गौरैया
रोज की तरह
आज सुबह
चावल
आज सुबह
चावल
के
चार दाने
चार दाने
खा के
उड़ गयी
उड़ गयी
गौरैया
रोज आती है
एक मुट्टी
चावल
से
बस चार दाने
बस चार दाने
ही
उठाती है
उठाती है
पता नहीं क्यों
गौरेया
सपने नहीं देखती
होगी शायद
आदमी
चावल के बोरों
की
गिनती करते
गिनती करते
हुवे
कभी नहीं थकता
कभी नहीं थकता
चार मुट्ठी चावल
उसकी किस्मत
में होना
जरूरी तो नहीं
फिर भी
जरूरी तो नहीं
फिर भी
अधिकतर
होते ही हैं
उसे मालूम है
अच्छी तरह
जाते जाते
सारी बंद मुट्ठियां
खुली रह जाती हैंं
और
उनमें
चावल का
एक दाना
भी नहीं होता
गौरैया
गौरैया
शायद ये
जानती होगी ।