उलूक टाइम्स

रविवार, 29 मार्च 2015

बेशर्म शर्म

 


आसान नहीं लिख लेना चंद लफ्जों में
उनकी शर्म और खुद की बेशर्मी को

उनका शर्माना जैसे दिन का चमकता सूरज 
उनकी बेशर्मी
बस कभी कभी किसी एक ईद का छोटा सा चाँद

और खुद की बेशर्मी देखिये
कितनी बेशर्म
पानी पानी होती जैसे उसके सामने से ही खुद
अपने में अपनी ही शर्म

पर्दादारी जरूरी है बहुत जरूरी है
पर्दानशीं के लिये 
उसे भी मालूम है
और इसका पता बेशर्मों को भी है

बहुत दिन हो गये
कलम भी कब तक      
बेशर्मी को छान कर शर्माती हुई
बस शर्म ही लिखे

अच्छा है उनकी बेशर्मी बनी रहे
जवान रहे पर्दे में रहे जहाँ रहे
जो सामने दिखे उस शर्म को महसूस कर

‘उलूक’बेशर्मी से अपनी खींसे निपोरता हुआ
रात के अंधेरे में
कुछ इधर से उधर उड़े कुछ उधर से इधर उड़े ।

चित्र साभार: www.dreamstime.com