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मंगलवार, 20 दिसंबर 2016

‘उलूक’ गुंडा भी सत्य है और सत्य है उसकी गुंडई भी भटक मत लिख

गुंडे की
गुंडई
होनी ही
चाहिये
अब गुंडा
गुंडई
नहीं
करेगा
तो क्या
भजन
करेगा

वैसे ऐसा
कहना भी
ठीक नहीं है

गुंडे भजन
भी किया
करते हैं

बहुत
से गुंडे
बहुत
अच्छा
गाते हैं

कुछ गुंडे
कवि भी
होते हैं

कविता
करना
और
कवि होना
दोनो
अलग
अलग
बात हैंं

गुंडई
कुछ
अलग
किस्म
की
कविता है

गुंडई
के गीतों
की
धुनें भी
होती हैं
महसूस
भी
होती हैं
कपकपाती
भी हैं

बातें
सब ही
करते हैं

गुंडई का
प्रतिकार
करना भी
जरूरी
नहीं है

क्यों किया
जाये
प्रतिकार भी

जब बात
करने से
काम
निपट
जाता है

गुंडे
पालना
भी एक
कला
होती है

गुंडा नहीं
होने का
प्रमाणपत्र
होना और
गुंडो का
सरदार
होना

एक
गजब
की कला
नहीं
है क्या ?

अखबार
के पन्नों
पर गुंडों
की खबरें
भरत नाट्यम
करती हैं

पता नहीं

पूजा
मंदिर
भगवान
और
गुंडे
कुछ कुछ
ऐसा
जैसे
औड मैन
आउट
करने
का
सवाल

किसे
निकालेंगे ?

सनक की
क्या करे
कोई
किसी की
उस पर
खाली
गोबर सना
गोबर भरा
‘उलूक’
हो अगर

भटक
जाता है
कई बार
कोई
शरमाकर

गुंडो
और
उनकी
गुंडई
पर नहीं
उनके
रामायण
बांंचने की
तारीफ करते
हुए लोगों के
उपदेशों पर

लिखना
इसलिये
भी
जरूरी है
क्योंकि
गुंडा
और
गुंडई
खतरनाक
नहीं
होते हैंं

खतरनाक
होते हैं
वो सारे
समाज के
लोग जो
मास्टर
नहीं होते हैं
पर शुरु
कर देते हैं
हेड मास्टरी
समझाने
और
पढ़ाने को
गुंडई
समाज को।

चित्र साभार: http://i.imgur.com/iWre2oh.jpg

गुरुवार, 16 अप्रैल 2015

‘उलूक’ उवाच पर काहे अपना सर खपाता है

किसी को
कुछ 
समझाने के लिये कुछ नहीं लिखा जाता है

हर कोई 
समझदार होता है
जो आता है अपने हिसाब से ही आता है

लिखे हुऐ पर अगर 
बहुत थोड़ा सा ही
लिखा हुआ नजर आता है

आने वाला 
किसने कह दिया
कुछ लिखने लिखाने के लिये ही आता है

इतनी बेशर्मी होना 
भी तो अच्छी बात नहीं होती है
नहीं लिखने पर किसी के कुछ भी
नाराज नहीं हुआ जाता है

तहजीब का देश है
पैरों के निशान तो होते ही हैं
मिट्टी उठा कर थोड़ी सी सर से लगाया ही जाता है

कोयले का ही एक 
प्रकार होता है हीरा भी
कोयले से कम से कम नमस्कार तो किया जाता है

‘उलूक’ मत 
उठाया कर ऐसे अजीब से सवाल
जवाब देना चाहे कोई तो भी नहीं दिया जाता है

ठेकेदारी करने 
के भी उसूल होते हैं
समझ लेना चहिये
लिखने लिखाने के टेंडर कहा होते हैं
कहाँ खोले जाते हैं
हर बात बताने वाला
एक मास्टर ही हो ऐसा जरूरी भी नहीं है
और माना भी जाता है ।

चित्र साभार: www.mycutegraphics.com

सोमवार, 13 अप्रैल 2015

परीक्षा उत्तर पुस्तिका की आत्मा की कथा यानी उसके भूत की व्यथा

मास्टर होने
के कारण
कभी कभी
अपने हथियारों
पर नजर
चली ही
जाती है
पेन पेंसिल
किताब कापी
चौक ब्लैक बोर्ड
आदि में सबसे
महत्वपूर्ण
छात्र छात्राओं
की परीक्षा
उत्तर पुस्तिका
ही बस एक
नजर आती है
और जैसे ही
किसी दिन
अखबार या
दूरदर्शन में
कोई कापी
की खबर
सामने से
आ जाती है
अपनी ही
दुखती रग
जैसे
उधड़ कर
दुखना शुरु
हो जाती है
उत्तर पुस्तिका
तेरी कहानी
भी कोई
छोटी मोटी
नहीं होती है
तेरे छपने
के ठेके से
शुरु होती है
मुहर लग कर
सजा सँवर कर
लिखने वाले
तक पहुँचती है
लिखता भी है
लिखने वाला
पहरे में
डाकू जैसे
कक्ष निरीक्षकों
के सामने
दो से लेकर
तीन सौ
मिनट लगा कर
उसे कहाँ
पता होता है
किसी
मूल्याँकन केंद्र
नामक ठेके
पर जा कर
बड़ी संख्या में
बड़े पैसे में
बिकती है
किस्मत होती
है उसकी
अगर कोई
मास्टर उसे
जाँच पाता है
देखिये
जरा कुछ जैसे
आज का
एन डी टी वी
चपरासियों
और बाबुओं
से उनको
कहीं जाँचता
हुआ अपने
देश में ही
कहीं
दिखाता है
लोग बात
करते हैं
भ्रष्ठ होने
दिखने वाले
लोगों की
असली
सफेदपोश
इसी तरह के
शिक्षा के काले
व्यापार करने
वालों को
समाज लेकिन
भूल जाता है
जूते की माला
पहनने लायक
अपनी काली
करतूतों को
अपने मूल्यों
के भाषणों की
खिसियाहट में
छिपा ले जाता है
देखिये
इधर भी
कुछ जनाब
देश के
कर्णधार
हैं आप ही
करोंड़ों
अरबों के
इस काले धंधे
के व्यापार में
बिना सबूतों के
क्या क्या कर
दिया जाता है ।

चित्र साभार: examination paper : owl and pencil

सोमवार, 31 मार्च 2014

अपने खेत की खरपतवार को, देखिये जरा, देश से बड़ा बता रहा है

ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग
हैल्लो हैल्लो ये लो 

घर पर ही हो क्या?
क्या कर रहे हो?

कुछ नहीं
बस खेत में
कुछ सब्जी
लगाई है
बहुत सारी
खरपतवार
अगल बगल
पौंधौं के
बिना बोये
उग आई है
उसी को
उखाड़ रहा हूँ
अपनी और
अपने खेत
की किस्मत
सुधार रहा हूँ 


आज तो
वित्तीय वर्ष
पूरा होने
जा रहा है
हिसाब
किताब
उधर का
कौन बना
रहा है?


तुम भी
किस जमाने
में जी रहे
हो भाई
गैर सरकारी
संस्था यानी
एन जी ओ
से आजकल
जो चाहो
करवा लिया
जा रहा है
कमीशन
नियत होता है
उसी का
कोई आदमी
बिना तारीख
पड़ी पर्चियों
पर मार्च की
मुहर लगा
रहा है
अखबार
नहीं पहुँचा
लगता है
स्कूल के
पुस्तकालय
का अभी
तक घर
में आपके
पढ़ लेना
चुनाव की
खबरों में
लिखा भी
आ रहा है
किसका कौन
सा सरकारी
और कौन सा
गैर सरकारी
कहाँ किस
जगह पर
किस के लिये
सेंध लगा रहा है
कहाँ कच्ची हो
रही हैं वोट और
कहाँ धोखा होने
का अंदेशा
नजर आ रहा है 


भाई जी
आप ने भी तो आज
चुनाव कार्यालय की
तरफ दौड़ अभी तक
नहीं लगाई है
लगता है तुम्हारा ही
हिसाब किताब कहीं
कुछ गड़बड़ा रहा है
आजकल जहाँ मास्टर
स्कूल नहीं जा रहा है
डाक्टर अस्पताल से
गोल हो जा रहा है
वकील मुकदमें की
तारीखें बदलवा रहा है
हर किसी के पास
एक ना एक टोपी या
बिल्ला नजर आ रहा है
अवकाश प्राप्त लोगों
के लिये सोने में
सुहागा हो जा रहा है
बीबी की चिक चिक
को घर पर छोड़ कर
लाऊड स्पीकर लिये
बैठा हुआ नजर
यहाँ और वहाँ भी
आ रहा है
जोश सब में है
हर कोई देश के
लिये ही जैसे
आज और अभी
सीमा पर जा रहा है
तन मन धन
कुर्बान करने की
मंसा जता रहा है
वाकई में महसूस
हो रहा है इस बार
बस इस बार
भारतीय राष्ट्रीय चरित्र
का मानकीकरण
होने ही जा रहा है
लेकिन अफसोस
कुछ लोग तेरे
जैसे भी हैं ‘उलूक’
जिंन्हें देश से बड़ा
अपना खेत
नजर आ रहा है
जैसा दिमाग में है
वैसी ही घास को
अपने खेत से
उखाड़ने में एक
स्वर्णिम समय
को गवाँ रहा है ।

शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2014

सच सामने लाने में बबाल क्यों हो जाता है

सच कड़वा
होता है
निगला
नहीं जाता है

गांंधी के
मर जाने से
क्या हो जाता है
गांंधीवाद क्या
उसके साथ में
चला जाता है

उसका
सिखाया गया
सत्य का प्रयोग
जब किया जाता है
तो बबाल हो गया
करके क्यों बताया
और
दिखाया जाता है

बहुत बहुत
शाबाशी
का काम
किया जाता है
जब जैसा मन में
होता है वैसा कर
लेने की हिम्मत
कोई कर ले जाता है

उस के लिये
एक उदाहरण
हो जाता है
जो सोचता
वहीं पर है
पर करने
को कहीं
पीछे गली में
चला जाता है

सारे देश में
जब हर जगह
कुछ माहौल
एक जैसा
हो जाता है
ऐसे में  कहीं
किसी जगह से
निकल कर
कुछ बाहर
आ ही जाता है

सच बहुत
दिनों तक
छिपाया
नहीं जाता है

मिर्चा पाउडर का
प्रयोग तो आँसू
लाने के लिये
किया जाता है

देश का दर्द
बाहर ला
कर दिखाने
के लिये कुछ
तो करना ही
पड़ जाता है

संविधान में ही
इस सब
की व्यवस्था
कर लेने में
किसकी
जेब से
पता नहीं
क्या चला
जाता है

जैसा माहौल
सारे देश में
अंदर ही अंदर
छुपा छुपा के
हर दिल में
पाला जाता है

उसे किसी
के बाहर
ला कर
सच्चाई से
दिखा देने
पर क्यों
इतना बबाल
हो जाता है

भारत रत्न
ऐसे ही
लोगों को
देकर
कलयुगी
गांंधी का
अवतार
क्यों नहीं
कह दिया
जाता है

अगर
नहीं हो पा
रहा होता है
इस तरह का
किसी से कहीं

कुछ
सीखने सिखाने
के लिये मास्टर के
पास क्यों नहीं
भेज दिया जाता है

हाथ पैर
चलाये बिना
जिसको बहुत कुछ
करवा देने का
अनुभव होता है
जब ऐसा माना
ही जाता है ।

गुरुवार, 1 अगस्त 2013

डाँठ खाना सीख जा मास्टर से हैडमास्टर हो जा

घर में मां बाप
डाँठ खाते है
किसी को नहीं
कुछ बताते हैं
बाहर निकलते
ही बस थोड़ा
मुस्कुराते हैं
छात्रों का
अधिकार क्षेत्र
विस्तृत हो
जाता है
उस दिन से
जिस दिन से
वो छात्र नेता
हो जाते है
स्कूल के
मास्साब को
हड़काते हैं
घर का तो
पता ही नहीं
चल पाता है
वहाँ जो होता है
कोई बाहर
आकर नहीं
बताता है
मास्टर बेचारा
बड़बडाता ही
रह जाता है
कुछ कहने की
करता भी
है कोशिश
कह नहीं
पाता है
कुछ भी
छुप नहीं
पाता है
बहुत से
छात्रों के
बीच में
जो हड़काया
जाता है
छात्र नेता
का झंडा
बुलंद हो
जाता है
आने वाले
चुनावों में
अपने चारों
ओर अपने
जैसे मास्टर
हड़काने वाले
छात्रों की
भीड़ से
घिरा हुआ
अपने को
पाता है
कालर कमीज
का खुद
ही खड़ा
हो जाता है
मास्टर जिंदगी
भर मास्टर
एक रह
जाता है
छात्र नेता
स्कूल से
पार्लियामेंट
तक पहुँच
जाता है
हाँ जो
मास्टर डांठ
खाना सीख
ले जाता है
धीरे से
मुस्कुराता है
नेता जी
उतारते रहें
इज्जत कभी
भी कहीं भी
प्रतिक्रिया नहीं
दिखलाता है
कभी सरकार
से कुछ उसे
दे दिलवा
दिया जाता है
जो नहीं
मुस्कुरा पाता है
डांठ खाने
पर मुँह
बनाता है
ऎसे मास्टरों
को समाज
भी इज्जत
नहीं दे
पाता है
हड़का हुआ
एक मास्टर
जो अपनी
इज्जत नहीं
बचा पाता है
किसी के काम
कहीं भी नहीं
आ पाता है ।

गुरुवार, 21 जून 2012

तुमको तो कुछ आता है

सुना है तुमको
भी कुछ आता है
मेरे को मेरे पड़ोस
में रहने वाला यहीं का
एक मास्टर बताता है
लिखते विखते हो
फिर हिन्दी में टाईप
भी कर ले जाते हो
मेरी समझ में ये
लेकिन नहीं आता
इतनी मेहनत फालतू
काहे कर जाते हो
सीधे सीधे घर के
अखबार में ही
कुछ क्यों नहीं
छपा ले जाते हो
अखबार तो बहुत से
लोगों के द्वारा देखा
और पढा़ जाता है
जिसे कुछ भी नहीं
आता है वो भी अखबार
एक जरूर खरीद
के ले जाता है
अड़ोस पड़ोस मोहल्ले वाले
नाई धोबी सब्जी वाले
को भी पता इस तरह
चल जाता है 
कोई लिख रहा है कुछ
समझ मे नहीं भी आये
तब भी वो कुछ तो
समझ जाता है
कि लिखने वाले को
कुछ आता है
कंप्यूटर में लिखने से
तुमको क्या मिल जाता है
कितने आदमी को
ये बता पाता है
कि तुमको भी
कुछ आता है
कुछ रोज के मजबूरी में
इधर से गुजरने वालोंं को
तो पता चल जरूर जाता है
उसमें से एक कुछ
पढ़ पाता है और
कुछ कह भी जाता है
एक बिना पढे़ लाईक
कर के चला जाता है
किसी को समझ में
नहीं भी आये तो भी
उसको शेयर करने में
ही मजा आ जाता है।

सोमवार, 21 मई 2012

चोरवा विवाह और मास्टर

आमीरखान का
धारावाहिक
सत्यमेव जयते
हम नहीं भी देखते
दूर दर्शन का डब्बा
घर पर कपड़े से ढक
कर जरूर हैं रखते
साथियों के बीच हो
रही चर्चा से पर क्या
कह कर बचते
कल के साप्ताहिक
अंक का एक पहलू
रहा चोरवा विवाह
जिसको सुन सुन कर लोग
भर रहे थे आह पर आह
अजब गजब का किस्सा
बताया जा रहा था कि
देश के कुछ इलाकों में
होनहार बुद्धिमान वरों को
बंदूक की नोक पर उठवा
लिया जाता है
उसके बाद किसी एक कन्या
से उसका जबरदस्ती विवाह
भी करा दिया जाता है
प्रशाशक अभियंता चिकित्सक
प्राथमिकता से उठवाये जाते है
उसके बाद धमकी के देकर
वधू के साथ उसके घर
छोड़ दिये जाते हैं
वैसे तो होता क्या है
विवाह तो विवाह होता है
ऎसे होता है या वैसे होता है
किसी को भी इस किस्से में
मजा नहीं आ रहा था
तभी किसी ने एक नयी
बात वहां पर बताई
जिसको सुन कर सारे
चर्चाकारों के चेहरे पर
अच्छी सी मुस्कान आई
अब तो कभी कभी
मास्टरों को भी उठवा
लिया जाता है
उनका भी चोरवा विवाह
करवा दिया जाता है
इस बात से पता चला
मास्टर भी अब तरक्की
के रास्ते पर आ रहा है
कुछ लोकप्रियता इस तरह
से वो भी पा जा रहा है
सम्मानित लोगों के साथ
उसको भी कभी कभी
उठा लिया जा रहा है
चलो शादी के बाजार में
बड़े लोगों के बीच
कुछ कीमत कोई तो
उसकी भी लगा रहा है।

गुरुवार, 29 मार्च 2012

अंत:विषय दृष्टिकोण

विद्यालय से
लौट कर
घर आ रहा 
हूँ

आज का
एक वाकया
सुना रहा हूँ

सुबह जब
विद्यालय के
गेट पर पहुँचा

हमेशा मिलने
वाला काला कुत्ता
रोज की तरह
मुझपर
नहीं भौंका

आज वो
अपना मुँह
गोल गोल
घुमा रहा था

मैंने उसकी
तरफ देख
कर पूछा

ये क्या नया
कर रहे हैं
जनाब

बोला
मास्साब
क्यों करते हो
मुझसे मजाक

मैं सूँड
हिला कर
मक्खियाँ
भगा रहा हूँ

हाथी बनकर
उसका काम
भी निभा रहा हूँ

असमंजस में
मुझे देख कर
वो मुस्कुराया

थोड़ा सा
किनारे की
ओर खिसक
कर आया

फिर मेरे
कान में
धीरे से
फुसफुसाया

तुम कैमिस्ट्री
क्यों नहीं
पढ़ा रह हो

रोज फालतू
की एक
कविता यहाँ
चिपका रहे हो

जमाना
बहुत आगे
आजकल
जा रहा है

फिर तुम
मेरे को
पीछे की
ओर क्यों
खिसका
रहे हो

अंत:विषय
दृष्टिकोण
क्या तुमको
नहीं आता है

इसमें वो
बिल्कुल भी
नहीं किया
जाता है
तुमको अच्छी
तरह से
जो आता है
और
दूसरा
उसको
अच्छी तरह
से समझ
जाता है

तुम डाक्टर
हो तो स्कूल
चले जाओ

मास्टर हो
तो तबला
हारमोनियम
कुछ बजाओ

समय
के साथ
नया काम
करते चले
जाना चाहिये

जो
किसी की
समझ में
भी नहीं
आना चाहिये

पुराने
कामों का
बक्सा
बना कर
कुवें में
फेंक कर
आना चाहिये

कल से
किसी मुर्गे
को यहाँ
काम पर
लगवाइये

बाँग बिल्ली
दे देगी
उससे यहाँ
भौंकवाइये।

गुरुवार, 8 मार्च 2012

सबक

मायूस क्यों
होता है भाई
कुर्सी तेरे
आदमी तक
अगर नहीं
पहुंच पायी

तू लगा था
सपने देखने मे
तेरे हाथ भी
कभी एक
स्टूल आ
ही जायेगा
शेखचिल्ली
बनेगा तो
आगे भी जमीन
पर ही आयेगा
आसमान
से गिरेगा
खजूर में
अटक जायेगा

इधर तू दूल्हा
सजा रहा था
उधर तेरा
ही रिश्तेदार
कुर्सी
खिसका रहा था

कहा गया है
कई बार
जिसका काम
उसी को साजे
और करे
तो ठेंगा बाजे

अब भी
सम्भल जा
उस्तरा उठा
और
सम्भाल अपनी
दुकान को
नाई था
नाई हो जा
नेता जी
की दुकान
सजाने अब
तो नहीं जा

कुर्सी सबके
नसीब में होती
तो मैने भी
पैदा होते ही
एक मेज
खरीद ली होती

नाई
दुकानदार
हलवाई
सब अपनी
अपनी जगह
ठीक लगते
हैं भाई

इतिहास
गवाह है
जिस दिन
मास्टर बंदूक
उठाता है
शेर के
शिकार
पर जाना
चाहता है
गोली पेड़
की जड़ मे
लगी हुवी
पाता है
और
मुंह की
खाता है

नेता को
नेतागिरी
अब तो
मत सिखा
लौट के
दुकान पर आ
उस्तरा उठा
शुरू हो जा।

सोमवार, 23 जनवरी 2012

मास्टर और वोट

वोटिंग के बचे
अब दिन नौ
सड़क पर भी
बढ़ गयी है
बहुत पौं पौं।

राष्ट्रीय पार्टी 'क' में
घुसे हुवे मेरे मित्र 'च'
पूछे मेरे मित्र 'छ' से
जो पार्टी 'ख' में बहुत
ही माने जाते हैं
स्टार प्रचारक के रूप में
भी पहचाने जाते हैं
भाई जरा बताओ
थोड़ा अंदाज लगाओ
कहां गिरा रहे हैं
मास्टर साहब
अपना एक वोट
'छ' जी मुस्कुराये
फिर भाई 'च'
को समझाये
मास्टर लोग
पढे़ लिखे माने
जाते हैं
वहुत सोच समझ
हिसाब से ही
अपना वोट
गिराते हैं
तुम्हें क्यों
नजर आ रहा
है उनकी नजर
में खोट।
मियां 'च'
ने कहकहा लगाया
'छ' जी को
फिर फुसफुसा
के बताया
राजनीतिज्ञ हैं
आप हम मानते हैं
अर्से से आपकी
काबीलियत सभी
पहचानते हैं
पर आप इन मास्टरों
को कहां जानते हैं
पढे़ लिखों की दुविधा
कहां करेगी चोट
पैराशूट लगा कर
जब गिरायेंगे ये वोट
कुछ मास्टर यहां आते हैं
क्या यहां डालेंगे वोट
कुछ मास्टर वहां
भी देखे जाते हैं
क्या वहां डालेंगे वोट
जो मास्टर कहीं नहीं
दिख रहे हैं
कैसे पता लगाओगे
कहाँ डालेंगे अपना
कीमती वोट ।

बुधवार, 11 जनवरी 2012

चुनाव और मास्टर की सोच

चुनाव का
बुखार
आज भी
बहुत तेजी
दिखा रहा था

मैं मास्टर
समर्थकों की
भीड़ से
बचता हुवा
जा रहा था

मास्टरी
दिमाग
फिर हमेशा
की तरह
कुलबुला
रहा था

सोच रहा था
इस खर्चीले
चुनाव की
जगह परीक्षा
अगर करा
दी जाये

नेता देश
के एक
राष्ट्र व्यापी
परीक्षा
से चुने जायें

कुछ शेषन
या अन्ना
जैसे कड़क
परीक्षा नियंत्रक
नियुक्त कर
दिये जायें

नकल करने
की बिल्कुल
भी इजाजत
ना दी जाये
और
आशावाद
चढ़ते ही
जाने लगा
आसमान

अचानक
फिर से
निराशा ने
दिया एक
झटका
और
कराया मुझे
ये भान
परीक्षा तंत्र
भी तो इसी
देश का
काम करायेगा

नकल जो
नहीं कर पाया
मास्टर को
घूस दे कर
के आयेगा

अन्ना की
ये कोशिश
कहीं फिर
एक बार
धोखा खायेगी

टोपी सफेद
जिन लोगों
ने भुनाई
इस बार
परी़क्षा होगी
तो भी उनकी
ही कौपी
नम्बर लायेगी

फिर से
सबसे कम
पढ़ने वाला
प्रथम आयेगा

अनपढ़ ही
इस देश को
लगता है
हमेशा चलायेगा।