उलूक टाइम्स: पाजामा
पाजामा लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
पाजामा लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, 4 फ़रवरी 2016

देश प्रेम

भाई कोई
नई चीज नहीं है
सबको ही देश की
पड़ी ही होती है
सभी देश के
भक्त होते हैं
देश के बारे में
ही सोचते हैं
देश के लिये ही
उनके पास
वक्त ही वक्त
होता है
झंडा देश का
बस उनके लिये
प्राण होता है
फहराना उसे
ऐसे लोगों के लिये
रोज का ही
काम होता है
बहुत बड़ी
बात होती है
देश के बारे में
सोचते सोचते
बीच में समय
अगर कुछ
निकाल ले जाते हैं
क्या बुराई है इसमें
अगर कुछ अपने
और अपने परिवार
के लिये भी थोड़ा
सा चुन्नी भर इस सब
के बीच कर
के ले जाते हैं
परिवार छोटा सा
या बहुत बड़ा भी
हो सकता है
कैसे बनाना है
काम करने कराने
पर निर्भर करता है
कहीं जाति से काम
चल जाता है
कहीं इलाका
काम में आता है
कहीं इलाके की
जाति काम में
आ जाती है
कहीं जाति का
इलाका काम
में आता है
किसी को गिराना हो
परिवार की खातिर
तो उसे बताना भी
नहीं कुछ पड़ता है
मजबूरी में उसे
उसके किसी इलाके
खास का होने का
खामियाजा उठाना
जरूर पड़ता है
चोर सारे एक से
एक मुहर वाले
पता नहीं कैसे
एक हो जाते हैं
समाज के अन्दर के
किसी ईमानदार का
पाजामा बहुत आसानी
से खींच ले जाते हैं
चोर के फोटो
अखबार के मुख्य पृष्ठ
पर रोज ही होते हैं
पाजामा उतरे हुऐ
लोग शरम से खुद
ही मर जाते हैं
जमाना पाजामा पाजामा
खेल रहा होता है
बेशरम हाथी के
ऊपर बैठा मुकुट पहन
आईसक्रीम
पेल रहा होता है
‘उलूक’ तू फिक्र
क्यों करता है
हाल अपने पैजामे
का देख कर
तेरे सभी चाहने
वालों में से सबसे
पहला तेरा ही
पैजामा खींचने की
फिराक में कब से
तेरे नखरे फाल्तू में
झेल रहा होता है ।

चित्र साभार: whiterocksun.com

बुधवार, 11 सितंबर 2013

उसका जरूर पढ़ना पर लिखना खुद अपना

ये नया
आईडिया
तेरे दिमाग में
किसने आज
घुसा दिया

वैसे भी तू
कुछ बुरा
तो नहीं
दिखता है
कुछ अजीब
सा क्यों आज
तुझको बना दिया

किसी ने
कहा तुझसे
मोर पंख
अगर कहीं
पर एक
चिपकायेगा
तो कौऎ
से मोर तू
जरूर
हो जायेगा

कोई कुछ भी
लिख रहा हो
उससे क्या
हो जायेगा

तू बहुत अच्छी
बकबास
कर लेता है
उसकी तरह
लिखने को
अगर जायेगा

कैसे सोच
लिया तूने
कवि सम्मेलन
के निमंत्रण
पाना शुरु
हो जायेगा

बच
अगर अभी भी
बच सकता है

लिख वही
जो तू खुद
लिख सकता है

छंद अलंकार
व्याकरण को
बीच में लायेगा
जो है वो भी
नहीं रहेगा
जो बनेगा
उसको कोई
सरकस वाला
जरूर उठा
के ले जायेगा

ये लेखन
की दुनिया
बहुत बड़ी
भूलभुलईया है

इसमें ज्यादा
दिमाग अगर
लगायेगा

कहाँ घुस के
कहाँ
निकल आया
कोई पता भी
नहीं कर पायेगा

अभी जाना
जाता है
पहचाना
 जाता है
कुछ आदमी
जैसा है
आदमियों
के बीच में
ये भी
माना जाता है

जैसा है
वैसा ही रहेगा
कुछ पायेगा
नहीं भी तो भी
ज्यादा कुछ
नहीं गवांऎगा

बंदर गुलाटियाँ
मारता हुआ ही
अच्छा लगता है

खुद सोच
कैसा दिखेगा
अगर कहीं वो
दो टांगो पर
चलता हुआ
देखा जायेगा

तू क्या
समझता है
जो जैसा
लिखता है
वो वैसा ही
दिखता है
बहुत से हैं
मेरी तरह
के बेईमान
यहाँ पर
जिनका ब्लाग
ईमानदार
ब्लाग के
नाम से
चलता है

 देखा देखी
और
भीड़ तंत्र के
जादू से निकल
कोशिश कर
और
अपनी टांगों
में ही चल
ऎसा ना हो
कहीं सब कुछ
तेरे हाथ
से जाये
कहीं निकल
अपनी टाँग
भी करे
चलने से
इनकार
और
बैसाखी जाये
हाथों से
दूर फिसल

बहुत कुछ है
जो तेरे पास है
और
तेरा अपना है
सामने वाले
के पास
दिख रहा
ताजमहल
खुद उसी
के लिये
एक सपना है

अपनी सुन्दर
झोपड़ी को
सबको दिखा
खूब जम
के इतरा
सब के लिखे
को पढ़ जरूर
किसी ने
नहीं रोका है
अपनी
बक बक को
बक बक
ही रहने दे
कविता को
बस एक
पाजामा
पहनाने से
ही तो
तुझे टोका है ।