उलूक टाइम्स: लकड़ी
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मंगलवार, 29 जुलाई 2025

मगर आज गांधी खुद अपनी ही लकड़ी लेकर भी खड़ा हो नहीं पाता है



लिखने में खुद के भगवान फूंकता है
और वो पसर भी जाता है
कोई ढूंढे मशाल ले कर के इंसान
मगर दूर तक नजर नहीं आता है

बड़ी शिद्दत से लिख कर
शब्दों में आईने उतार लाता है
अफसोस उसका खुद का चेहरा
कलम की रोशनाई में डूबा रह जाता है

दर्द गम खुशी सब होते हैं
लबालब भी होते हैं और छलकते भी हैं
अपने हिसाब से समय देखकर
लिखने वाले के बटुवे में
आंख कान मुंह ही केवल
और केवल बंद नजर आता है

पाठक का अपना ही होता है ईश्वर
पढ़ते समय वो अपने  साथ ले 
ही आता है
ईश्वर अल्लाह तेरो नाम सबको सन्मति दे भगवान
गाने के बोल लब से फिसलते हैं मगर
आज गांधी खुद अपनी ही लकड़ी लेकर भी
खड़ा हो नहीं पाता है

इतनी बेशर्मी भी अच्छी नहीं ‘उलूक’
जब समझना सब कुछ के बाद भी
नासमझी से
झूठ की वैतरणी को पार किया जाता है | 

चित्र साभार: https://in.pinterest.com/

बुधवार, 12 जून 2013

समाज को समझ सामाजिक हो जा

तेरे मन की जैसी नहीं होती है
तो 
बौरा क्यों जाता है 

सारे लोग लगे हैं जब लोगों को पागल बनाने में 
तू क्यों पागल हो जाता है 

जमाना तेजी से बदल रहा है 
कुछ तो अपनी आदतों को बदल डाल 
बात बात में फालतू की बात अब ना निकाल 

मान भी जा 
कुछ तो समझौते करने की आदत अब ले डाल 

देखता नहीं 
बढ़ती उम्र में भी आदमी बदल जाता है 
अच्छा आदमी होता है तो आडवानी हो जाता है 

अपने घर से शुरु कर के तो देख जरा 
थोड़ा थोड़ा घरवाली की बात पर
होना छोड़ दे अब टेढ़ा टेढ़ा

उसके बाद 
आफिस की आदतों में परिवर्तन ला 
साहब चाहते हों तुझे गधा भी बनाना 
वो भी बन कर के दिखा 
समझा कर 
तेरा कुछ भी नहीं जायेगा 
पर तेरा साहब जरूर एक धोबी हो जायेगा

सत्कर्म करने वाला ही मोक्ष पाता है 
किताबों में लिखा है ऎसा माना जाता है 
ऎसी किताबों को कबाड़ी को बेच कर के आ 
बहुमत के साथ रह बहुमत की बात कर 
बहुमत के मौन की इज्जत करने में
तेरा क्या जाता है 

तू इतना बोलता है 
तेरे को सुनने क्या कोई आता है 
समझने वाले लोग
समझदारों की बात ही समझ पाते हैं 
तेरे भेजे में ये कड़वा सच क्यों नहीं घुस पाता है 

अब भी समय है 
समझदारों में जा कर के शामिल हो जा 
अन्ना की टोपी पहन मोदी को माला पहना 
मौका आता है जैसे ही राहुल की सरकार बना 
सबके मन की जैसी करना अब तो सीख जा 
बात कहने को किसी ने नहीं किया है मना 

लेखन को धारदार बना 
लोहे की हो जरूरी नहीं लकड़ी की तलवार बना 

मन की जैसी नहीं हो रही हो तो मत बौरा 
खुद पागल क्यों होता है 
लोगों को पागल बना 

समाज से अलग थलग पड़ने का नहीं है मजा 
बहुमत को समझने की कभी तो कोशिश कर 
'उलूक' थोड़ी देर के लिये ही सही सामाजिक हो जा । 

चित्र साभार: https://www.gettyimages.in/