उलूक टाइम्स: उद्योग
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गुरुवार, 15 दिसंबर 2016

आओ धमकायें नया उद्योग लगायें

नये
जमाने
के साथ
बदलना
सीखें

कुछ
उद्योग
धन्धे नये
धन्धों से
अलग
खींच कर

धन्धों के
खेत में
खींच
तान कर
अकलमंदी के
डंडे से सींचें
पनपायें

आओ
धमकायें

धमकाने के
धन्धे से
किसी की
किस्मत
चमकायें

आओ बुद्ध
बन जायें
ऊपर कहीं
बैठ कर
ऊँचाई
अपनी
लोगों को
समझायें

नये नये
उद्योगों
की
लम्बी
लम्बी
कतारें
लगायें

आओ
पीछे कहीं
खड़े खड़े
आगे
चल रहे
को
गलियाएं

आओ
लोगों का
बोलना
बन्द
करवायें

बोलती
बन्द करने
की मशीनें
ईजाद करें
देश आगे
ले जायें

अपना
मुँह खोलें
दांत दिखायें
ना देखना
चाहे कोई
काट खायें

आओ
कटखन्ने
हो जायें
काट खाने
के तरीके
समझें
समझायें

नये नये
काटखाने के
उपकरण
तैयार करें
कटखन्ने
उद्योग
उगायें

आओ
सीखें
सिखाने
वालों से
उनके
समझे
बूझे को

‘उलूक’
की तरह
बकवास
कर कर
लोगों को
ना पकायें

आओ
नये जमाने
के
नये लोगों
के नये
ज्ञान का
लाभ उठायेंं

आओ
खुद के
लिये नहीं
किसी
के लिये
लोगों को
धमकायें
धमकाने के
उद्योग
फलें फूलें
राग धमकी
में ढले
गीत गायें ।

चित्र साभार: WorldArtsMe

मंगलवार, 17 सितंबर 2013

उनकी मजबूरी के खेत मेरे सपनों के पेड़

किसी की
मजबूरी भी

किसी का
सपना हो
जाती है

ये बात
बहुत आसानी
से कहां समझ
में आ पाती है

आश्चर्य तो
तब होता है

जब एक ऐसे ही
सपने के आते ही
किसी की बांछें
खिल जाती हैं

यही सोच एक
दुधारू गाय
बन कर
सामने आ
जाती है

जितने ज्यादा
मजबूर लोग
होते हैं
उतना
ज्यादा दूध
बहाती है

किसी की
मजबूरी को
एक सपना
बनाना

उस सपने
को पूरा
करने के लिये
तन मन
धन लगाना

सपने की
बात को
किसी को
भी ना बताना

इसके बावजूद
उस सपने को
पूरा करने
के लिये
मिनटों में
मददगारों
के एक
जमघट का
जुट जाना

सपने का
फलना फूलना
शुरु हो जाना

दूध का
निकलने से
पहले ही
बंट जाना

कुछ लोगों
की मजबूरी पर
एक पूरा उद्योग
खड़ा हो जाना ही
एक आदमी की
प्रबंधन क्षमता
को दिखाती है

देश को चलाने
के लिये ऐसे ही
सक्षम लोगों की
जरूरत महसूस
की जाती है

इसीलिये
हर सरकार
हर जगह पर
छांट छांट कर
ऐसे महागुरुओं को
ला कर बिठाती है

इन
महागुरुओं की
मदद लेकर ही
मजबूर देश के
मजबूरों को वो
हांक ले जाती है ।

शुक्रवार, 18 मई 2012

तबादला मंत्री

नयी
सरकार
लग रहा है

कुछ
कर दिखायेगी

सुना
जा रहा है
पहाड़ी राज्य में
तबादला उद्योग
जल्दी ही लगायेगी

पिछली
सरकार के
तबादला ऎक्ट को

रद्द करने
वो जा रही है

उसके लिये

विधान सभा
की मुहर
जरूरी है
बता रही है

वैसे
तबादले
करने से
क्या हो पाता है

मेरी
समझ मेंं
आज भी
ये नहीं आता है

मेरा
विश्वविद्यालय
संस्था एक
स्वायत्तशाशी है

तबादला
करने करवाने
की यहाँ नहीं
बदमाशी है

जो
काम करता है
वो करता ही
चला जाता है

जो
नहीं करता है
उससे काम
करवाने की
हिम्मत कोई
नहीं कर पाता है

क्यों
नहीं करता 
है पूछने पर

"बने रहो पगला
काम करेगा अगला"

मुहावरा
बड़े चाव
से सुनाता है

अपनी
सरकार को
एक सुझाव
मैं देने जा रहा हूँ

पहाड़ी
राज्य को
प्रगति के पथ पर
ले जाना चाह रहा हूँ

ये
ऎक्ट वेक्ट
खाली काहे
बदलवा रहे हो

तबादला
मंत्री का
पोर्टफोलियो एक
क्यों नहीं बना रहे हो

लाल बत्ती
के एक चाहने वाले को

क्यों नहीं
इसमें खपा रहे हो

तबादले में
सुना था
पिछली बार
बहुत कुछ
खाया जा रहा था

राज्य की
उन्नति में
उसमेंं से
धेला भी
नहीं लगाया
जा रहा था

मंत्रालय
हो जायेगा तो

एक उद्योग
पनप जायेगा

कुछ हिस्सा
तबादलाखोरी का

राज्य के
खजाने में
दो चार कौड़ी
तो जमा कर जायेगा।