सब्जी
और घास
साथ साथ
उगती हैं
दूर से
देखने पर
दोनों एक
सी नजर
भी आती हैं
पर सब्जी
पकाने के
लिये घास
नहीं काटी
जाती है
बकरियों के
रेहड़ में
कुत्ते भी
साथ में हों
तब भी
वही बात
हो जाती है
मांंसाहारियों
के द्वारा
खाने के लिये
बकरियाँ ही
काटी जाती हैं
हिंदी में लिखी
किसी की
अपने घर
की रोज की
चुगलखोरी
साहित्य में नहीं
गिनी जाती हैं
कोई कुछ
लिख रहा
हो अगर
पहले उसकी
लिखी गई
बातों को
समझने की
कोशिश की
जाती है
अपने ही
घर के किसी
आदमी के
द्वारा कही
जाती हैं
और
समझ में
रोज रोज
ही नहीं अगर
आती हैं तो
किसी दिन
कभी पहले
उससे ऐसी
उल जलूल
क्यों लिखी हैं
इस तरह
की बातें
पूछे जाने
की कोशिश
की जाती है
काले अक्षरों
की भैंसे
बनाना अच्छी
बात नहीं
मानी जाती हैं
अक्षरों की
भैंसों की
रेहड़ को
हाँकने वाले
की तुलना
साहित्यकारों
से नहीं
की जाती है
‘उलूक’
बैचेन मत
हुआ कर
अगर कभी
तेरे कनस्तर
पीटने की
आवाज दूर
से किसी को
शादी बारात के
ढोल नगाड़े
का भ्रम पैदा
कर जाती हैं
साहित्यकार
समझने वाले
को समझदारी
आती है और
बहुत आती है ।
चित्र साभार: www.fotosearch.com
और घास
साथ साथ
उगती हैं
दूर से
देखने पर
दोनों एक
सी नजर
भी आती हैं
पर सब्जी
पकाने के
लिये घास
नहीं काटी
जाती है
बकरियों के
रेहड़ में
कुत्ते भी
साथ में हों
तब भी
वही बात
हो जाती है
मांंसाहारियों
के द्वारा
खाने के लिये
बकरियाँ ही
काटी जाती हैं
हिंदी में लिखी
किसी की
अपने घर
की रोज की
चुगलखोरी
साहित्य में नहीं
गिनी जाती हैं
कोई कुछ
लिख रहा
हो अगर
पहले उसकी
लिखी गई
बातों को
समझने की
कोशिश की
जाती है
अपने ही
घर के किसी
आदमी के
द्वारा कही
जाती हैं
और
समझ में
रोज रोज
ही नहीं अगर
आती हैं तो
किसी दिन
कभी पहले
उससे ऐसी
उल जलूल
क्यों लिखी हैं
इस तरह
की बातें
पूछे जाने
की कोशिश
की जाती है
काले अक्षरों
की भैंसे
बनाना अच्छी
बात नहीं
मानी जाती हैं
अक्षरों की
भैंसों की
रेहड़ को
हाँकने वाले
की तुलना
साहित्यकारों
से नहीं
की जाती है
‘उलूक’
बैचेन मत
हुआ कर
अगर कभी
तेरे कनस्तर
पीटने की
आवाज दूर
से किसी को
शादी बारात के
ढोल नगाड़े
का भ्रम पैदा
कर जाती हैं
साहित्यकार
समझने वाले
को समझदारी
आती है और
बहुत आती है ।
चित्र साभार: www.fotosearch.com