सोमवार, 5 मार्च 2012
शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2012
खिचड़ी
लोहे की
एक पतली
सी कढ़ाही
आज सीढ़ियों
में मैंंने पायी
कुछ
चावल के
कुछ
माँस की
दाल के दाने
अगरबत्ती
एक
बुझी हुवी
साथ में
एक
डब्बा माचिस
मिट्टी का दिया
तेल पिया हुवा
जलाने वाले
की
तरह बुझा हुवा
बताशे
कपड़े के
कुछ टुकड़े
एक रूपिये
का सिक्का
ये दूसरी बार
हुवा दिखा
पहली बार
कढ़ाही
जरा छोटी थी
साँथ मुर्गे की
गरधन भी
लोटी थी
कुत्ता मेरा
बहुत खुश
नजर आया था
मुँह में दबा कर
घर उठा लाया था
सामान
बाद में
कबाड़ी ने
उठाया था
थोड़ा मुंह भी
बनाया था
बोला था
अरे
तंत्र मंत्र
भी करेंगे
पर फूटी कौड़ी
के लिये मरेंगे
अब कौन
भूत
इनके लिये
इतने सस्ते
में काम करेगा
पूरा खानदान
उसका
भूखा मरेगा
इस बार
कढ़ाही
जरा बड़ी
नजर आई
लगता है
पिछली वाली
कुछ काम
नहीं कर पायी
वैसे अगर
ये टोटके
काम करने
ही लग जायें
तो क्या पता
देश की हालत
कुछ सुधर जाये
दाल चावल
तेल की मात्रा
तांत्रिक थोड़ा
बढ़ा के रखवाये
तो
किसी गरीब
की खिचड़ी
कम से कम
एक समय की
बन जाये
बिना किसी
को घूस खिलाये
परेशान आदमी
की बला किसी
दूसरे के सिर
जा कर चढ़ जाये
फिर दूसरा आदमी
खिचड़ी बनाना
शुरू कर ले जाये
इस तरह
श्रंखला
एक शुरू
हो जायेगी
अन्ना जी की
परेशानी भी
कम हो
जायेगी
पब्लिक
भ्रष्टाचार
हटाओ को
भूल जायेगी
हर तरफ
हर गली
कूचें मेंं
एक कढ़ाही
और
खिचड़ी
साथ में
नजर आयेगी ।
एक पतली
सी कढ़ाही
आज सीढ़ियों
में मैंंने पायी
कुछ
चावल के
कुछ
माँस की
दाल के दाने
अगरबत्ती
एक
बुझी हुवी
साथ में
एक
डब्बा माचिस
मिट्टी का दिया
तेल पिया हुवा
जलाने वाले
की
तरह बुझा हुवा
बताशे
कपड़े के
कुछ टुकड़े
एक रूपिये
का सिक्का
ये दूसरी बार
हुवा दिखा
पहली बार
कढ़ाही
जरा छोटी थी
साँथ मुर्गे की
गरधन भी
लोटी थी
कुत्ता मेरा
बहुत खुश
नजर आया था
मुँह में दबा कर
घर उठा लाया था
सामान
बाद में
कबाड़ी ने
उठाया था
थोड़ा मुंह भी
बनाया था
बोला था
अरे
तंत्र मंत्र
भी करेंगे
पर फूटी कौड़ी
के लिये मरेंगे
अब कौन
भूत
इनके लिये
इतने सस्ते
में काम करेगा
पूरा खानदान
उसका
भूखा मरेगा
इस बार
कढ़ाही
जरा बड़ी
नजर आई
लगता है
पिछली वाली
कुछ काम
नहीं कर पायी
वैसे अगर
ये टोटके
काम करने
ही लग जायें
तो क्या पता
देश की हालत
कुछ सुधर जाये
दाल चावल
तेल की मात्रा
तांत्रिक थोड़ा
बढ़ा के रखवाये
तो
किसी गरीब
की खिचड़ी
कम से कम
एक समय की
बन जाये
बिना किसी
को घूस खिलाये
परेशान आदमी
की बला किसी
दूसरे के सिर
जा कर चढ़ जाये
फिर दूसरा आदमी
खिचड़ी बनाना
शुरू कर ले जाये
इस तरह
श्रंखला
एक शुरू
हो जायेगी
अन्ना जी की
परेशानी भी
कम हो
जायेगी
पब्लिक
भ्रष्टाचार
हटाओ को
भूल जायेगी
हर तरफ
हर गली
कूचें मेंं
एक कढ़ाही
और
खिचड़ी
साथ में
नजर आयेगी ।
गुरुवार, 16 फ़रवरी 2012
रिटायर्ड चपरासी
गुरु जी
झूठ नहीं बोलूंगा
आपसे तो
कम से कम नहीं
बस एक
पव्वा ही लगाया है
बिना लगाये जाओ तो
काम नहीं हो पाता है
साहब कुछ
समझता ही नहीं
डाँठता चला जाता है
खुश्बू लगा
के जाओ तो
कुर्सी में बैठाता है
तुरत फुरत
पी ए को
बुलाता है
थोड़ा नाक
सिकौड़ कर
फटाफट
दस्तखत कर
कागज लौटाता है
भैया अगर
खुश्बू से
काम चल
ही जाता है
तो फिर छिड़क
कर जाया करो
पी के अपने स्वास्थ
को ना गिराया करो
दिन में ही
शुरू हो जाओगे
तो कितने
दिन जी पाओगे
गुरू जी आप तो
सब जानते हैं
बड़े बड़े आपका
कहना मानते हैं
पर ये लोग बहुत
खिलाड़ी होते हैं
शरीफ आदमी
इनके लिये
अनाड़ी होते हैं
एक दिन
मैंंने
एसा ही
किया था
कोट पर
थोड़ा गिरा
कर दारू
साहब के पास
चला गया था
साहब ने
उस दिन
कोट मुझसे
तुरंत उतरवाया था
दिन दोपहरी
धूप में मुझे
दिन भर
खड़ा करवाया था
तब से जब भी
पेंशन लेने जाता हूँ
अपने अंदर ही भर
कर ले जाता हूँ
मेरे अंदर की खुश्बू
कैसे सुखा पायेगा
खड़ा रहूँगा जब तक
सूंघता चला जायेगा
उसे भी पीने की
आदत है वो कैसे
खाली खुश्बू
सूंघ पायेगा
तुरंत
मेरा काम
वो करवायेगा
मेरा काम
भी हो जायेगा
उसको भी चैन
आ जायेगा।
झूठ नहीं बोलूंगा
आपसे तो
कम से कम नहीं
बस एक
पव्वा ही लगाया है
बिना लगाये जाओ तो
काम नहीं हो पाता है
साहब कुछ
समझता ही नहीं
डाँठता चला जाता है
खुश्बू लगा
के जाओ तो
कुर्सी में बैठाता है
तुरत फुरत
पी ए को
बुलाता है
थोड़ा नाक
सिकौड़ कर
फटाफट
दस्तखत कर
कागज लौटाता है
भैया अगर
खुश्बू से
काम चल
ही जाता है
तो फिर छिड़क
कर जाया करो
पी के अपने स्वास्थ
को ना गिराया करो
दिन में ही
शुरू हो जाओगे
तो कितने
दिन जी पाओगे
गुरू जी आप तो
सब जानते हैं
बड़े बड़े आपका
कहना मानते हैं
पर ये लोग बहुत
खिलाड़ी होते हैं
शरीफ आदमी
इनके लिये
अनाड़ी होते हैं
एक दिन
मैंंने
एसा ही
किया था
कोट पर
थोड़ा गिरा
कर दारू
साहब के पास
चला गया था
साहब ने
उस दिन
कोट मुझसे
तुरंत उतरवाया था
दिन दोपहरी
धूप में मुझे
दिन भर
खड़ा करवाया था
तब से जब भी
पेंशन लेने जाता हूँ
अपने अंदर ही भर
कर ले जाता हूँ
मेरे अंदर की खुश्बू
कैसे सुखा पायेगा
खड़ा रहूँगा जब तक
सूंघता चला जायेगा
उसे भी पीने की
आदत है वो कैसे
खाली खुश्बू
सूंघ पायेगा
तुरंत
मेरा काम
वो करवायेगा
मेरा काम
भी हो जायेगा
उसको भी चैन
आ जायेगा।
बुधवार, 15 फ़रवरी 2012
सारे कुकुरमुत्ते मशरूम नहीं हो पाते हैं
जंगल
में उगते हैं
कुकुरमुत्ते
कोई
भाव नहीं
देता है
उगते
चले
जाते हैं
बिना
खाद
पानी के
शहर
में सब्जी
की दुकान पर
मशरूम
के नाम पर
बिक जाते हैं
कुकुरमुत्ते
अच्छे
भाव के साथ
चाव से
खाते हैं लोग
बिना
किसी डर के
गिरगिट
की तरह
रंग
बदल लेना
या फिर
कुकुरमुत्ता
हो जाना
होते
नहीं हैं
एक जैसे
बहुत से
गिरगिट
रंग बदलते
चले जाते हैं
इंद्रधनुष
बनने की
चाह में
पर उन्हेंं
पता ही
नहीं चल
पाता है
कि
वो
कब
कुकुरमुत्ते
हो गये
कुकुरमुत्तों
की भीड़
में उगते हुवे
मशरूम
भी नहीं
हो पाये।
में उगते हैं
कुकुरमुत्ते
कोई
भाव नहीं
देता है
उगते
चले
जाते हैं
बिना
खाद
पानी के
शहर
में सब्जी
की दुकान पर
मशरूम
के नाम पर
बिक जाते हैं
कुकुरमुत्ते
अच्छे
भाव के साथ
चाव से
खाते हैं लोग
बिना
किसी डर के
गिरगिट
की तरह
रंग
बदल लेना
या फिर
कुकुरमुत्ता
हो जाना
होते
नहीं हैं
एक जैसे
बहुत से
गिरगिट
रंग बदलते
चले जाते हैं
इंद्रधनुष
बनने की
चाह में
पर उन्हेंं
पता ही
नहीं चल
पाता है
कि
वो
कब
कुकुरमुत्ते
हो गये
कुकुरमुत्तों
की भीड़
में उगते हुवे
मशरूम
भी नहीं
हो पाये।
मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012
समय
कोयल
की तरह
कूँकने वाली
हिरन की
मस्त चाल
चलने वाली
बहुत
भाती थी
मनमोहनी
रोज सुबह
गली को
एक खुश्बू से
महकाते हुवे
गुजर जाती थी
दिन
बरस साल
गुजर गये
मनमौजी
रोजमर्रा की
दुकानदारी में
उलझ गये
अचानक
एक दिन
याद कर बैठे
तो किसी
ने बताया
हिरनी
तो नहीं
हाँ
रोज एक
हथिनी
गली से
आती जाती है
पूरा मोहल्ला
हिलाती है
आवाज
जिसकी
छोटे
बच्चों को
डराती है
समय की
बलिहारी है
पता नहीं
कहाँ कहाँ
इसने मार
मारी है
कब
किस समय
कौन कबूतर
से कौवा
हो जाता है
समय ये
कहाँ बता
पाता है
मनमौजी
सोच में
डूब जाता है
बही
उठाता है
चश्मा आँखों
में चढ़ाता है
फिर
बड़बड़ाता है
बेकार है
अपने बारे
में किसी से
कुछ पूछना
जरूर
परिवर्तन
यहाँ भी बहुत
आया होगा
जब हिरनी
हथिनी बना
दी गयी है
मुझ
उल्लू को
पक्का ही
ऊपर वाले ने
इतने
समय में
एक गधा ही
बनाया होगा।
की तरह
कूँकने वाली
हिरन की
मस्त चाल
चलने वाली
बहुत
भाती थी
मनमोहनी
रोज सुबह
गली को
एक खुश्बू से
महकाते हुवे
गुजर जाती थी
दिन
बरस साल
गुजर गये
मनमौजी
रोजमर्रा की
दुकानदारी में
उलझ गये
अचानक
एक दिन
याद कर बैठे
तो किसी
ने बताया
हिरनी
तो नहीं
हाँ
रोज एक
हथिनी
गली से
आती जाती है
पूरा मोहल्ला
हिलाती है
आवाज
जिसकी
छोटे
बच्चों को
डराती है
समय की
बलिहारी है
पता नहीं
कहाँ कहाँ
इसने मार
मारी है
कब
किस समय
कौन कबूतर
से कौवा
हो जाता है
समय ये
कहाँ बता
पाता है
मनमौजी
सोच में
डूब जाता है
बही
उठाता है
चश्मा आँखों
में चढ़ाता है
फिर
बड़बड़ाता है
बेकार है
अपने बारे
में किसी से
कुछ पूछना
जरूर
परिवर्तन
यहाँ भी बहुत
आया होगा
जब हिरनी
हथिनी बना
दी गयी है
मुझ
उल्लू को
पक्का ही
ऊपर वाले ने
इतने
समय में
एक गधा ही
बनाया होगा।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)