उलूक टाइम्स: श्रंगार रस सौंदर्य बोध और कबाड़ी

सोमवार, 7 मई 2012

श्रंगार रस सौंदर्य बोध और कबाड़ी

सौंदर्य
बोध होना
और
श्रंगार
रस लेना

जिसको
आता है
वो उसी
रास्ते पर
चलता चला
जाता है

कबाड़ी का
सौंदर्य बोध
तो कबाड़
होता है
कहीं भी
पड़ा रहे
कबाड़ी
के लिये
बस वो
ही तो
श्रंगार
होता है

कबाड़ी
जब कहीं
से कबाड़
उठाता है
घर आंगन
रास्ते शहर
को साफ
कर ले
जाता है

शाबाशी
ना किसी से
वो कभी
चाहता है

ना ही

शाबाशी
की

टिप्पणी
ईनाम में
कहीं पा
पाता है

कबाड़
उठाने
और
ठिकाने
लगाने
तक

भी सब
ठीक है

मजा तो
तब आता है
जब कबाड़ी
कविता
लिखना

शुरू हो
जाता है


सौंदर्य बोधी
श्रंगार रसियों
को हैरान
परेशान
पाता है


पर उसे तो
बस कबाड़
में ही मजा
आता है

उठाता है
दिखाता है
कबाड़
पर रोज
कुछ
ना कुछ
लिख ले
जाता है

पर भंवरे
को तो बस 

फूल ही
नजर
आता है
वो फूल पर
मडराता है

कबाड़ी
सड़क के
किनारे
खड़ा 
खड़ा
थोड़ा थोड़ा
मुस्कुराता
चला जाता है।

8 टिप्‍पणियां:

  1. बड़ा कबाड़ी है खुदा, कितना जमा कबाड़ |
    जिसकी कृपा से यहाँ, कचडा ढेर पहाड़ |

    कचडा ढेर पहाड़, नहीं निपटाना चाहे |
    खाय खेत को बाड़, बाड़ को बड़ा सराहे |

    सज्जन देता मुक्ति, कबाड़ी बड़ा अनाड़ी |
    दुर्जन पुनुरुत्पत्ति, करे हर बार कबाड़ी ||

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  2. बहुत सुंदर लिखा है ....!!
    शुभकामनायें ...!!

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  3. होता चर्चा मंच है, हरदम नया अनोखा ।

    पाठक-गन इब खाइए, रविकर चोखा-धोखा ।।

    बुधवारीय चर्चा-मंच

    charchamanch.blogspot.in

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  4. क्या बात है मित्र ! कितना नैशर्गिक, व शालीन .....विलक्षण मधुरता है,भाव पूर्ण रचना में ..बधाईयाँ जी /

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  5. Shringaar and "kabadi" ...AAh...great imagination and beautiful presentation...

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  6. इस ब्रह्मांड का इनसान, सूक्ष्म कबाड़ हे,
    लगता हे ईश्वर के मन का बिगाड़ हे,
    शनै-शनै इसको नष्ट कर रहा हे,
    इसी लीये आदमी को भ्रष्ट कर रहा हे,

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