ये नया
आईडिया
तेरे दिमाग में
किसने आज
घुसा दिया
वैसे भी तू
कुछ बुरा
तो नहीं
दिखता है
कुछ अजीब
सा क्यों आज
तुझको बना दिया
किसी ने
कहा तुझसे
मोर पंख
अगर कहीं
पर एक
चिपकायेगा
तो कौऎ
से मोर तू
जरूर
हो जायेगा
कोई कुछ भी
लिख रहा हो
उससे क्या
हो जायेगा
तू बहुत अच्छी
बकबास
कर लेता है
उसकी तरह
लिखने को
अगर जायेगा
कैसे सोच
लिया तूने
कवि सम्मेलन
के निमंत्रण
पाना शुरु
हो जायेगा
बच
अगर अभी भी
बच सकता है
लिख वही
जो तू खुद
लिख सकता है
छंद अलंकार
व्याकरण को
बीच में लायेगा
जो है वो भी
नहीं रहेगा
जो बनेगा
उसको कोई
सरकस वाला
जरूर उठा
के ले जायेगा
ये लेखन
की दुनिया
बहुत बड़ी
भूलभुलईया है
इसमें ज्यादा
दिमाग अगर
लगायेगा
कहाँ घुस के
कहाँ
निकल आया
कोई पता भी
नहीं कर पायेगा
अभी जाना
जाता है
पहचाना
जाता है
कुछ आदमी
जैसा है
आदमियों
के बीच में
ये भी
माना जाता है
जैसा है
वैसा ही रहेगा
कुछ पायेगा
नहीं भी तो भी
ज्यादा कुछ
नहीं गवांऎगा
बंदर गुलाटियाँ
मारता हुआ ही
अच्छा लगता है
खुद सोच
कैसा दिखेगा
अगर कहीं वो
दो टांगो पर
चलता हुआ
देखा जायेगा
तू क्या
समझता है
जो जैसा
लिखता है
वो वैसा ही
दिखता है
बहुत से हैं
मेरी तरह
के बेईमान
यहाँ पर
जिनका ब्लाग
ईमानदार
ब्लाग के
नाम से
चलता है
देखा देखी
और
भीड़ तंत्र के
जादू से निकल
कोशिश कर
और
अपनी टांगों
में ही चल
ऎसा ना हो
कहीं सब कुछ
तेरे हाथ
से जाये
कहीं निकल
अपनी टाँग
भी करे
चलने से
इनकार
और
बैसाखी जाये
हाथों से
दूर फिसल
बहुत कुछ है
जो तेरे पास है
और
तेरा अपना है
सामने वाले
के पास
दिख रहा
ताजमहल
खुद उसी
के लिये
एक सपना है
अपनी सुन्दर
झोपड़ी को
सबको दिखा
खूब जम
के इतरा
सब के लिखे
को पढ़ जरूर
किसी ने
नहीं रोका है
अपनी
बक बक को
बक बक
ही रहने दे
कविता को
बस एक
पाजामा
पहनाने से
ही तो
तुझे टोका है ।
आईडिया
तेरे दिमाग में
किसने आज
घुसा दिया
वैसे भी तू
कुछ बुरा
तो नहीं
दिखता है
कुछ अजीब
सा क्यों आज
तुझको बना दिया
किसी ने
कहा तुझसे
मोर पंख
अगर कहीं
पर एक
चिपकायेगा
तो कौऎ
से मोर तू
जरूर
हो जायेगा
कोई कुछ भी
लिख रहा हो
उससे क्या
हो जायेगा
तू बहुत अच्छी
बकबास
कर लेता है
उसकी तरह
लिखने को
अगर जायेगा
कैसे सोच
लिया तूने
कवि सम्मेलन
के निमंत्रण
पाना शुरु
हो जायेगा
बच
अगर अभी भी
बच सकता है
लिख वही
जो तू खुद
लिख सकता है
छंद अलंकार
व्याकरण को
बीच में लायेगा
जो है वो भी
नहीं रहेगा
जो बनेगा
उसको कोई
सरकस वाला
जरूर उठा
के ले जायेगा
ये लेखन
की दुनिया
बहुत बड़ी
भूलभुलईया है
इसमें ज्यादा
दिमाग अगर
लगायेगा
कहाँ घुस के
कहाँ
निकल आया
कोई पता भी
नहीं कर पायेगा
अभी जाना
जाता है
पहचाना
जाता है
कुछ आदमी
जैसा है
आदमियों
के बीच में
ये भी
माना जाता है
जैसा है
वैसा ही रहेगा
कुछ पायेगा
नहीं भी तो भी
ज्यादा कुछ
नहीं गवांऎगा
बंदर गुलाटियाँ
मारता हुआ ही
अच्छा लगता है
खुद सोच
कैसा दिखेगा
अगर कहीं वो
दो टांगो पर
चलता हुआ
देखा जायेगा
तू क्या
समझता है
जो जैसा
लिखता है
वो वैसा ही
दिखता है
बहुत से हैं
मेरी तरह
के बेईमान
यहाँ पर
जिनका ब्लाग
ईमानदार
ब्लाग के
नाम से
चलता है
देखा देखी
और
भीड़ तंत्र के
जादू से निकल
कोशिश कर
और
अपनी टांगों
में ही चल
ऎसा ना हो
कहीं सब कुछ
तेरे हाथ
से जाये
कहीं निकल
अपनी टाँग
भी करे
चलने से
इनकार
और
बैसाखी जाये
हाथों से
दूर फिसल
बहुत कुछ है
जो तेरे पास है
और
तेरा अपना है
सामने वाले
के पास
दिख रहा
ताजमहल
खुद उसी
के लिये
एक सपना है
अपनी सुन्दर
झोपड़ी को
सबको दिखा
खूब जम
के इतरा
सब के लिखे
को पढ़ जरूर
किसी ने
नहीं रोका है
अपनी
बक बक को
बक बक
ही रहने दे
कविता को
बस एक
पाजामा
पहनाने से
ही तो
तुझे टोका है ।
लिख वही जो तू
जवाब देंहटाएंखुद लिख सकता है
छंद अलंकार व्याकरण
को बीच में लायेगा
जो है वो भी नहीं रहेगा
बहुत सटीक .अपनी अलग पहचान होनो चाहिए . किसी की नक़ल नहीं
latest post गुरु वन्दना (रुबाइयाँ)
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल गुरुवार (12-09-2013) को "ब्लॉग प्रसारण : अंक 114" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है.
जवाब देंहटाएंअत्यन्त हर्ष के साथ सूचित कर रही हूँ कि
जवाब देंहटाएंआपकी इस बेहतरीन रचना की चर्चा शुक्रवार 13-09-2013 के .....महामंत्र क्रमांक तीन - इसे 'माइक्रो कविता' के नाम से जानाःचर्चा मंच 1368 ....शुक्रवारीय अंक.... पर भी होगी!
सादर...!
बेह्तरीन अभिव्यक्ति …!!गणेशोत्सव की हार्दिक शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें।
सादर मदन
बहुत कुछ है
जवाब देंहटाएंजो तेरे पास है
और तेरा अपना है ...बहित सही और सटीक कहा है आप ने सुशील जी
वाह..बेहतरीन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंअच्छी सीख ....आभार
जवाब देंहटाएंअच्छी सीख ....आभार
जवाब देंहटाएंखुबसूरत अभिवयक्ति...
जवाब देंहटाएं