लिखे हुऐ से
लिखने वाले के बारे में पता चलता है
क्या पता चलता है
जब पढ़ने वाला
स्वीकार करता है
लिखने वाले के लिखे हुऐ का
कुछ कुछ मतलब निकलता है
ऐसा कहने में
ऐसा भी लगता है
कहीं कुछ है सीधा साधा
जो सुलझने के बजाय बस उलझता है
एक का एक चीज को सोचना
फिर लिखने के लिये
उसे थोड़ा थोड़ा करके खोदना
कुछ दिख गया तो लिख डालना
नहीं दिखा तो कुछ भी नहीं बोलना
इस सब भाग दौड़ में शब्द दर शब्द को तोलना
कुछ का भारी हो जाना कुछ का हल्का पड़ जाना
कहने कहने तक बात का बतंगड़ हो जाना
है ना परेशानी की बात
सबसे बड़ी मुश्किल है
एक दो अदद पाठक को ढूंढना
उनका भी नखरों के साथ परोसे गये को सूंघना
लड्डू की तारीफ कर हल्दीराम की काजू नमकीन बोलना
इस सब में बहुत कुछ निकल के आ जाता है
बिना मथे भी दही से कैसे मक्खन को निकाला जाता है
लिखना कोई सीख पाये या ना पाये
एक होशियार
और समझदार पाठक
लेखक के लिखे का मतलब निकाल कर
लेखक को
जरूर समझा जाता है ।
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