उलूक टाइम्स

शुक्रवार, 15 जून 2012

कुछ नहीं

अच्छा तो फिर 
आज क्या कुछ 
नया यहाँ लिखने
को ला रहे हो
या रोज की तरह
आज भी हमको
बेवकूफ बनाने
फिर जा रहे हो
ये माना की
बक बक आपकी
बिना झक झक
हम रोज झेल
ले जाते हैं
एक दिन भी नागा
फिर भी आप
कभी नहीं करते
कुछ ना कुछ
बबाल ले कर
यहाँ आ जाते हैं
लगता है आज कोई
मुद्दा आपके हाथ
नहीं आ पाया है
या फिर आपका
ही कोई खास
फसाद कहीं कुछ
करके आया है
कोई बात नहीं
कभी कभी ऎसा
भी हो ही जाता है
मुर्गा आसपास
में होता तो है
पर हाथ नहीं
आ पाता है
आदमी अपनी
जीभ से लाख
कोशिश करके भी
अपनी नाक को
नहीं छू पाता है
लगे रहिये आप
भी कभी कमाल
कर ले जायेंगे
कुछ ऎसा लिखेंगे
कि उसके बाद
एक दो लोग
जो कभी कभी
अभी इधर को
आ जाते हैं
वो भी पढ़ने
नहीं आयेंगे
कुछ कहना लिखना
तो दूर रहा
सामने पढ़ ही गये
किसी रास्ते में
देखेंगे आपको जरूर
पर बगल की गली से
दूसरे रास्ते में खिसक
कर चले जायेंगे
बाल बाल बच गये
सोच सोच कर
अपने को बहलायेंगे।

गुरुवार, 14 जून 2012

चाँद मान भी जा

गैस के सिलिण्डर
पानी बिजली
की कटौती से
ध्यान हटवा
ऎ चांद अपनी
चाँदनी और सितारों
के साथ कभी तो
मेरे ख्वाबों में भी आ
भंवरों की तरह
मुझ से  भी कभी
फूलों के ऊपर
चक्कर लगवा
खुश्बू से तरबतर कर
धूऎं धूल धक्कड़
सीवर की बदबू से
कुछ देर की सही
राहत मुझे दिला
इतनी नाइंसाफी ना कर
कोई दिये जा रहा है
किसी को अपने
घर के गुलदस्ते
और फूलों को
ला ला कर
मुझ को भी कोई
ऎसा काम कभी
पार्ट टाईम
में ही दिलवा
रोज आलू सब्जी
दाल चावल की
लिस्ट हाथों में
मेरे ना थमवा
मानता हूँ हुए
जा रहा है बहुत कुछ
अजब गजब सा
चारों तरफ हर ओर
इन सब पर कभी तो
कुछ कुछ आशिकों
से भी लिखवा
कुछ देर के लिये सही
मेरी सोच को बदलवा
मुझे भी इन सब लोगों
का जैसा बनवा
ऎ चाँद सितारों के
साथ कभी तो आ
कुछ रसीली खट्टी
मीठी बातें कभी
मुझसे भी लिखवा
बस अजूबों पर ही
मेरा ध्यान ना डलवा
आज के आदमी
का अक्स मेरे
अंदर भी ले आ
ऎ चांद अपनी
चाँदनी और सितारों
के साथ कभी तो
मेरे ख्वाबों
में भी आजा।

बुधवार, 13 जून 2012

कुछ तो सीख

रसोईया मेरा
बहुत अच्छे
गाने सुनाता है

तबला थाली से ही
बजा ले जाता है
बस कभी कभी
रोटियां जली जली
सी खिलाता है

अखबार देने
एक ऎसा
आदमी आता है
ना कान सुनता है
ना ही बोल पाता है

हिन्दुस्तान
डालने को
अगर बोल दिया
उस दिन पक्का
टाईम्स आफ इंडिया
ले कर आ जाता है

लेकिन दांत बहुत ही
अच्छी तरह दिखाता है

बरतन धोने को जो
महिला आती हैं
छ : सिम और एक
मोबाईल दिखाती है

आते ही चार्जर को
लाईन में घुसाती है
उसके आते ही
घंटियाँ बजनी शुरु
घर में हो जाती हैं

बरतनो में खाना
लगा ही रह जाता है
पानी मेरी टंकी का
सारा नाली में बह
के निकल जाता है

मेहमान मेरे घर
में जब आते हैं
अभी तक
मास्टर ही हो क्या
पूछते हैं
फिर मुस्कुराते हैं

कुछ अब कर
भी लीजिये जनाब
की राय मुझे
जाते जाते जरूर
दे के जाते हैं

अब कुछ
उदाहरण
ही यहाँ पर
बताता हूँ
चर्चा को
ज्यादा लम्बा
नहीं बनाता हूँ

बाकी लोगों के
कामों की लिस्ट
अगले दिन के
लिये बचाता हूँ

पर इन सब से
पता नहीं मैं
अभी तक भी
कुछ भी क्यों नहीं
सीख पाता हूँ।

मंगलवार, 12 जून 2012

विद्वान की दुकान

विद्वानो की छाया तक
भी नहीं पहुंच पाया
तो विद्वता कहाँ
से दिखा पाउंगा
कवि की पूँछ भी
नहीं हो सकता
तो कविता भी
नहीं कर पाउंगा
विचार तो थोड़े से
दिमाग वाले के भी
कुछ उधार ले दे के
भी पनप जाते हैं
कच्ची जलेबियाँ पकाने
की कोशिश जरूर करूंगा
हलुआ गुड़ का कम से कम
बना ही ले जाउंगा
भैया जी आपकी
परेशानी बेवजह है
किसी लेखन प्रतियोगिता
में भाग नहीं ही
कभी लगाउंगा
अब जब दुकान
खोल के बैठ ही गया
हूँ इस बाजार में
तो किसी ना किसी
तरह जरूर चलाउंगा
कहाँ कहाँ पिट पिटा
के आउंगा मलहम
कौन सा उसके बाद
हकीम लुकमान से
बनवा के लगवाउंगा
अब बोलचाल की
भाषा में ही तो यहाँ
आ के बता पाउंगा
किसी से कहलवा कर
पैसे जेब के लगवाकर
आई एस बी एन नम्बर
वाली कोई किताब भगवान
कसम नहीं छपवाउंगा
चिंता ना करें किसी नयी
विधा का अपने नाम से
जन्म/नामकरण हुवा है
कहकर कोई नया
सेल्फ फाईनेंस कोर्स
भी नहीं कहीं चलवाउंगा
आप अपनी दुकान की
चिंता करिये जनाब
अपने धंधे से आपके
व्यवसाय के रास्ते में
रोड़े नहीं बिछाउंगा
कोई नुकसान आपकी
विद्वता को मैं अनपढ़
बताइये कैसे पहुंचाउंगा।

सोमवार, 11 जून 2012

डिस्को मुर्गे

समय के
साथ चलना
जरूरी है

परिवर्तन
के साथ
बदलना
मजबूरी है

मुर्गे
स्वदेशी
इसी चीज के
पीछे पीछे
जा रहे हैं

अपनी
को टोपी
के नीचे
छिपा कर
ऊपर से
विदेशी
कलगी
लगा रहे हैं

जब तक
मुँह नहीं
खोलते
अच्छा प्रभाव
भी जमा रहे हैं

पर बाँग
देते समय
बेचारे
रंगे हाथों
पकड़े भी
जा रहे हैं

अब अपने
घर के
अपने ही
मुर्गे हैं

हम भी
कुछ कह
नहीं पा
रहे हैं

उनकी
बेढंगी चालों
पर ताल
बजा रहे हैं

ना
चाहते
हुवे भी एक
मौन स्वीकृति
दिये जा रहे हैं ।