उलूक टाइम्स: खुले आम
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शनिवार, 23 मार्च 2013

बेशरम उलूक है तू नहीं !

सबको
आता है 

बहुत
आता है

हवा देना
किसी भी बात को

नहीं आता है
लेकिन
कह देना
खुद बा खुद
उसी बात को

हर बात पर
ढूँता है वो
एक मुँह

जो कह डाले
खुले आम
उस बात को

उसकी
इसी बात
से वो खास
हो जाता है

कल तक
आम होता है
आज बादशाह
हो जाता है

बात उसकी
कहने वाला
भी बहुत
खास हो
जाता है

वो बहुत
सालों से
इसी तरह
कर रहा है
बातों की बातें

बहुत
बेशरम है वो
लेकिन
कपडे़ शानदार
पहन के आता है

देखने वाले
इज्जत से पेश
आते हैं

सारे के सारे
आस पास वाले
किसी को पता
भी नहीं होता है

घर जाता है
तो तबियत से
जूते खाता है

अब क्या क्या
कहानी सुनाये
‘उलूक’
किस किस को
यहाँ आ के

उसको तो
आदत है
कहने की

जो
किसी से
कहीं नहीं
कभी
कहा जाता है ।

मंगलवार, 19 फ़रवरी 2013

तिनका दाढ़ी और चोर

अब 
अपने खेत में भी 
अपना ही 
अनाज 
उगाना 
जैसे 
कोई गुनाह होते जा रहा है 

जिसे देखो
जोर लगा कर पूछते हुऎ 
जरा भी
नहीं शरमा रहा है 

भाई
तू आजकल दाढ़ी रखे हुऎ 
शहर के अंदर 
खुले आम
क्यों नजर आ रहा है

दाढ़ी रखना 
जैसे 
मातम का कोई निशां 
हुऎ जा रहा है 

कोई
मुँह के कोने से मुस्कुरा रहा है

जैसे
मेरा कुलपति मेरे लिये अलग से 
कोई
दाढ़ी इंक्रीमेंट का जी ओ लेकर
अभी अभी आ रहा है 

दूसरा 
दाढ़ी और मेरी उम्र का हिसाब लगा रहा है 

बगल वाले से कह रहा है 
ये शायद अवकाश गृहण कर के घर आ रहा है 

तीसरे को भी
बहुत मजा सा आ रहा है 
दाढ़ी को काला करने का सस्ता जुगाड़ 
मुफ्त में समझा रहा है 

एक तो
इतना गुस्ताख हुआ जा रहा है 

दाढ़ी
तुमपर बिल्कुल नहीं जम रही है 
कहे जा रहा है

हद देखिये 
तुम्हारी पत्नी
तुम्हारी पुत्री नजर आने लगी है 
तक कहने से
बाज नहीं आ रहा है 

आगे पता नहीं
कौन कौन से प्रश्न 
ये दाढ़ी सामने लेकर आ रही है 

लोगों को
पता नहीं साफ साफ
क्यों नहीं बता पा रही है 

दाढ़ी वाला भारी तिनका 
अब अपनी जेब में नहीं छुपा पा रहा है 
इसलिये दाढ़ी उगाये चला जा रहा है 

यही तिनका
अब दाढ़ी में 
सारे शरीफों को
दूर ही से नजर आ रहा है 

इसलिये
कुछ ना कुछ राय
दाढ़ी पर
 जरूर ही दे कर जा रहा है । 

चित्र साभार: 
https://www.psychologytoday.com/