बकवास करने में
कौन सा क्या कुछ चला जाता है
कौन सा क्या कुछ चला जाता है
फिर आजकल
कुछ कहने सुनने क्यों नहीं आता है
कुछ कहने सुनने क्यों नहीं आता है
सूरज रोज सुबह
और चाँद शाम को ही जब आता है
अभी का अभी लिख दे
सोचने में दिन निकल जाता है
सोचने में दिन निकल जाता है
खबरें बीमार हैं माना सभी
अखबार बीमार नजर आता है
नुस्खा बकवास भी नहीं होती
बक देने में क्या जाता है
बक देने में क्या जाता है
ताला लगा है घर में
दिमाग बन्द हुआ जाता है
खुले दिमाग वालों को
भाव कम दिया जाता है
भाव कम दिया जाता है
थाली में सब है
गिलास में भी कुछ नजर आता है
भूख से नहीं मरता है कोई
मरने वालों में कब गिना जाता है
मरने वालों में कब गिना जाता है
सब कुछ लिखा होता है चेहरे पर
चेहरा किताब हो जाता है
पढ़ना किस लिये अपनी आँखों से
सब पढ़ कर कोई और सुनाता है
सब पढ़ कर कोई और सुनाता है
बकवास हो गया खुद एक ‘उलूक’
बकवास करना चाहता है
खींचते ही लकीरों में चेहरा कविता का
मुँह चिढ़ाना शुरु हो जाता है।
मुँह चिढ़ाना शुरु हो जाता है।
चित्र साभार: https://favpng.com/