उलूक टाइम्स: सुन्दर
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शनिवार, 4 अक्तूबर 2014

क्यों नहीं लिखूँगा गंदगी हो जाने से अच्छा गंदगी बताना भी जरूरी है

घर को सुन्दर
बनाना भी
जरूरी है

घर की खिड़कियों
के शीशों को
चमकाना भी
जरूरी है

बाहर का खोल
ना खोल दे
कहीं पोल

तेज धूप और
बारिश के पानी
से बचाना भी
जरूरी है

बढ़िया कम्पनी
का महँगा पेंट
चढ़ाना भी
जरूरी है

रोशनी तेज रहे
बाहर की
दीवारों पर
देख ना पाये
कोई नाम
किसी का

इश्तहारों पर
आँखों को
थोड़ा सा
चौधियाँना
भी जरूरी है

शीशों के बाहर
से ही लौट लें
प्रश्न सभी के

अंदर के दृश्यों को
पर्दों के पीछे
छिपाना भी
जरूरी है

बुराई पर
अच्छाई की
जीत दिखानी
भी जरूरी है

अच्छाई को बुराई
के साथ मिल बैठ
कर समझौता
कराना भी जरूरी है

रावण का
खानदान है
अभी भी
कूटने पीटने
के लिये भगवान
राम का आना
और जाना
दिखाना भी
जरूरी है

फिर कोई नाराज
हो जायेगा और
कहेगा कह रहा है

क्या किया जाये
आदत से मजबूर है
नकारात्मक सोच
की नालियों में
पल रहा ‘उलूक’ भी

उसे भी मालूम है
घर के अंदर चड्डी
चल जाती है
बाहर तो गांंधी कुर्ते
और टोपी में आना
भी जरूरी है

नहीं कहना चाहिये
होता कुछ नहीं है
पता होता है
फिर भी उनकी
सकारात्मक
झूठ की आंंधियों
में उड़ जाना
भी जरूरी है ।

चित्र साभार: http://www.beautiful-vegan.com

शनिवार, 14 सितंबर 2013

हिंदी दिवस तो हो गया

हिंदी दिवस ही
तो था हो गया
कुछ को पता था
कुछ और को भी
चलो आज इसी
बहाने से और
पता हो गया
हिंदी के अखबार में
छोटा सा समाचार
हिंदी दिवस पर
दिखा कहीं कौने
पर एक वो भी
पढ़ते पढ़ते पता
ही नहीं चला
कंहा गया और
कहां खो गया
अब किसी सँत
वैलेंटाईन का
आदेश तो था नहीं
जो कह ले जाते
मनाना बहुत ही
जरूरी हो गया
चकाचौंध कभी
थी नहीं वैसे भी
हिंदी भाषा में
सीधी सादी एक
हीरोईन को छोटे
कपड़ों में आना
लगता है अब
बहुत ही जरूरी
सा कुछ हो गया
सबसे सुन्दर और
अलंकृत मात्र भाषा
की सुन्दरता को
उसके अपनो को ही
दिखाने के लिये
एक नजदीक का
चश्मा पहनाना
लगता है अब बहुत
ही जरूरी हो गया
ज्यादा क्या लिखना
हिंदी जैसे विषय पर
घर की मुर्गी का
स्वाद एक बार फिर
से जब मूंग की दाल
के बराबर हो गया ।

शनिवार, 18 मई 2013

कुछ अच्छा लिख ना

आज कुछ तो
अच्छा लिखना
रोज करता है
यहाँ बक बक
कभी तो एक
कोशिश करना
एक सुन्दर सी
कविता लिखना
तेरी आदत में
हो गया है शुमार
होना बस हैरान
और परेशान
कभी उनकी तरह
से कुछ करना
जिन्दगी को रोंदते
हुऎ जूते से
काला चश्मा
पहने हुऎ हंसना
गेरुआ रंगा
कर कुछ कपडे़
तिरंगे का
पहरा करना
अपने घर मे
क्या अटल
क्या सोनिया
कहना
दिल्ली में
करेंगे लड़ाई
घर में साथ
साथ रहना
ले लेना कुछ
कुछ दे देना
इस देश में
कुछ नहीं
है होना
देश प्रेम
भगत सिंह का
दिखा देना
बस दिखा देना
बता देना वो
सब जो हुआ
था तब बस
बता देना
लेना देना
कर लेना
कोई कुछ
नहीं कहेगा
गाना इक
सुना देना
वन्दे मातरम
से शुरु करना
जन गण मन
पर जाकर
रुका देना
कर लेना जो
भी करना हो
ना हो सके तो
पाकिस्तान
के ऊपर ले जा
कर ढहा देना
सब को सब
कुछ पता होता है
तू अपनी किताब
को खुला रखना
आज कुछ तो
अच्छा लिखना
रोज करता है
यहाँ बक बक
कभी तो एक
कोशिश करना
एक सुन्दर सी
कविता लिखना ।

बुधवार, 23 मई 2012

सुन्दर घड़ीसाज

चंदू वैसे हर
कोण से ऎलर्ट
नजर आता है
हर काम में
अपने को
परफेक्ट
वो बनाता है
मायूस होते
हुवे मैने
उसे कभी
भी नहीं पाया
समय के पाबंद
ने कल जब
अपनी घड़ी को
चलते हुवे
नहीं पाया
हाथ झटकते
हुवे तब थोड़ा
सा वो झल्लाया
पर आज सु
बह फिर से
आफिस में
सीटी बजाते
हुवे दाखिल हुवा
जैसे कल के दिन
उसकी सेहत
को रत्ती भर
भी कुछ
नहीं हुआ
घड़ी उसकी
उसकी अपनी
कलाई पर ही
नजर आ रही थी
पर टिक टिक
उसकी आज
एक बिल्कुल
नई कहानी
सुना रही थी
महिलाओं की 

ओर मुखातिब
हो कर भाई
ने बतलाया
सैल बदलने
घड़ी की
दुकान पर
कल शाम
जब वो आया
एक सुंदर
सुघड़
मोहतरमा
को काम
करते वहाँ पाया
घड़ी को बड़ी
नजाकत से
पेचकस से
खोल कर
उसने सैल
को जब से
अंदर को
सरकाया
जैसे जैसे
पूरा वाकया
सुनाता
चला गया
घड़ीसाज
के काम का
वो कायल
होता गया
चलती है
या रुकी है
अब नहीं
देखने वाला है
अपने घर की
सारी घड़ियों
के सैल एक
एक करके
बदलने वाला है
महिलायें अभी
तक चुपचाप
चंदू को सुनती
जा रही थी
बस थोड़ा
थोड़ा बीच
बीच में कभी
मुस्कुरा रही थी
बोली इस से
पहले हमारे
पतिदेव लोग
दुकान का
पता चला लेंगे
हम लोग भी
अपने घर की
सारी घड़ियों
के सारे सैल
आज ही
जा कर के
बदलवा
डालेंगे ।