सौंदर्य
बोध होना
और
श्रंगार
रस लेना
जिसको
आता है
वो उसी
रास्ते पर
चलता चला
जाता है
कबाड़ी का
सौंदर्य बोध
तो कबाड़
होता है
कहीं भी
पड़ा रहे
कबाड़ी
के लिये
बस वो
ही तो
श्रंगार
होता है
कबाड़ी
जब कहीं
से कबाड़
उठाता है
घर आंगन
रास्ते शहर
को साफ
कर ले
जाता है
शाबाशी
ना किसी से
वो कभी
चाहता है
ना ही
शाबाशी
की
टिप्पणी
ईनाम में
कहीं पा
पाता है
कबाड़
उठाने
और
ठिकाने
लगाने
तक
भी सब
ठीक है
मजा तो
तब आता है
जब कबाड़ी
कविता
लिखना
शुरू हो
जाता है
सौंदर्य बोधी
श्रंगार रसियों
को हैरान
परेशान
पाता है
पर उसे तो
बस कबाड़
में ही मजा
आता है
उठाता है
दिखाता है
कबाड़
पर रोज
कुछ
ना कुछ
लिख ले
जाता है
पर भंवरे
को तो बस
बोध होना
और
श्रंगार
रस लेना
जिसको
आता है
वो उसी
रास्ते पर
चलता चला
जाता है
कबाड़ी का
सौंदर्य बोध
तो कबाड़
होता है
कहीं भी
पड़ा रहे
कबाड़ी
के लिये
बस वो
ही तो
श्रंगार
होता है
कबाड़ी
जब कहीं
से कबाड़
उठाता है
घर आंगन
रास्ते शहर
को साफ
कर ले
जाता है
शाबाशी
ना किसी से
वो कभी
चाहता है
ना ही
शाबाशी
की
टिप्पणी
ईनाम में
कहीं पा
पाता है
कबाड़
उठाने
और
ठिकाने
लगाने
तक
भी सब
ठीक है
मजा तो
तब आता है
जब कबाड़ी
कविता
लिखना
शुरू हो
जाता है
सौंदर्य बोधी
श्रंगार रसियों
को हैरान
परेशान
पाता है
पर उसे तो
बस कबाड़
में ही मजा
आता है
उठाता है
दिखाता है
कबाड़
पर रोज
कुछ
ना कुछ
लिख ले
जाता है
पर भंवरे
को तो बस
फूल ही
नजर
आता है
वो फूल पर
मडराता है
कबाड़ी
सड़क के
किनारे
खड़ा खड़ा
थोड़ा थोड़ा
मुस्कुराता
चला जाता है।
नजर
आता है
वो फूल पर
मडराता है
कबाड़ी
सड़क के
किनारे
खड़ा खड़ा
थोड़ा थोड़ा
मुस्कुराता
चला जाता है।