उलूक टाइम्स: टांग
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गुरुवार, 17 अक्तूबर 2013

आदमी जानवर को लिखना क्यों नहीं सिखाता है



घोड़े बैल या गधे को
अपने आप कहां कुछ आ पाता है

बोझ उठाना वो ही उसको सिखाता है
जिसके हाथ मे‌ जा कर पड़ जाता है

क्या उठाना है कैसे उठाना है
किसका उठाना है
इस तरह की बात
कोई भी नहीं कहीं सिखा पाता है

एक मालिक का एक जानवर
जब
दूसरे मालिक का जानवर हो जाता है

कोशिश करता है नये माहौल में भी
उसी तरह से ढल जाता है

एक घर का एक 
दूसरे घर का दूसरा होने तक तो
सब 
सामान्य सा ही नजर आता है

एक मौहल्ले का एक होने के बाद से ही
बबाल शुरु हो जाता है

एक जान एक काम
बहुत अच्छी तरह से करना चाहता है

क्या करे अगर कोई लादना चाहता है
और
दूसरा उसी समय जोतना चाहता है

जानवर इतने के लिये जानवर ही होता है
आदमी ना जाने क्यों सोचता है
कि
उसके कहने से तो बैठ जाता है
और
मेरे कहने पर सलाम ठोकने को नहीं आता है

अब ऐसे में 
तीसरा आदमी भी कुछ नहीं कर पाता है

आदमी के बारे में सोचने की
फुर्सत नहीं 
हो जिसके पास
जानवर की समस्या में
टांग अड़ाने की हिम्मत नही‌ कर पाता है ।

चित्र साभार: https://www.clipartof.com/

गुरुवार, 19 सितंबर 2013

सोचता हूं कुछ अलग सा लिखूं पर जब ऐसा देखता हूं तो कैसे लिखूं


बंदर को नहीं पता होता है 
उसका एक एक करतब 
मदारी के कितने काम का होता है 

बंदर को बंदर से जब लड़ाया जा रहा होता है 
मदारी भी मदारी की
टांग खींचने 
का गणित लगा रहा होता है 

मदारी भी क्या करे 
उसके ऊपर भी एक मदारी होता है 
बंदर तो पूरी श्रंखला का एक छोटा सा 
बस खिलाड़ी होता है 

बंदर की हार या बंदर की जीत तय करती है 
मदारी उसके अपने मदारी के कितने काम होता है 

जरुरी नहीं होता है कि हरेक मदारी 
अपने अपने बंदर के साथ होता है 
मौका पड़ता है तो 
दूसरे मदारी के बंदर का हाथ भी उसके हाथ होता है 

बंदर और बंदरों की लड़ाईयां 
मौके बे मौके प्रायोजित करवाई जाती हैं 

बंदर इस काम के लिये 
बहुत से बंदरों को अपने साथ लेता है 

बंदर कभी नहीं सोचता है 
वो क्यों और किसके लिये मैदान में होता है 

मदारी का काम भी अपने मदारी के लिये होता है 

हर मदारी के ऊपर भी एक मदारी होता है 
बंदर बस मैदान का एक खिलाड़ी होता है 
बंदर का बंदर भी उसका अपना नहीं होता है 
एक बंदर एक मदारी के लिये कुर्बान होता है 

ये सब कुछ तो हर समय हर जगह पर हो रहा होता है 

मेरे देश की एक खासियत है ये 
मजमा जरूर होता है हर समय होता है 
हर जगह हो रहा होता है 

'उलूक' खुद भी कभी एक मूक दर्शक होता है 
और कभी 
एक बंदर भी किसी का हो रहा होता है । 

चित्र साभार: 
http://kolkataphotoframes.blogspot.com/