उलूक टाइम्स

बुधवार, 7 दिसंबर 2011

गौरैया

गौरैया
रोज की तरह
आज 
सुबह

चावल
के
चार दाने
खा के
उड़ गयी

गौरैया
रोज आती है

एक मुट्टी
चावल
से
बस चार दाने
ही
उठाती है

पता नहीं क्यों

गौरेया
सपने नहीं देखती
होगी शायद

आदमी
चावल के बोरों
की
गिनती करते
हुवे
कभी नहीं थकता

चार मुट्ठी चावल
उसकी किस्मत
में होना
जरूरी 
तो नहीं

फिर भी
अधिकतर
होते ही हैं
उसे मालूम है
अच्छी तरह

जाते जाते
सारी बंद मुट्ठियां
खुली रह जाती हैंं 

और
उनमें
चावल 
का
एक दाना
भी नहीं होता

गौरैया
शायद ये
जानती होगी ।

मंगलवार, 6 दिसंबर 2011

पिताजी की सोच

मैंने पिताजी को
मेरे बारे में
माँ से कई बार
पूछते हुवे सुना था
"इसके घोड़े हमेशा
इसकी गाड़ी के पीछे
क्यों लगे होते हैं?"
माँ मुस्कुराती
लाड़ झलकाती
और साड़ी का पल्लू
ठीक कर पिताजी
को तुरंत बताती
चिंता करने की
कोई बात नहीं है
अभी छोटा है
कुछ दिन देखिये
अपने आप सब
जगह पर आ जायेगा
गाड़ी भी और घोड़ा भी
ये बातें मैं कभी
भी नहीं समझ पाया
जब भी कोशिश की
लगता था खाली
दिमाग खपाया
माँ और पिताजी
आज दोनो नहीं रहे
बीस एक साल
और गुजर गये
मैं शायद अब
वाकई मैं बड़ा
हो पडा़ अचानक
आँख खुली और
दिखने लगे आसपास
के घोड़े और गाड़ियां
सब लगे हुवे हैं
उसी तरह जिस
तरह शायद मेरे
हुवा करते थे
और आज मैं
फिर से उसी
असमंजस मैं हूँ
कि आँखिर पिताजी
ऎसा क्यों कहा
करते थे?

सोमवार, 5 दिसंबर 2011

श्रद्धांजलि

ना शोहरत ले गया
ना दाम ले गया
काम ही किया बस
ताजिंदगी छक कर
उसे भी कहां वो
बेलगाम ले गया
जीवट में सानी
कहां था कोई उसका
सब कुछ तो दे कर
कहां कुछ ले गया
जिंदादिली से भरकर
छलकाता रहा
वो कल तक
गीतों में भरकर
वोही सारी दौलत
नहीं ले गया वो
सरे आम दे गया
आनन्द देकर
देवों के धर को
वो बिल्कुल अकेला
चलते चला वो
चला ही गया
वो चला ही गया।

रविवार, 4 दिसंबर 2011

पहचान

शब्दों
के समुंदर
में गोते लगाना

और

ढूँढ
के लाना
कुछ मोती

इतना
आसान
कहां होता है

कविता
बता देती है
तुम्हारे अंदर के
कव्वे का पता

जो
सफेद शब्द
खोज के
लाता तो है हमेशा

पर
कव्वे की
काली छाया

उन्हे भी
बना देती
है काला

और

कोयल
की कूँक
होते हुवे भी

वो
न जाने क्यूं
कांव कांव ही
सुनायी देते हैं

और

लोग जान
जाते हैं मुझे ।

शनिवार, 3 दिसंबर 2011

समापन

अंधेरे
के घेरे हैं
चारों तरफ

उजालों
से नफरत
हो जायेगी

दिया
लेकर
चले आओगे

रोशनी
ही भटक
जायेगी

कितनी
बेशर्मी
से कह
गये वो

रोशन है
आशियां

रोशनी
भी आयेगी

बेवफाओं
को तमगे
बटे हैं

वफा
ही क्यों
ना शर्मायेगी

यकीं
होने लगा
है पूरा
मुझको

दुनियां
यूं ही
बहल
जायेगी ।