कितने पन्ने
और
कब तलक
आखिर कोई
रद्दी में
बेचने
के
लिये जायेगा
लिखते लिखते
कुछ भी
कहीं भी
कभी
किसी दिन
कुछ तो
सिखायेगा
शायद
किसी दिन
यूँ ही
कभी कुछ
ऐसा भी
लिख
लिया जायेगा
याद
भी रहेगा
क्या लिखा है
और
पूछने पर
फिर से
कह भी
दिया जायेगा
रोज के
तोड़ने
मरोड़ने
फिर
जोड़ देने से
कोई
कुछ तो
निजात पायेगा
घबराये
से
परेशान
शब्दों को
थोड़ी सी
राहत ही सही
कुछ
दे पायेगा
जिस
दिन से
छोड़ देगा
देखना
टूटते घर को
और
सुनना
खण्डहर
की
खामोशियों को
देखना
उस दिन से
एक
खूबसूरत
लिखा लिखाया
चाँद
घूँघट
के
नीचे से
निखर
कर आयेगा
अच्छा
नहीं होता है
खुद ही
कर लेना
फैसले
लिखने लिखाने के
रोज के
देखे सुने
पर
कुछ नहीं
लिखने वाले की
नहीं लिखी
किताबों
को ही बस
हर
दुकान में
बेचने
का फरमान
‘उलूक’
पढ़े लिखों का
कोई खास
अनपढ़ ही
तेरे घर का
ले कर के
सामने से
निकल
के
आयेगा।
चित्र साभार: https://myhrpartnerinc.com/