उलूक टाइम्स: प्रचार
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शनिवार, 20 अप्रैल 2024

शाबाश है ‘उलूक’ खबरची की खबर पर वाह कह के मगर जरूर आता है

 

किससे कहें क्या कहें
यहाँ तो कुछ भी समझ में ही नहीं आता है
ढूंढना शुरू करते हैं
जहां कोई भी अपना जैसा नजर नहीं आता है

सोच में तेरी ही कुछ खोट है ऐसा कुछ लगता है
सबका तुझे टेढ़ा देखना बताता है
सामने वाला हर एक सोचता है अपनी सोच
तुझे छोड़ हर कोई तालियाँ बजाता है  

मतदान करने की बातें सब ने की बहुत की
वोट देने की शपथ लेना दिखाता है
लोग घर से ही नहीं निकले जुखाम हो गया था
ऐसे में वोट देने कौन जाता है

परिवार के लोग ही नहीं दिखे
व्यस्त होंगे प्रचार में कहीं
अपना क्या जाता है
मतदान करवाने वालों की मजबूरी थी
कहना ही था ये भी आता है वो भी आता है

खबर मेरी थी मैंने बुलाये थे मीडिया वाले
चाय नाश्ता कराने में क्या जाता  है
छपा बहुत कुछ था घर की फोटो के साथ था
बस मैं ही नहीं था तो क्या हो जाता है

खबर देते हैं
जाने माने खबरची दुनिया जहां की
अपने घर में बैठ कर समझ में आता है

 वाह रे ‘उलूक’
तेरे घर तेरे शहर में हो रहे को तू देखता है
और अपना मुंह छुपाता है

 शाबाश है खबरचियों की ओर से
खबरची की खबर पर
वाह कह के मगर जरूर आता है

चित्र साभार: https://www.istockphoto.com/

रविवार, 29 जनवरी 2012

प्रचार बंद हुवा

शक्ति प्रदर्शन
चिल्ल पौं
हल्ला गुल्ला
भौं भौं
सब आज
हो गया पूरा
पांच बजे
और आम
जनता का
हुवा सवेरा
कान पक
गये थे
इतने दिनो
के शोर से
कल से
शायद बाग
की तितलियाँ
दिखाई दे जायेंगी
मधुमक्खियाँ वैसे
तो रोज ही
गुनगुनाया
करती ही हैं
पर अब उनकी
भिन भिन
सुनाई दे जायेंगी
नारे लगाते लगाते
थक गये होंगे
जो बेचारे
थोड़ा राहत
आज पायेंगे
नमक के
पानी से गरारे
भी शायद कुछ के
घरवाले करवायेंगे
जोश देखकर
लोगों का
वैसे आज मन
खुश बहुत हो गया
था मेरा
लग रहा था जैसे
नेता इस जलूस
के इसके बाद
बोर्डर पर
लड़ने जायेंगे ।