उलूक टाइम्स: हथिनी
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सोमवार, 1 अक्टूबर 2012

जानवर की खबर और आदमी की कबर




हथिनी के बच्चे का नहर में समाना
कोशिश पर कोशिश नहीं निकाल पाना
हताशा में चिंघाड़ना और चिल्लाना
हाथियों के झुंड का 
जंगल से निकल कर आ जाना
आते ही दो दलों में बट जाना
नहर में उतर कर बच्चे को धक्के लगाना
बच्चे का सकुशल बाहर आ जाना
हथिनी का बच्चे के बगल में आ जाना
हाथियों का सूंड में पानी भर कर लाना
बच्चे को नहलाकर वापस निकल जाना
पूरी कहानी का फिल्मी हो जाना
जंगली जीवन की सरलता के
जीवंत उदाहरण का सामने आ जाना
आपदा प्रबंधन का नायाब तरीका दिखा जाना
नजर हट कर 
अखबार के दूसरे कोने में जाना
आदमी की चीख किसी का भी ना सुन पाना
बच्चे के उसके मौत को गले लगाना
आपदा प्रबंधन का पावर पोइंट प्रेजेन्टेशन याद आ जाना
सरकार का 
लाश की कीमत कुछ हजार बताना
सांत्वना की चिट्ठी सार्वजनिक करवाना
मौत की जाँच पर कमेटी बिठाना
तरक्की पसंद आदमी की सोच का
जानवर हो जाना ।

चित्र साभार: https://www.upi.com/

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

समय

कोयल
की तरह
कूँकने वाली

हिरन की
मस्त चाल
चलने वाली

बहुत
भाती थी

मनमोहनी
रोज सुबह

गली को
एक खुश्बू से
महकाते हुवे
गुजर जाती थी

दिन
बरस साल
गुजर गये

मनमौजी
रोजमर्रा की
दुकानदारी में
उलझ गये

अचानक
एक दिन
याद कर बैठे

तो किसी
ने बताया

हिरनी
तो नहीं

हाँ
रोज एक
हथिनी

गली से
आती जाती है

पूरा मोहल्ला
हिलाती है

आवाज
जिसकी
छोटे
बच्चों को
डराती है

समय की
बलिहारी है

पता नहीं
कहाँ कहाँ
इसने मार
मारी है

कब
किस समय
कौन कबूतर
से कौवा
हो जाता है

समय ये
कहाँ बता
पाता है

मनमौजी
सोच में
डूब जाता है

बही
उठाता है
चश्मा आँखों
में चढ़ाता है

फिर
बड़बड़ाता है

बेकार है
अपने बारे
में किसी से
कुछ पूछना

जरूर
परिवर्तन
यहाँ भी बहुत
आया होगा

जब हिरनी
हथिनी बना
दी गयी है

मुझ
उल्लू को
पक्का ही
ऊपर वाले ने

इतने
समय में
एक गधा ही
बनाया होगा।