घोड़े बैल या गधे को
अपने आप कहां कुछ आ पाता है
बोझ उठाना वो ही उसको सिखाता है
जिसके हाथ मे जा कर पड़ जाता है
क्या उठाना है कैसे उठाना है
किसका उठाना है
इस तरह की बात
कोई भी नहीं कहीं सिखा पाता है
एक मालिक का एक जानवर
जब
जब
दूसरे मालिक का जानवर हो जाता है
कोशिश करता है नये माहौल में भी
उसी तरह से ढल जाता है
एक घर का एक
दूसरे घर का दूसरा होने तक तो
सब सामान्य सा ही नजर आता है
दूसरे घर का दूसरा होने तक तो
सब सामान्य सा ही नजर आता है
एक मौहल्ले का एक होने के बाद से ही
बबाल शुरु हो जाता है
एक जान एक काम
बहुत अच्छी तरह से करना चाहता है
क्या करे अगर कोई लादना चाहता है
और
दूसरा उसी समय जोतना चाहता है
जानवर इतने के लिये जानवर ही होता है
आदमी ना जाने क्यों सोचता है
कि
कि
उसके कहने से तो बैठ जाता है
और
और
मेरे कहने पर सलाम ठोकने को नहीं आता है
अब ऐसे में
तीसरा आदमी भी कुछ नहीं कर पाता है
आदमी के बारे में सोचने की
फुर्सत नहीं हो जिसके पास
फुर्सत नहीं हो जिसके पास
जानवर की समस्या में
टांग अड़ाने की हिम्मत नही कर पाता है ।
चित्र साभार: https://www.clipartof.com/
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (18-10-2013) "मैं तो यूँ ही बुनता हूँ (चर्चा मंचःअंक-1402) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'