लिखे हुऐ से
लिखने वाले के बारे में पता चलता है
क्या पता चलता है
जब पढ़ने वाला
स्वीकार करता है
लिखने वाले के लिखे हुऐ का
कुछ कुछ मतलब निकलता है
ऐसा कहने में
ऐसा भी लगता है
कहीं कुछ है सीधा साधा
जो सुलझने के बजाय बस उलझता है
एक का एक चीज को सोचना
फिर लिखने के लिये
उसे थोड़ा थोड़ा करके खोदना
कुछ दिख गया तो लिख डालना
नहीं दिखा तो कुछ भी नहीं बोलना
इस सब भाग दौड़ में शब्द दर शब्द को तोलना
कुछ का भारी हो जाना कुछ का हल्का पड़ जाना
कहने कहने तक बात का बतंगड़ हो जाना
है ना परेशानी की बात
सबसे बड़ी मुश्किल है
एक दो अदद पाठक को ढूंढना
उनका भी नखरों के साथ परोसे गये को सूंघना
लड्डू की तारीफ कर हल्दीराम की काजू नमकीन बोलना
इस सब में बहुत कुछ निकल के आ जाता है
बिना मथे भी दही से कैसे मक्खन को निकाला जाता है
लिखना कोई सीख पाये या ना पाये
एक होशियार
और समझदार पाठक
लेखक के लिखे का मतलब निकाल कर
लेखक को
जरूर समझा जाता है ।
चित्र साभार: https://www.shutterstock.com/
आपकी यह पोस्ट आज के (२८ अक्टूबर , २०१३) ब्लॉग बुलेटिन - कौन निभाता किसका साथ - पर प्रस्तुत की जा रही है | बधाई
जवाब देंहटाएंपढनेवाला शायद समझने में ज्यादा जोर लगाता है \
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट सपना और मैं (नायिका )
हम्म उम्दा पोस्ट
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार (29-10-2013) "(इन मुखोटों की सच्चाई तुम क्या जानो ..." (मंगलवारीय चर्चा--1413) में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय-
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 09 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंलाजवाब सृजन ।
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