उलूक टाइम्स

सोमवार, 5 मार्च 2012

मैं आज

मुड़ते ही अचानक
फिर मुझे आज
मैं मिल गया
अवाक रह गया
अपने को देख
कर अचानक
बहुत कुछ बदल गया था
दिख रहा था साफ साफ
फ्रेम वही था घिसा पिटा
पर फोटो उसमें एक
डुप्लीकेट बनवाई
लग रही थी
अपनी हरामखोरी
देख देख कर
मेरी नजरें झुक झुक
सी जा रही थी
पर शरम मुझे
फिर भी थोड़ी सी भी
नहीं आ रही थी
मै वाकई में ऎसा
कभी नहीं रहा
ना ही कोई मेरे को
ऎसा कहने की
हिम्मत कर सकता है
पर जो मै होता जा रहा हूँ
वो मुझे तो पता ही होता होगा
तुमको क्या करना
मत सोचो
तुम अपनी फिक्र मत करो
क्योंकि तुम तो तुम
हो ही ना बहुत साफ साफ
और सूखे हुवे
मैं कुछ कर ही लूंगा
अपने लिये आज
नहीं तो कल
सीख लूंगा बारहखड़ी
खुद को खड़ा करने
के लिये कीचड़ में
कमल की फोटोस्टेट
बड़ी आसानी से
हो सकती है
लगा लूंगा
तुमको ताली बजाना
तो बहुत आता है
इस जमाने के
लूलों लंगड़ो़ के लिय
बिना बात के
फिर चिंन्ता किसको है
आओ बनाये एक पैग
तगड़ा वाला
खुदा के नाम पर
चीयर्स जय श्री राम जी ।

शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2012

खिचड़ी

लोहे की
एक पतली
सी कढ़ाही
आज सीढ़ियों
में मैंंने पायी

कुछ
चावल के
कुछ
माँस की
दाल के दाने

अगरबत्ती
एक
बुझी हुवी
साथ में
एक
डब्बा माचिस

मिट्टी का दिया
तेल पिया हुवा
जलाने वाले
की
तरह बुझा हुवा

बताशे
कपड़े के
कुछ टुकड़े
एक रूपिये
का सिक्का

ये दूसरी बार
हुवा दिखा
पहली बार
कढ़ाही
जरा छोटी थी
साँथ मुर्गे की
गरधन भी
लोटी थी

कुत्ता मेरा
बहुत खुश
नजर आया था
मुँह में दबा कर
घर उठा लाया था

सामान
बाद में
कबाड़ी ने
उठाया था
थोड़ा मुंह भी
बनाया था
बोला था
अरे
तंत्र मंत्र
भी करेंगे
पर फूटी कौड़ी
के लिये मरेंगे
अब कौन
भूत
इनके लिये
इतने सस्ते
में काम करेगा
पूरा खानदान
उसका
भूखा मरेगा

इस बार
कढ़ाही
जरा बड़ी
नजर आई
लगता है
पिछली वाली
कुछ काम
नहीं कर पायी

वैसे अगर
ये टोटके
काम करने
ही लग जायें
तो क्या पता
देश की हालत
कुछ सुधर जाये

दाल चावल
तेल की मात्रा
तांत्रिक थोड़ा
बढ़ा के रखवाये
तो
किसी गरीब
की खिचड़ी
कम से कम
एक समय की
बन जाये

बिना किसी
को घूस खिलाये
परेशान आदमी
की बला किसी
दूसरे के सिर
जा कर चढ़ जाये
फिर दूसरा आदमी
खिचड़ी बनाना
शुरू कर ले जाये

इस तरह

श्रंखला
एक शुरू
हो जायेगी
अन्ना जी की
परेशानी भी
कम हो
जायेगी

पब्लिक
भ्रष्टाचार
हटाओ को
भूल जायेगी

हर तरफ
हर गली
कूचें मेंं
एक कढ़ाही
और
खिचड़ी
साथ में
नजर आयेगी ।

गुरुवार, 16 फ़रवरी 2012

रिटायर्ड चपरासी

गुरु जी
झूठ नहीं बोलूंगा
आपसे तो
कम से कम नहीं

बस एक
पव्वा ही लगाया है

बिना लगाये जाओ तो
काम नहीं हो पाता है
साहब कुछ
समझता ही नहीं
डाँठता चला जाता है

खुश्बू लगा
के जाओ तो
कुर्सी में बैठाता है

तुरत फुरत
पी ए को
बुलाता है
थोड़ा नाक
सिकौड़ कर
फटाफट
दस्तखत कर
कागज लौटाता है

भैया अगर
खुश्बू से
काम चल
ही जाता है

तो फिर छिड़क
कर जाया करो
पी के अपने स्वास्थ
को ना गिराया करो

दिन में ही
शुरू हो जाओगे
तो कितने
दिन जी पाओगे

गुरू जी आप तो
सब जानते हैं
बड़े बड़े आपका
कहना मानते हैं

पर ये लोग बहुत
खिलाड़ी होते हैं

शरीफ आदमी
इनके लिये
अनाड़ी होते हैं

एक दिन
मैंंने
एसा ही
किया था

कोट पर
थोड़ा गिरा
कर दारू
साहब के पास
चला गया था

साहब ने
उस दिन
कोट मुझसे
तुरंत उतरवाया था

दिन दोपहरी
धूप में मुझे
दिन भर
खड़ा करवाया था

तब से जब भी
पेंशन लेने जाता हूँ

अपने अंदर ही भर
कर ले जाता हूँ

मेरे अंदर की खुश्बू
कैसे सुखा पायेगा

खड़ा रहूँगा जब तक
सूंघता चला जायेगा

उसे भी पीने की
आदत है वो कैसे
खाली खुश्बू
सूंघ पायेगा

तुरंत
मेरा काम
वो करवायेगा
मेरा काम
भी हो जायेगा
उसको भी चैन
आ जायेगा।

बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

सारे कुकुरमुत्ते मशरूम नहीं हो पाते हैं

जंगल
में उगते हैं

कुकुरमुत्ते

कोई
भाव नहीं
देता है

उगते
चले
जाते हैं


बिना
खाद
पानी के

शहर
में सब्जी
की दुकान पर

मशरूम
के नाम पर

बिक जाते हैं
कुकुरमुत्ते

अच्छे
भाव के साथ

चाव से
खाते हैं लोग

बिना
किसी डर के

गिरगिट
की तरह
रंग
बदल लेना

या फिर

कुकुरमुत्ता
हो जाना

होते
नहीं हैं
एक जैसे

बहुत से
गिरगिट

रंग बदलते
चले जाते हैं

इंद्रधनुष
बनने की
चाह में

पर उन्हेंं
पता ही
नहीं चल
पाता है

कि
वो

कब
कुकुरमुत्ते
हो गये

कुकुरमुत्तों
की भीड़
में उगते हुवे

मशरूम
भी नहीं
हो पाये।

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

समय

कोयल
की तरह
कूँकने वाली

हिरन की
मस्त चाल
चलने वाली

बहुत
भाती थी

मनमोहनी
रोज सुबह

गली को
एक खुश्बू से
महकाते हुवे
गुजर जाती थी

दिन
बरस साल
गुजर गये

मनमौजी
रोजमर्रा की
दुकानदारी में
उलझ गये

अचानक
एक दिन
याद कर बैठे

तो किसी
ने बताया

हिरनी
तो नहीं

हाँ
रोज एक
हथिनी

गली से
आती जाती है

पूरा मोहल्ला
हिलाती है

आवाज
जिसकी
छोटे
बच्चों को
डराती है

समय की
बलिहारी है

पता नहीं
कहाँ कहाँ
इसने मार
मारी है

कब
किस समय
कौन कबूतर
से कौवा
हो जाता है

समय ये
कहाँ बता
पाता है

मनमौजी
सोच में
डूब जाता है

बही
उठाता है
चश्मा आँखों
में चढ़ाता है

फिर
बड़बड़ाता है

बेकार है
अपने बारे
में किसी से
कुछ पूछना

जरूर
परिवर्तन
यहाँ भी बहुत
आया होगा

जब हिरनी
हथिनी बना
दी गयी है

मुझ
उल्लू को
पक्का ही
ऊपर वाले ने

इतने
समय में
एक गधा ही
बनाया होगा।