उलूक टाइम्स: मौज
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रविवार, 10 दिसंबर 2023

बेवकूफ है बस एक ‘उलूक’ होशियार सारा जहां है

 

कुछ नहीं कह रहे हैं कुछ कहने की जरूरत ही कहां है
सब कुछ तो ठीक है किसी को बताने की फुर्सत ही कहां है

कुछ उसके आदमी हैं कुछ इसके आदमी है जो जहां है वो वहां है
अभी उधर वाला इधर वाले की खाल खीचे खाल है अभी और यहाँ है

जो उधर है वो सबसे होशियार है उसको भी पता है वो कहाँ है
वो इधर वाले के कपडे उतारे किस ने देखना है कौन है कहा है

कल इधर वाला उधर होगा तब देख लेंगे किसने क्या कहा है
सजा किस को हुई है या होने वाली है मौज में हैं जो हैं जहां हैं

गाली गांधी को दे दो गाली नेहरू को दे दो वो कौन सा यहां हैं
गाली देने में कौन से पैसे खर्च होते हैं गाली देने वाले शहंशाह हैं

जो कह रहा है बस वो ही सिर्फ एक बेवकूफ है सुनने वाला मेहरबां है
होशियार ‘उलूक’ तेरे अलावा बाकी बचा है जो सारा और सारा जहां है |

चित्र साभार: https://pixabay.com/



रविवार, 24 अक्टूबर 2021

ग़ाँधी को लगी गोली को आज सलाम मिल रहा है

 


सब कुछ ठीक है बस कुछ बुलबुले हैं कुछ भी कहीं नहीं उबल रहा है
सूरज सुबह और चाँद शाम को ही हमेशा की तरह निकल रहा है

सब खुश हैं सब ही मौज में हैं दिल भी सुना यूँ ही बहुत बहल रहा है
चेहरों की चमक देखिये गालों का रंग भी जरा सा नहीं बदल रहा है

चारों तरफ चैन है बैचेन एक भी कहीं ढूँढे नहीं मिल रहा है
संत हो गये हैं सारे इतना संतोष है सम्भाले नहीं सम्भल रहा है

लिखा हुआ बोरों के हिसाब से गोदामों में लाईन लगा तुल रहा है
कुछ पढ़ दिया जा रहा है कुछ इंतजार में है करवट बदल रहा है

कुछ लिखने को कहीं कुछ बकने को कहीं कुछ ईनाम मिल रहा है
‘उलूक’ अच्छा है कम कर दिया बकना तूने
ग़ाँधी को लगी गोली को आज सलाम मिल रहा है ।


चित्र साभार: https://indianexpress.com/

सोमवार, 7 जून 2021

किसी को कुछ पता ना चले और लिखे लिखाये के पैदा होने से पहले उसकी मौत हो जाये

 

लिखने की इच्छा है लिखो किसने रोका है 

थोड़ा सा लिखो कुछ छोटा सा लिखो
समझ ले कोई भी कुछ ऐसा लिखो

उस लिखे पर कोई भी कुछ भी लिख ले जाये
भटक ना जाये बहक ना जाये
फिर से दुबारा ढूँढता हुआ आये कुछ ऐसा लिखो

पर कैसे लिखो बिना सोचे समझे

कुछ लिखो या कुछ समझे हुऐ पर कुछ समझाकर लिखो
मुद्दे पर लिखो या कुछ तकिये रजाई और गद्दे पर लिखो

अपने अन्दर के जमा किये हुऐ कूढ़े को थोड़ा सा सरका कर
दिमाग के किसी कोने पर
पड़ोसन के नये खरीदे हुऐ नये ब्राँडेड पर्दे पर लिखो

लेकिन कुछ तो लिखो

क्या पता लिखते लिखते लिखने को समझ आ जाये
खुद ही अपने आप सही सपाट और सीधा सच्चा सा
लिखने लिखाने लायक
 निकल कर दौड़ ले पन्ने पर सफेद
बनाते हुऐ ओल वैदर रोड टाईप की सरकार की
महत्वाकाँक्षी सड़क जैसा कुछ

लिखते ही
बादल हटें कोहरा किनारे से निकलता
शर्माता हुआ खुद ही भाप हो जाये

सजीव लिखते हैं सभी लिखते हैं
जीव लिखते हैं निर्जीव लिखते हैं

लिखने लिखाने की दुनियाँ में
कब कौन कहाँ से कैसे लिखते हैं
किसने सोचना है जमीन हो जाये
 
लिखना जरूरी है
किसी के लिये लिखना मजबूरी है

किसी के लिये
शौक से लिखिये शौक लिखिये मौज हो जाये

कोई नहीं लिखता है
वो सब अपने अंदर का ‘उलूक’
जो वो करता है
बताता नहीं है किसी को

लिखने लिखाने से उसके किसी को पता नहीं चलना है

वो वही लिखता है
जिसके लिखने से किसी को कुछ पता ना चले
और लिखे लिखाये के पैदा होने से पहले
उसकी मौत हो जाये।

चित्र साभार: https://promotionalproductsblog.net/

रविवार, 15 सितंबर 2019

काम है रोजगार है बेरोजगार मौज के लिये बेरोजगार है ना जाने कब बेवकूफों के समझ में आयेगा



कितने पन्ने 
और 
कब तलक 

आखिर कोई 

रद्दी में 
बेचने 
के 
लिये जायेगा

लिखते लिखते 
कुछ भी 
कहीं भी 

कभी 
किसी दिन 
कुछ तो 
सिखायेगा

शायद 
किसी दिन 
यूँ ही 
कभी कुछ 

ऐसा भी 
लिख 
लिया जायेगा

याद 
भी रहेगा 
क्या लिखा है 

और 
पूछने पर 
फिर से 

कह भी 
दिया जायेगा

रोज के 
तोड़ने 
मरोड़ने 
फिर 
जोड़ देने से 

कोई 
कुछ तो 
निजात पायेगा

घबराये 
से 
परेशान 
शब्दों को 

थोड़ी सी 
राहत ही सही 

कुछ 
दे पायेगा 

जिस 
दिन से 
छोड़ देगा 

देखना 
टूटते घर को 

और 
सुनना 

खण्डहर 
की 
खामोशियों को 

देखना 
उस दिन से 

एक 
खूबसूरत 
लिखा लिखाया 
चाँद 

घूँघट 
के 
नीचे से 
निखर 
कर आयेगा

अच्छा 
नहीं होता है 

खुद ही 
कर लेना 
फैसले 

लिखने लिखाने के 

रोज के 
देखे सुने 
पर 

कुछ नहीं 
लिखने वाले की 

नहीं लिखी 
किताबों 
को ही बस 

हर 
दुकान में 
बेचने 
का फरमान 

‘उलूक’ 
पढ़े लिखों का 
कोई खास 
अनपढ़ ही 

तेरे घर का 
ले कर के 
सामने से 
निकल 
के 
आयेगा।
चित्र साभार: https://myhrpartnerinc.com/

बुधवार, 22 अक्टूबर 2014

दीप जलायें सोच में आशा की रोशनी के परेशानियों को उड़ायें मौज में हजूर इस बार

रोशनी का
त्यौहार
विज्ञापनों से
पटे हुऐ अखबार
दुकाने सजी हुई
भरा हुआ बाजार
सब कुछ पहुँच में
खाली जेबों
के बावजूद
खरीदने में लगा
सब कुछ
खरीददार
मोबाइल में
संदेशों की
भरमार
गली गली
खुले बैंक
पैदल चलने
में लगे कुछ
बेवकूफ
सड़कें पटी
गाड़ियों से
आसानी से
मिले घर
पर ही उधार
दुकान और
बाजार से अलग
आकर्षक सुंदर
और खीँचता
अपनी तरफ
डॉट काम का
कारोबार
मँगा लीजिये
कुछ भी कहीं भी
घर बैठे बैठे
जरूरत नहीं
भेज दीजिये
बटुऐ को
तड़ी पार
तेज रोशनी
सस्ते दीप
विज्ञान का
चमत्कार
मेड इन चाईना
प्रयोग कीजिये
फिर फेंक दीजिये
कूड़े की चिंता
दिमाग से कर
दीजिये बाहर
झाडू‌ लेकर
टाई कोट वाले
भी खड़े हैं
नहीं होते शर्मसार
मेक इन इँडिया
आँदोलन करने
के लिये रहें तैयार
स्वदेशी खरीदने
का हल्ला मचायें
जलूस निकाले
हर जगह बार बार
रोशनी सरसों के
तेल से भरे दीपों
की सोच में लायें
शाँति और सुख
की आशा से
रहें सरोबार
कथनी और करनी
के अंतर को
आत्मसात
कर लेने के
जतन करें
एक हजार
दीपावली मौज
में मनायें सरकार
शुभकामनाऐं
सभी को
ढेर सारी
मित्रों सहित
सपरिवार ।
चित्र साभार: http://www.shutterstock.com

शनिवार, 8 फ़रवरी 2014

लिखना किसी के लिये नहीं अपने लिये बहुत जरूरी हो जाता है

किसी
का शौक
किसी के
लिये मौज

किसी के
लिये काम
और
किसी के लिये
धंधा होता होगा

अपने
लिये तो
बस एक
मजबूरी
हो जाता है

किसी
डाक्टर ने
भी नहीं
कहा कभी

पर जिंदा
रहने के लिये
लिखना
बहुत जरूरी
हो जाता है

क्या किया जाये

अगर
अपने ही
चारों तरफ

मुर्दा मुर्दों
के साथ
दिखना शुरु
हो जाता है

जीवन
मृत्यू का गुलाम
हो जाता है

ऐसे समय में
ही महसूस होना 

शुरु हो जाता है

अपनी
लाश को
ढो लेना
सीख लेना
कम से कम
बहुत जरूरी
हो जाता है

हर जगह लगे
होते हों अगर पहरे
सैनिक और सिपाही
चले गये हों
नींद में बहुत गहरे

रोटी छीनने वाला
ही एक रसोईया
बना दिया जाता है

ऐसे में भूखा सोना
मजबूरी हो जाता है

लिखने से भूख
तो नहीं मिटती
पर लिखना बहुत
जरूरी हो जाता है

हर जगह हर कोई
तलाश में रहने
लगता है एक कंधे के

अपने सबसे खास
के पीछे से उसी के
कंधे पर बंदूक रख
कर गोलियाँ चलाता है

गिरे खून का हिसाब
करने में जब दिल
बहुत घबराता है

जिंदा रहने के लिये
ऐसे समय में ही
लिखना बहुत जरूरी
हो जाता है

कोई किसी के लिये
लिखता चला जाता है
कोई खुद से खुद को
बचाना तक नहीं
सीख पाता है

लिखना तब भी
जरूरी हो जाता है

इस खाली जगह पर
एक लगाम जब तक
कोई नहीं लगाता है

लिखना बहुत
जरूरी हो जाता है

मकड़ियाँ जब बुनने
लगे मिल कर जाल
मक्खियों के लिये
कोई रास्ता नहीं
बच पाता है

कभी कहीं तो लगेगी
शायद कोई अदालत
का विचार अंजाने
में कभी आ ही जाता है

सबूत जिंदा रखने
के लिये भी कभी
लिखना बहुत
जरूरी हो जाता है।