टेढ़ा मेढ़ा
लिखा हुआ
हो कहीं पर
जिसका कोई
मतलब नहीं
निकल रहा हो
जरूरी नहीं
होता है
कि वो एक
कवि का
लिखा हुआ
लिखा हो
जिसे कविता
कहना शुरु
कर दिया
जाये और
तुरन्त ही
कुछ लोग
दूसरे लिखने
पढ़ने वाले
करने लगें
चीर फाड़
जैसे गलत
तरीके
से मर गये
या
मार दिये
गये जानवर
या
आदमी को
खोल कर
देखा जाता है
मरने के बाद
जिसे कहा
जाता है
हिंदी में
शव परीक्षा
इसलिये यहाँ
पोस्टमोर्टम
कहना उचित
प्रतीत होता है
चलन में है
और
पढ़ा लिखा
वैसे भी
हिंदी में
कहे गये को
कम ही
समझता है
अब ‘उलूक’
क्या जाने
ये भी कवि है
और
वो भी कवि है
सब कविता
लिखते हैं
अपनी अपनी
इसमें दोष
किसका है
उसका
जो कवि है
या उसका
जिसको
आदत है
वो मजबूरी
में किसी
रोज कुछ
ना कुछ
जो लिख
मारता है
कभी
कुत्ते पर
कभी
चूहे पर
और कभी
उसी तरह के
किसी
जानवर पर
जिसके
नसीब में
कुर्सी लिखी
होती है
लेकिन इन
सब में
एक बात
अटल सत्य है
टेढ़ा मेढ़ा
लिखने वाला
गलती से
लिखना पढ़ना
सीख भी
गया हो
कभी झूठ
नहीं बोलता है
उससे
कभी नहीं
कहा जाता
है कि
उसका
किसी कवि
से ही
ना ही किसी
कविता से ही
भगवान
कसम
कहीं कोई
रिश्ता
होता है
सब कवि
होते हैं
जो कविता
करते हैं
सबसे बड़े
बेवकूफ
तो वही
होते हैं ।
चित्र साभार: www.stmatthiaschool.org
लिखा हुआ
हो कहीं पर
जिसका कोई
मतलब नहीं
निकल रहा हो
जरूरी नहीं
होता है
कि वो एक
कवि का
लिखा हुआ
लिखा हो
जिसे कविता
कहना शुरु
कर दिया
जाये और
तुरन्त ही
कुछ लोग
दूसरे लिखने
पढ़ने वाले
करने लगें
चीर फाड़
जैसे गलत
तरीके
से मर गये
या
मार दिये
गये जानवर
या
आदमी को
खोल कर
देखा जाता है
मरने के बाद
जिसे कहा
जाता है
हिंदी में
शव परीक्षा
इसलिये यहाँ
पोस्टमोर्टम
कहना उचित
प्रतीत होता है
चलन में है
और
पढ़ा लिखा
वैसे भी
हिंदी में
कहे गये को
कम ही
समझता है
अब ‘उलूक’
क्या जाने
ये भी कवि है
और
वो भी कवि है
सब कविता
लिखते हैं
अपनी अपनी
इसमें दोष
किसका है
उसका
जो कवि है
या उसका
जिसको
आदत है
वो मजबूरी
में किसी
रोज कुछ
ना कुछ
जो लिख
मारता है
कभी
कुत्ते पर
कभी
चूहे पर
और कभी
उसी तरह के
किसी
जानवर पर
जिसके
नसीब में
कुर्सी लिखी
होती है
लेकिन इन
सब में
एक बात
अटल सत्य है
टेढ़ा मेढ़ा
लिखने वाला
गलती से
लिखना पढ़ना
सीख भी
गया हो
कभी झूठ
नहीं बोलता है
उससे
कभी नहीं
कहा जाता
है कि
उसका
किसी कवि
से ही
ना ही किसी
कविता से ही
भगवान
कसम
कहीं कोई
रिश्ता
होता है
सब कवि
होते हैं
जो कविता
करते हैं
सबसे बड़े
बेवकूफ
तो वही
होते हैं ।
चित्र साभार: www.stmatthiaschool.org