कुछ भी
संभव
हो सकता है
ऐसा
कभी कभी
महसूस होता है
जब दिखता है
नाटक
करने वालों
और दर्शकों
के बीच में
कोई भी
पर्दा
ना उठाने
के लिये होता है
ना ही गिराने
के लिये होता है
नाटक
करने वाले
के पास बहुत सी
शर्म होती है
दर्शक
सामने वाला
पूरा बेशर्म होता है
नाटक
करने भी
नहीं जाता है
बस दूर से
खड़ा खड़ा
देख रहा होता है
वैसे तो
पूरी दुनियाँ ही
एक नौटंकी होती है
नाटक
करने कराने
के लिये ही
बनी होती है
लिखने लिखाने
करने कराने वाला
ऊपर कहीं
बैठा होता है
नाटक
कम्पनी का
लेकिन अपना ही
ठेका होता है
ठेकेदार
के नीचे
किटकिनदार होते हैं
किटकिनदार
करने कराने
के लिये पूरा ही
जिम्मेदार होते हैं
‘उलूक’
कानी आँखों से
रात के अंधेरे
से पहले के
धुंधलके में
रोशनी समेट
रहा होता है
दर्शकों
में से कुछ
बेवकूफों को
नाटक के
बीच में कूदते हुऐ
देख रहा होता है
कम्पनी के
नाटककार
खिलखिला
रहे होते हैं
अपने लिये
खुद ही तालियाँ
बजा रहे होते हैं
बाकी फालतू
के दर्शकों
के बीच से
पहुँच गये
नाटक में
भाग लेने
गये हुऐ
नाटक कर
रहे होते हैं
साथ में
मुफ्त में
गालियाँ खा
रहे होते हैं
गाल
बजाने वाले
अपने गाल
खुद ही
बजा रहे होते हैं ।
चित्र साभार: www.india-forums.com
संभव
हो सकता है
ऐसा
कभी कभी
महसूस होता है
जब दिखता है
नाटक
करने वालों
और दर्शकों
के बीच में
कोई भी
पर्दा
ना उठाने
के लिये होता है
ना ही गिराने
के लिये होता है
नाटक
करने वाले
के पास बहुत सी
शर्म होती है
दर्शक
सामने वाला
पूरा बेशर्म होता है
नाटक
करने भी
नहीं जाता है
बस दूर से
खड़ा खड़ा
देख रहा होता है
वैसे तो
पूरी दुनियाँ ही
एक नौटंकी होती है
नाटक
करने कराने
के लिये ही
बनी होती है
लिखने लिखाने
करने कराने वाला
ऊपर कहीं
बैठा होता है
नाटक
कम्पनी का
लेकिन अपना ही
ठेका होता है
ठेकेदार
के नीचे
किटकिनदार होते हैं
किटकिनदार
करने कराने
के लिये पूरा ही
जिम्मेदार होते हैं
‘उलूक’
कानी आँखों से
रात के अंधेरे
से पहले के
धुंधलके में
रोशनी समेट
रहा होता है
दर्शकों
में से कुछ
बेवकूफों को
नाटक के
बीच में कूदते हुऐ
देख रहा होता है
कम्पनी के
नाटककार
खिलखिला
रहे होते हैं
अपने लिये
खुद ही तालियाँ
बजा रहे होते हैं
बाकी फालतू
के दर्शकों
के बीच से
पहुँच गये
नाटक में
भाग लेने
गये हुऐ
नाटक कर
रहे होते हैं
साथ में
मुफ्त में
गालियाँ खा
रहे होते हैं
गाल
बजाने वाले
अपने गाल
खुद ही
बजा रहे होते हैं ।
चित्र साभार: www.india-forums.com