रसोईया मेरा
बहुत अच्छे
गाने सुनाता है
तबला थाली से ही
बजा ले जाता है
बस कभी कभी
रोटियां जली जली
सी खिलाता है
अखबार देने
एक ऎसा
आदमी आता है
ना कान सुनता है
ना ही बोल पाता है
हिन्दुस्तान
डालने को
अगर बोल दिया
उस दिन पक्का
टाईम्स आफ इंडिया
ले कर आ जाता है
लेकिन दांत बहुत ही
अच्छी तरह दिखाता है
बरतन धोने को जो
महिला आती हैं
छ : सिम और एक
मोबाईल दिखाती है
आते ही चार्जर को
लाईन में घुसाती है
उसके आते ही
घंटियाँ बजनी शुरु
घर में हो जाती हैं
बरतनो में खाना
लगा ही रह जाता है
पानी मेरी टंकी का
सारा नाली में बह
के निकल जाता है
मेहमान मेरे घर
में जब आते हैं
अभी तक
मास्टर ही हो क्या
पूछते हैं
फिर मुस्कुराते हैं
कुछ अब कर
भी लीजिये जनाब
की राय मुझे
जाते जाते जरूर
दे के जाते हैं
अब कुछ
उदाहरण
ही यहाँ पर
बताता हूँ
चर्चा को
ज्यादा लम्बा
नहीं बनाता हूँ
बाकी लोगों के
कामों की लिस्ट
अगले दिन के
लिये बचाता हूँ
पर इन सब से
पता नहीं मैं
अभी तक भी
कुछ भी क्यों नहीं
सीख पाता हूँ।
बहुत अच्छे
गाने सुनाता है
तबला थाली से ही
बजा ले जाता है
बस कभी कभी
रोटियां जली जली
सी खिलाता है
अखबार देने
एक ऎसा
आदमी आता है
ना कान सुनता है
ना ही बोल पाता है
हिन्दुस्तान
डालने को
अगर बोल दिया
उस दिन पक्का
टाईम्स आफ इंडिया
ले कर आ जाता है
लेकिन दांत बहुत ही
अच्छी तरह दिखाता है
बरतन धोने को जो
महिला आती हैं
छ : सिम और एक
मोबाईल दिखाती है
आते ही चार्जर को
लाईन में घुसाती है
उसके आते ही
घंटियाँ बजनी शुरु
घर में हो जाती हैं
बरतनो में खाना
लगा ही रह जाता है
पानी मेरी टंकी का
सारा नाली में बह
के निकल जाता है
मेहमान मेरे घर
में जब आते हैं
अभी तक
मास्टर ही हो क्या
पूछते हैं
फिर मुस्कुराते हैं
कुछ अब कर
भी लीजिये जनाब
की राय मुझे
जाते जाते जरूर
दे के जाते हैं
अब कुछ
उदाहरण
ही यहाँ पर
बताता हूँ
चर्चा को
ज्यादा लम्बा
नहीं बनाता हूँ
बाकी लोगों के
कामों की लिस्ट
अगले दिन के
लिये बचाता हूँ
पर इन सब से
पता नहीं मैं
अभी तक भी
कुछ भी क्यों नहीं
सीख पाता हूँ।
सुख से अगर है रहना, तो रसोइए की सहना!
जवाब देंहटाएंरचना बहुत बढ़िया लगी!
आपकी पोस्ट कल 14/6/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
चर्चा - 902 :चर्चाकार-दिलबाग विर्क
सिखा सिखाया मास्टर, नहीं सका कुछ सीख ।
जवाब देंहटाएंरहा पिछड़ता रेस में, रही निकलती चीख ।
रही निकलती चीख, भीख में राय मिल रही ।
करिए कुछ श्रीमान , पैर की जमीं हिल रही ।
दाई हॉकर कुकर, साथ किस्मत लिखवाया ।
करते क्यूँकर सफ़र, नहीं क्यूँ सिखा सिखाया ।।
सब कुछ सीखा हमने न सीखी....
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना।सादर।
सब जगह मुफ्त राय देने वाले हैं ....सिखाते ही रहते हैं !
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !