सुधर जा
कुछ नया पढ़ कुछ नया पढ़ा
जमाने के साथ जा
गेरुआ कपड़ा दिखा
तिरंगे की सरकार बनवा
करोड़ों खा लिये को गलिया
करोड़ों खा लिये को गलिया
हजार के नोट की गड्डी घर ले जा
सुधर जा
बहुत ज्यादा मत खिसिया
वो पढ़ा
जो कहीं भी किताबों में नहीं है लिखा
समुंदर देख कर आ
नल पे लगी कतार को हटवा
नहीं कर सकता है
तो किसी को ठेकेदार बनवा
सुधर जा
कुछ चेले चपाटे बनवा
दूसरों के पीछे लगा
अपनी रोटी सेक उनको पागल बना
सुधर जा
कुछ भी हो जा
कुछ उधर दे के आ कुछ इधर दे जा
तेरी कोई नहीं सुनता
तू फेसबुक में खाता बना
ब्लाग में फूलों की फोटो दिखा
हजार निष्क्रिय दोस्त बना
चार के लाईक पर इतरा
जो हमेशा देता है इज्जत
उस सरदार को दुआ देता जा
सुधर जा।
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