उलूक टाइम्स: गुनाह
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रविवार, 10 दिसंबर 2017

जानवर पैदा कर खुद के अन्दर आदमी मारना गुनाह नहीं होता है

किस लिये
इतना
बैचेन
होता है

देखता
क्यों नहीं है
रात पूरी नींद
लेने के बाद भी

वो दिन में भी
चैन की
नींद सोता है

उसकी तरह का ही
क्यों नहीं हो लेता है

सब कुछ पर
खुद ही कुछ
भी सोच लेना
कितनी बार
कहा जाता है
बिल्कुल
भी ठीक
नहीं होता है

नयी कुछ
लिखी गयी
हैं किताबें
उनमें अब
ये सब भी
लिखा होता है

सीखता
क्यों नहीं है
एक पूरी भीड़ से

जिसने
अपने लिये
सोचने के लिये
कोई किराये पर
लिया होता है

तमाशा देखता
जरूर है पर
खुश नहीं होता है

किसलिये
गलतफहमी
पाल कर
गलतफहमियों
में जीता है

कि तमाशे पर
लिख लिखा
देने से कुछ

तमाशा फिर
कभी भी
नहीं होता है

तमाशों
को देखकर
तमाशे के
मजे लेना
तमाशबीनों
से ही
क्यों नहीं
सीख लेता है

शिकार
पर निकले
शिकारियों को
कौन उपदेश देता है

‘उलूक’
पता कर
लेना चाहिये

कानून जंगल का
जो शहर पर लागू
ही नहीं होता है

सुना है
जानवर पैदा कर
खुद के अन्दर

एक आदमी को
मारना गुनाह
नहीं होता है ।

चित्र साभार: shutterstock.com

शनिवार, 12 सितंबर 2015

गुनाह करने का आजकल बहुत बड़ा ईनाम होता है

तेरी समझ में
आ रहा होता है
गुनाह और
गुनहगार
कहाँ नहीं होता है
तुझे भी पता होता है
होता रहे इससे
कुछ नहीं होता है
तू बेचता क्या है
ना तू वकील है
ना ही जज है
ना तूने मुकद्दमा
ही ठोका होता है
फिर तुझे किस
बात की खुजली
हर जगह होती है
खुजली होती है
तो खुजली का
मलहम कहीं से
क्यों नहीं लेता है
अब कोई कापी
किसी को दो घंटे
के लिये बाहर कहीं
से कुछ लिख लाने
के लिये दे देता है
तेरे कहने से
क्या होता है
सब को
पता होता है
तब भी क्या
होना होता है
जब कहीं रपट
नहीं होती है
ना ही कोई किसी
से कुछ कहता है
फिर कोई किसी को
किसी की जगह पर
परीक्षा में लिखने
लिखाने का ठेका
अगर दे भी देता है
तहकीकात होना
दिखाना ही काफी
और बहुत होता है
नाटक करने के लिये
सारा जंतर जुगाड़
किया गया होता है
हर जगह होता है
तेरे यहाँ भी किया
जा रहा होता है
तेरी किस्मत में
रोना लिखा होता है
तू क्यों नहीं दहाड़े
मार मार कर रोता है
देखा कभी किसी
बड़े चोर को
एक छोटा चोर
फाँसी देने का
हुकुम कहीं देता है
निपटाने के लिये
होती हैं ये सारी
नौटंकियाँ हर जगह
दिख जाता है
गुनहगार
माला पहने हुऐ
कहीं ना कहीं
दिख जाता है
जाँच करने वाला
चोर ही उसे
फूल का एक
गुच्छा बना
कर देता है
जो अखबार में
कभी भी कहीं
नहीं होता है
ऐसी खबर को
देने का हक
हर किसी को
नहीं होता है
‘उलूक’ तोते को
दी जाती है हमेशा
हरी मिर्च खाने को
माना कि उल्लू को
कोई नहीं देता है
तू भी कभी कभी
कुछ ना कुछ इस
तरह का खुद ही
खरीद कर क्यों
नहीं ले लेता है
मिर्ची खा कर
सू सू कर लेना
ही सबसे अच्छा
और सच में बहुत
अच्छा होता है।
चित्र साभार: www.dreamstime.com

बुधवार, 23 अक्टूबर 2013

सरकारी खर्चे पर सिखा रहे हैं ताली बजाना क्यों नहीं जाता है !

समय आने
पर ही
सब कुछ
सीखा
जाता है

चिंता नहीं
करनी चाहिये
अगर किसी
चीज को
करना नहीं
आता है

अब कोई
माँ के पेट
से ही सब
कुछ कर
लेना सीख
नहीं पाता है

हर कोई
अभिमन्यु
जैसा ही
 हो जाये
ऐसा भी
हर जगह
देखा नहीं
जाता है

ऐसा कुछ
हुआ था
कभी
बस
महाभारत
की कहानी
में ही सुना
जाता है

आश्चर्य भी
नहीं करना
चाहिये
अगर कोई
हलवाई
कपड़े सिलता
हुआ पाया
जाता है

कौन सा
गुनाह हो
गया इसमें
अगर कोई
डाक्टर मछली
पकड़ने को
चला जाता है

मेरी समझ
में बस इतना
ही नहीं
आ पाता है

थोड़ा सा
धैर्य रखने में
किसी का
क्या चला
जाता है

कोई माना
किसी को
खुश करने
के लिये कहीं
कठपुतली
का नाच
करवाता है

तालियां बजाने
के लिये
तुझे बुलाना
चाहता है

क्यों
सोचता है
तुझे तो
ताली बजाना
ही नहीं
आता है
चले जाना
चाहिये जब
सरकारी
खर्चे पर
बुलाया
जाता है

जब जायेगा
देखेगा
तभी तो
कुछ सीख
पायेगा
फिर मत
कहना कभी
बड़े बड़े
लोगों के
कार्यक्रमों
में तुझे
भाव ही
नहीं दिया
जाता है ।

मंगलवार, 19 फ़रवरी 2013

तिनका दाढ़ी और चोर

अब 
अपने खेत में भी 
अपना ही 
अनाज 
उगाना 
जैसे 
कोई गुनाह होते जा रहा है 

जिसे देखो
जोर लगा कर पूछते हुऎ 
जरा भी
नहीं शरमा रहा है 

भाई
तू आजकल दाढ़ी रखे हुऎ 
शहर के अंदर 
खुले आम
क्यों नजर आ रहा है

दाढ़ी रखना 
जैसे 
मातम का कोई निशां 
हुऎ जा रहा है 

कोई
मुँह के कोने से मुस्कुरा रहा है

जैसे
मेरा कुलपति मेरे लिये अलग से 
कोई
दाढ़ी इंक्रीमेंट का जी ओ लेकर
अभी अभी आ रहा है 

दूसरा 
दाढ़ी और मेरी उम्र का हिसाब लगा रहा है 

बगल वाले से कह रहा है 
ये शायद अवकाश गृहण कर के घर आ रहा है 

तीसरे को भी
बहुत मजा सा आ रहा है 
दाढ़ी को काला करने का सस्ता जुगाड़ 
मुफ्त में समझा रहा है 

एक तो
इतना गुस्ताख हुआ जा रहा है 

दाढ़ी
तुमपर बिल्कुल नहीं जम रही है 
कहे जा रहा है

हद देखिये 
तुम्हारी पत्नी
तुम्हारी पुत्री नजर आने लगी है 
तक कहने से
बाज नहीं आ रहा है 

आगे पता नहीं
कौन कौन से प्रश्न 
ये दाढ़ी सामने लेकर आ रही है 

लोगों को
पता नहीं साफ साफ
क्यों नहीं बता पा रही है 

दाढ़ी वाला भारी तिनका 
अब अपनी जेब में नहीं छुपा पा रहा है 
इसलिये दाढ़ी उगाये चला जा रहा है 

यही तिनका
अब दाढ़ी में 
सारे शरीफों को
दूर ही से नजर आ रहा है 

इसलिये
कुछ ना कुछ राय
दाढ़ी पर
 जरूर ही दे कर जा रहा है । 

चित्र साभार: 
https://www.psychologytoday.com/