उलूक टाइम्स: महीना
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गुरुवार, 31 अक्टूबर 2019

व्यंग और बरतन पीटने की आवाजों के बीच का हिसाब महीने के अन्तिम दिन



एक सी
नहीं 
मानी जाती हैं 

आधुनिक
चित्रकारी 

कुछ खड़ी 
कुछ पड़ी रेखायें 
खुद कूदी हुयी मैदान पर 
या
जबरदस्ती की मारी

और
कुछ भी
लिख 
देने की बीमारी 

होली पर
जैसे 
आसमान की तरफ 
रंगीन पानी मारती 

खिलखिलाते
बच्चे के 
हाथ की पिचकारी 

उड़ते
फिर फैल जाते हुऐ रंग 

बनाते
अपने अपने
आसमान

जमीन पर
अपने हिसाब से 
घेर कर
अपने हिस्से की जमीन

और
मिट्टी पर
बिछ गये चित्रों को
बेधती आँखें गमगीन

खोलते हुऐ
अपने सपनों
की 
बाँधी हुई
गठरियों पर 
पड़ चुकी
बेतरतीब गाँठों को 

कहीं
जमीन पर
उतरती तितलियाँ 

कहीं
उड़ती परियाँ
रंगीन परिधानों में 

फूलों
की सुगंध
कहीं चैन

तो 
कहीं
उसी पर
भंवरे बैचेन

किसी के लिये
यही सब 

महीना
पूरे होते होते

रसोई में
खाली हो चुके 

राशन के
डब्बों के ऊपर 
उधम मचाते
नींद उड़ाते 
रद्दी बासी
अखबार कुतरते
चूहे

किसी की
माथे पर पड़ी
चिंता की रेखायें

कहीं
कंकड़ पत्थर
से भरी 

कहीं
फटी उधड़ी
खाली हो चुकी
जेब 

किसी
कोने पर
खड़ी

एक
सच को

सच सच
लिख देने के
द्वंद से

आँख बचाती
सोच

ऊल जलूल
होती हुयी
दिशाहीन 

अच्छा होता है
कुछ

देखे अन्देखे
सुने सुनाये

उधड़े
नंगे हो चुके

झूठ 
के

पन्ने में
उतर कर
व्यंग के मुखौटे में
बेधड़क
निकल लेने
से

कभी कभी
यूँ ही
कुछ नहीं के

खाली बरतनों
को
पीट लेना 
‘उलूक’

महीने
के
अन्तिम दिन

कैलेण्डर
मत
देखा कर

राशन
नहीं होता है

लिखना

महीने का ।
चित्र साभार: https://www.timeanddate.com/

गुरुवार, 30 अक्टूबर 2014

कभी कुछ भी नहीं होता है कहने के लिये तब भी कुछ कुछ कह दिया जाता है


महीने की
अंतिम साँस लेने की
आवाजें आनी शुरु होती ही हैं
अंतिम सप्ताह के अंतिम दिनों में

और मरता भी है महीना
अठाईस से तीस नहीं भी तो
पक्का सौ प्रतिशत इक्तीस दिनों में

लिखने वाले कई होते हैं
रसोई के
खाली होते जा रहे डिब्बों पर
ध्यान नहीं देते हैं
भूख मर भी जाती है
खाली बीड़ी के बंडल के खोल रह जाते हैं

बीड़ी
धुआँ हो कर हवा में उड़ जाती है
बंडल की राख 
खाली चाय के टूटे कपों की
तलहटी में चिपक जाती है

जितनी बढ़ती है बैचेनी
उतनी कलम पागल होना शुरु हो जाती है

कलम का पागल हो जाना
सबको नजर भी नहीं आता है

ऐसे ऐरे गैरे लिखने वालों के बीच
पागलों का डाक्टर भी नहीं जाता है

एक नहीं कई कई हैं
गली गली में हैं 
मुहल्ले मुहल्ले में जिनके हल्ले हैं

अच्छा है
चिट्ठों के बारे में
उनको कोई नहीं बताता है

‘उलूक’
परेशान मत हो लगा रह
किसी को पता नहीं है
तू यहाँ रोज आता है रोज जाता है

चिट्ठागिरी है
कोई शेयर बाजार नहीं है
लिखने लिखाने का भाव
ना चढ़ता है ना ही कोई उतार पाता है

इधर
राशन खत्म होता है हर महीने
महीना पूरा होने से कुछ दिन पहले ही हमेशा

उधर लिखने वालों के बाजार में
एक शब्द के साथ कई शब्दों को
मुफ्त में दिया जाता है

चिट्ठागिरी है
कोई दादागिरी नहीं है
ज्यादा पता भी नहीं है अभी लोगों को

तब तक
जब तक यहाँ भी
निविदाओं को आमंत्रित नहीं किया जाता है ।

चित्र साभार: juiceteam.wordpress.com

शुक्रवार, 6 जून 2014

कुछ कहने के लिये बस कुछ कह लेना है

जो होना है
वो तो
होना है
होगा ही
होने देना है

किसी से
कहने से
कुछ होगा
किसे इस पर
कुछ पता
होना है

उनकी यादों
की यादों
को सोने
ही देना है

सपने किसी
के आते भी हों
तो आने देना है

बस कुछ दिनों
की बात और है
रुके रहना है

रोने वाले की
आदत होती है
रोने की उसे
रोने देना है

जिसके हाथों
में होती है
हमेशा खुजली
बस उसी
के हाथ में
हथौड़ा
ला कर
दे देना है

खोदने वालों
को मिल
चुका है
बहुत खोदने
का काम

अब किसी
और को
नहीं देना है

अन्दर की बात
को 
अन्दर
ही रहने देना है

बाहर के तमाशे
करने वालों को
करते रहने का
इशारा देना है

बहुत कुछ
हो रहा है
बहुत कुछ
अभी
होना ही
होना है

‘उलूक’
रोता
कलपता
ही अच्छा
लगता है
हँसने के
दिन आने में
अभी महीना है ।