रोशनी
ही रोशनी
इतनी
रोशनी
आँखें
चुधिया जायें
शोर ही शोर
इतना शोर
सुनना सुनाना
कौन किस से कहे
कान के पर्दे
फटने से कैसे
बचाये जायें
घुआँ धुआँ
आसमान
रात के तारे
और चाँद
की बात
करना बेकार
जब लगे
सुबह का
सूरज
धीमा धीमा
शरमाता सा
जाड़ों
में जैसे
खुद ही
ठिठुरता
कंंपकपाता
शाम
होने से
पहले ही
निढाल हो
ढल जाये
बूढ़ा
साँस
लेने के
लिये तड़पे
निढाल हो जाये
चिड़िया
कबूतर
डर कर
प्राण ही
छोड़ जायें
घर के
निरीह
जानवर
भयभीत से
दबाये हुऐ
पूँछें अपनी
इस
चारपाई
के नीचे से
निकल कर
दूसरी
चारपाई
किसी
कोठरी के
अंधेरे कोने में
शरण लेते
हुऐ नजर आयें
लक्ष्मी
घर की
करे इंतजार
बाहर की
लक्ष्मी के
आने का
नारायण
और
आदमी
दोनो
एक दिन
के आम
आदमी हो जायें
खुशी
होनी ही
चाहिये
बाँटने के
लिये पास में
किसी को
जरूरत है
या नहीं
एक अलग
ही मुद्दा
हो जाये
दो रास्तों
के बीच के
पेड़ की सूखी
टहनी पर
बैठा ‘उलूक’
दूर शहर
में कहीं
लगी
हुई आग
और रोशनी
के फर्क
को समझने
के लिये
दीपासन
लगाया हुआ
नजर आये
जैसा भी है
मनाना है
आईये दीप
जलायें
दीप पर्व
धूम धड़ाके
धूऐं से ही
सही मनायें ।
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ही रोशनी
इतनी
रोशनी
आँखें
चुधिया जायें
शोर ही शोर
इतना शोर
सुनना सुनाना
कौन किस से कहे
कान के पर्दे
फटने से कैसे
बचाये जायें
घुआँ धुआँ
आसमान
रात के तारे
और चाँद
की बात
करना बेकार
जब लगे
सुबह का
सूरज
धीमा धीमा
शरमाता सा
जाड़ों
में जैसे
खुद ही
ठिठुरता
कंंपकपाता
शाम
होने से
पहले ही
निढाल हो
ढल जाये
बूढ़ा
साँस
लेने के
लिये तड़पे
निढाल हो जाये
चिड़िया
कबूतर
डर कर
प्राण ही
छोड़ जायें
घर के
निरीह
जानवर
भयभीत से
दबाये हुऐ
पूँछें अपनी
इस
चारपाई
के नीचे से
निकल कर
दूसरी
चारपाई
किसी
कोठरी के
अंधेरे कोने में
शरण लेते
हुऐ नजर आयें
लक्ष्मी
घर की
करे इंतजार
बाहर की
लक्ष्मी के
आने का
नारायण
और
आदमी
दोनो
एक दिन
के आम
आदमी हो जायें
खुशी
होनी ही
चाहिये
बाँटने के
लिये पास में
किसी को
जरूरत है
या नहीं
एक अलग
ही मुद्दा
हो जाये
दो रास्तों
के बीच के
पेड़ की सूखी
टहनी पर
बैठा ‘उलूक’
दूर शहर
में कहीं
लगी
हुई आग
और रोशनी
के फर्क
को समझने
के लिये
दीपासन
लगाया हुआ
नजर आये
जैसा भी है
मनाना है
आईये दीप
जलायें
दीप पर्व
धूम धड़ाके
धूऐं से ही
सही मनायें ।
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