लिखा हुआ
पत्र एक
हाथ में
कोई लिया
हुआ था
किस समय
और कहाँ पर
बैठ कर
या खड़े होकर
लिखा गया था
शांति थी साथ में
या बहुत से लोगो
की बहस सुनते हुऐ
कुछ अजीब सी
जगह से बिना
सोचे समझे ही
कुछ लिख विख
दिया गया था
कितनी पागल
हो रही थी सोच
किस हाल में
शरीर बहक
रहा था
नहा धो कर
आया हुआ
था कोई
और खुश्बू से
महक रहा था
बह रही
थी नाक
छींकों
के साथ
जुखाम
बहुत
जोर का
हो रहा था
झगड़ के
आया था
कोई कहीं
आफिस में
बाजार में
या घर की
ही मालकिन से
पंगा हो रहा था
नीरो की
बाँसुरी भी
चुप थी
ना कहीं
रोम ही
जल रहा था
सब कुछ
का आभास
होना इस
आभासी
दुनियाँ में
कौन सा
जरूरी
हो रहा था
अपनी अपनी
खुशी
छान छान
कर कोई
अगर
एक छलनी
को धो रहा था
दुखी और बैचेन
दूसरा कोई कहीं
दहाड़े मार मार
कर रो रहा था
बहुत सी जगह
पर बहुत कुछ
लिखा हुआ पढ़ने
का शायद कुछ
ऐसा वैसा ही
असर हो रहा था
पत्र हाथ में
था उसके
पर पढ़ने का
बिल्कुल भी मन
नहीं हो रहा था
अपने अपने
कर्मो का
मामला होता है
कोई इधर तो
कोई उधर पर
खुद ही
ढो रहा था ।
पत्र एक
हाथ में
कोई लिया
हुआ था
किस समय
और कहाँ पर
बैठ कर
या खड़े होकर
लिखा गया था
शांति थी साथ में
या बहुत से लोगो
की बहस सुनते हुऐ
कुछ अजीब सी
जगह से बिना
सोचे समझे ही
कुछ लिख विख
दिया गया था
कितनी पागल
हो रही थी सोच
किस हाल में
शरीर बहक
रहा था
नहा धो कर
आया हुआ
था कोई
और खुश्बू से
महक रहा था
बह रही
थी नाक
छींकों
के साथ
जुखाम
बहुत
जोर का
हो रहा था
झगड़ के
आया था
कोई कहीं
आफिस में
बाजार में
या घर की
ही मालकिन से
पंगा हो रहा था
नीरो की
बाँसुरी भी
चुप थी
ना कहीं
रोम ही
जल रहा था
सब कुछ
का आभास
होना इस
आभासी
दुनियाँ में
कौन सा
जरूरी
हो रहा था
अपनी अपनी
खुशी
छान छान
कर कोई
अगर
एक छलनी
को धो रहा था
दुखी और बैचेन
दूसरा कोई कहीं
दहाड़े मार मार
कर रो रहा था
बहुत सी जगह
पर बहुत कुछ
लिखा हुआ पढ़ने
का शायद कुछ
ऐसा वैसा ही
असर हो रहा था
पत्र हाथ में
था उसके
पर पढ़ने का
बिल्कुल भी मन
नहीं हो रहा था
अपने अपने
कर्मो का
मामला होता है
कोई इधर तो
कोई उधर पर
खुद ही
ढो रहा था ।