बंदर को नहीं पता होता है
उसका एक एक करतब
मदारी के कितने काम का होता है
बंदर को बंदर से जब लड़ाया जा रहा होता है
मदारी भी मदारी की
टांग खींचने का गणित लगा रहा होता है
टांग खींचने का गणित लगा रहा होता है
मदारी भी क्या करे
उसके ऊपर भी एक मदारी होता है
बंदर तो पूरी श्रंखला का एक छोटा सा
बस खिलाड़ी होता है
बंदर की हार या बंदर की जीत तय करती है
मदारी उसके अपने मदारी के कितने काम होता है
जरुरी नहीं होता है कि हरेक मदारी
अपने अपने बंदर के साथ होता है
मौका पड़ता है तो
दूसरे मदारी के बंदर का हाथ भी उसके हाथ होता है
बंदर और बंदरों की लड़ाईयां
मौके बे मौके प्रायोजित करवाई जाती हैं
बंदर इस काम के लिये
बहुत से बंदरों को अपने साथ लेता है
बंदर कभी नहीं सोचता है
वो क्यों और किसके लिये मैदान में होता है
मदारी का काम भी अपने मदारी के लिये होता है
हर मदारी के ऊपर भी एक मदारी होता है
बंदर बस मैदान का एक खिलाड़ी होता है
बंदर का बंदर भी उसका अपना नहीं होता है
एक बंदर एक मदारी के लिये कुर्बान होता है
ये सब कुछ तो हर समय हर जगह पर हो रहा होता है
मेरे देश की एक खासियत है ये
मजमा जरूर होता है हर समय होता है
हर जगह हो रहा होता है
'उलूक' खुद भी कभी एक मूक दर्शक होता है
और कभी
एक बंदर भी किसी का हो रहा होता है ।
चित्र साभार:
http://kolkataphotoframes.blogspot.com/
साधारण बात, बड़ी सीख
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति आदरणीय-
जवाब देंहटाएंआभार आपका-