उलूक टाइम्स: उनकी मजबूरी के खेत मेरे सपनों के पेड़

मंगलवार, 17 सितंबर 2013

उनकी मजबूरी के खेत मेरे सपनों के पेड़

किसी की
मजबूरी भी

किसी का
सपना हो
जाती है

ये बात
बहुत आसानी
से कहां समझ
में आ पाती है

आश्चर्य तो
तब होता है

जब एक ऐसे ही
सपने के आते ही
किसी की बांछें
खिल जाती हैं

यही सोच एक
दुधारू गाय
बन कर
सामने आ
जाती है

जितने ज्यादा
मजबूर लोग
होते हैं
उतना
ज्यादा दूध
बहाती है

किसी की
मजबूरी को
एक सपना
बनाना

उस सपने
को पूरा
करने के लिये
तन मन
धन लगाना

सपने की
बात को
किसी को
भी ना बताना

इसके बावजूद
उस सपने को
पूरा करने
के लिये
मिनटों में
मददगारों
के एक
जमघट का
जुट जाना

सपने का
फलना फूलना
शुरु हो जाना

दूध का
निकलने से
पहले ही
बंट जाना

कुछ लोगों
की मजबूरी पर
एक पूरा उद्योग
खड़ा हो जाना ही
एक आदमी की
प्रबंधन क्षमता
को दिखाती है

देश को चलाने
के लिये ऐसे ही
सक्षम लोगों की
जरूरत महसूस
की जाती है

इसीलिये
हर सरकार
हर जगह पर
छांट छांट कर
ऐसे महागुरुओं को
ला कर बिठाती है

इन
महागुरुओं की
मदद लेकर ही
मजबूर देश के
मजबूरों को वो
हांक ले जाती है ।

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