह!!!
बहुत ही लाजवाब एवं सार्थक सृजन हमेशा की तरह।
जवाब देंहटाएंउसकी चौखट पर सुना है बड़ी भीड़ है
दो गज की दूरी से उसपर बहुत कुछ चीखना चाहता हूँ
उसका ही किया कराया है सब कुछ
उसी के बादलों की बारिश में
जी भर कर भीगना चाहता हूँ.. दर्द का आक्रोश भलीभांति दिख रहा है,सार्थक सृजन ।