अंगुलियों
को
मोड़कर
मुट्ठी बना लेना
कुछ भी
पकड़ लेने
की
शुरुआत
पैदा होते हुऐ
बच्चे
के साथ
के साथ
आगे भी
चलती
चली जाती है
पकड़
शुरु में
कोमल होती है
होते होते
बहुत
कठोर
हो जाती है
हो जाती है
किसी भी
चीज को
पकड़ लेने की सोच
चाँद
भी पकड़ने
के लिये
लपक जाती है
पकड़ने की
यही
कोशिश
कुछ ना कुछ
रंग
कुछ ना कुछ
रंग
जरूर दिखाती है
आ ही
जाता है
कुछ ना कुछ
छोटी सी मुट्ठी में
मुट्ठी
बड़ी और बड़ी
होना
शुरु हो जाती है
शुरु हो जाती है
सब कुछ हो
रहा होता है
बस
आँख बंद
हो जाती है
फिर
आँख और मुट्ठी
खुलना शुरु
होती है
जब
जब
लगने लगता है
बहुत कुछ
जैसे
जैसे
हवा पानी
पहाड़ अपेक्षाऐं
मुट्ठी में आ चुकी हैं
और
पकड़
उसके बाद
यहीं से
ढीली
ढीली
पड़ना शुरु
हो जाती है
‘उलूक’
वक्र का ढलना
यहीं से
सीखा जाता है
वक्र का
शिखर
मुट्ठी से बाहर
आ ही जाता है
उस समय
जब
सभी कुछ
मुट्ठी
मुट्ठी
में
समाया हुआ
समाया हुआ
मुट्ठी में
नहीं
मिल पाता है
अपनी अपनी
जगह
जहाँ था
वहीं
जैसे
वहीं
जैसे
वापस
चला जाता है
चला जाता है
अँगुलियाँ
सीधी
हो
चुकी होती हैं
चुकी होती हैं
जहाज
के
उड़ने का