उलूक टाइम्स

शनिवार, 16 जून 2012

प्रेम की परिभाषा

आखें
बंद कर
जैसे कहीं
खो बैठे वो

प्रेम के
सागर में
गोते जैसे
खाने
अचानक
लगे हों

पूछने लगे
हमसे
भैया जी
प्रेम की कोई
परिभाषा
जरा हमेंं
बताइये
प्रेम है
क्या बला
जरा हमेंं
आप आज
समझाइये

'प्रेमचंद' की
'ईदगाह'
के
'हामिद' का
उसकी
दादीजान से
'मीराबाई'
का 'कृष्ण'से
पिता का पुत्र से

या फिर
किसी भी
तरह का प्रेम
जो आपकी
समझ में
आता हो
प्रेम के
सागर की
लहरों में
हिलोरों में
झूला आपको
कभी झुलाता हो

बडा़ झंझट
है जी
हमारे
साथ ही
अक्सर
ऎसा क्यों
हो जाता है
जो सबको
मुर्गा दिखाई
दे रहा हो
हमारे सामने
आते ही
कौआ काला
बन जाता है

'हामिद' सुना
था कुछ
फालतू काम
करके आया था
अपनी दादीजान
की उंगलियां
आग से बचाने
के लिये मेले से
चिमटा एक
बेकार का
खरीद कर
लाया था

'मीराबाई'
भी जानती थी
शरीर नश्वर है
और
'कृष्ण' उसके
आसपास भी
कभी नहीं
आया था

मरने मरने
तक उसने
अपने को यूँ ही
कहीं भरमाया था

किसने
देखा प्रेम
किसी
जमाने की
कहानियाँ
हुआ करती थी

प्रेम
अब लगता है
वाकई में
इस जमाने
में ही खुल
कर आया है

सब कुछ
आकर देखिये
छोटे छोटे
एस एम एस
में ही समाया है

जिंदगी के
हर पड़ाव
में बदलता
हुआ नये
नये फंडे
सिखाता
हमें आया है

नये रंग के साथ
प्रेम ने नया एक
झंडा हमेशा ही
कहीं फहराया है

चाकलेट
खेल खिलौने
जूते कपड़े
स्कूल की फीस
छोटे छोटे
उपहार
कर देते थे
तुरंत ही
आई लव यू
का इजहार

प्रेम की
वही खिड़की
विन्डो दो हजार
से अपडेट हो कर
विन्डो आठ जैसी
जवान हो कर
आ गयी है तैयार

तनिश्क
के गहने
बैंक बैलेंस
प्रोपर्टी
कार
हवाई यात्रा
के टिकट के
आसपास
होने पर
सोफ्टवेयर
कम्पैटिबल है
करके बता जाती है

खस्ता हाल
हो कोई अगर
उसके प्रेम
के इजहार पर
अपडेट कर लीजिये
का एक
संदेश दे कर
हैंग अपने आप
ही हो जाती है।

शुक्रवार, 15 जून 2012

कुछ नहीं

अच्छा तो फिर 
आज क्या कुछ 
नया यहाँ लिखने
को ला रहे हो
या रोज की तरह
आज भी हमको
बेवकूफ बनाने
फिर जा रहे हो
ये माना की
बक बक आपकी
बिना झक झक
हम रोज झेल
ले जाते हैं
एक दिन भी नागा
फिर भी आप
कभी नहीं करते
कुछ ना कुछ
बबाल ले कर
यहाँ आ जाते हैं
लगता है आज कोई
मुद्दा आपके हाथ
नहीं आ पाया है
या फिर आपका
ही कोई खास
फसाद कहीं कुछ
करके आया है
कोई बात नहीं
कभी कभी ऎसा
भी हो ही जाता है
मुर्गा आसपास
में होता तो है
पर हाथ नहीं
आ पाता है
आदमी अपनी
जीभ से लाख
कोशिश करके भी
अपनी नाक को
नहीं छू पाता है
लगे रहिये आप
भी कभी कमाल
कर ले जायेंगे
कुछ ऎसा लिखेंगे
कि उसके बाद
एक दो लोग
जो कभी कभी
अभी इधर को
आ जाते हैं
वो भी पढ़ने
नहीं आयेंगे
कुछ कहना लिखना
तो दूर रहा
सामने पढ़ ही गये
किसी रास्ते में
देखेंगे आपको जरूर
पर बगल की गली से
दूसरे रास्ते में खिसक
कर चले जायेंगे
बाल बाल बच गये
सोच सोच कर
अपने को बहलायेंगे।

गुरुवार, 14 जून 2012

चाँद मान भी जा

गैस के सिलिण्डर
पानी बिजली
की कटौती से
ध्यान हटवा
ऎ चांद अपनी
चाँदनी और सितारों
के साथ कभी तो
मेरे ख्वाबों में भी आ
भंवरों की तरह
मुझ से  भी कभी
फूलों के ऊपर
चक्कर लगवा
खुश्बू से तरबतर कर
धूऎं धूल धक्कड़
सीवर की बदबू से
कुछ देर की सही
राहत मुझे दिला
इतनी नाइंसाफी ना कर
कोई दिये जा रहा है
किसी को अपने
घर के गुलदस्ते
और फूलों को
ला ला कर
मुझ को भी कोई
ऎसा काम कभी
पार्ट टाईम
में ही दिलवा
रोज आलू सब्जी
दाल चावल की
लिस्ट हाथों में
मेरे ना थमवा
मानता हूँ हुए
जा रहा है बहुत कुछ
अजब गजब सा
चारों तरफ हर ओर
इन सब पर कभी तो
कुछ कुछ आशिकों
से भी लिखवा
कुछ देर के लिये सही
मेरी सोच को बदलवा
मुझे भी इन सब लोगों
का जैसा बनवा
ऎ चाँद सितारों के
साथ कभी तो आ
कुछ रसीली खट्टी
मीठी बातें कभी
मुझसे भी लिखवा
बस अजूबों पर ही
मेरा ध्यान ना डलवा
आज के आदमी
का अक्स मेरे
अंदर भी ले आ
ऎ चांद अपनी
चाँदनी और सितारों
के साथ कभी तो
मेरे ख्वाबों
में भी आजा।

बुधवार, 13 जून 2012

कुछ तो सीख

रसोईया मेरा
बहुत अच्छे
गाने सुनाता है

तबला थाली से ही
बजा ले जाता है
बस कभी कभी
रोटियां जली जली
सी खिलाता है

अखबार देने
एक ऎसा
आदमी आता है
ना कान सुनता है
ना ही बोल पाता है

हिन्दुस्तान
डालने को
अगर बोल दिया
उस दिन पक्का
टाईम्स आफ इंडिया
ले कर आ जाता है

लेकिन दांत बहुत ही
अच्छी तरह दिखाता है

बरतन धोने को जो
महिला आती हैं
छ : सिम और एक
मोबाईल दिखाती है

आते ही चार्जर को
लाईन में घुसाती है
उसके आते ही
घंटियाँ बजनी शुरु
घर में हो जाती हैं

बरतनो में खाना
लगा ही रह जाता है
पानी मेरी टंकी का
सारा नाली में बह
के निकल जाता है

मेहमान मेरे घर
में जब आते हैं
अभी तक
मास्टर ही हो क्या
पूछते हैं
फिर मुस्कुराते हैं

कुछ अब कर
भी लीजिये जनाब
की राय मुझे
जाते जाते जरूर
दे के जाते हैं

अब कुछ
उदाहरण
ही यहाँ पर
बताता हूँ
चर्चा को
ज्यादा लम्बा
नहीं बनाता हूँ

बाकी लोगों के
कामों की लिस्ट
अगले दिन के
लिये बचाता हूँ

पर इन सब से
पता नहीं मैं
अभी तक भी
कुछ भी क्यों नहीं
सीख पाता हूँ।

मंगलवार, 12 जून 2012

विद्वान की दुकान

विद्वानो की छाया तक
भी नहीं पहुंच पाया
तो विद्वता कहाँ
से दिखा पाउंगा
कवि की पूँछ भी
नहीं हो सकता
तो कविता भी
नहीं कर पाउंगा
विचार तो थोड़े से
दिमाग वाले के भी
कुछ उधार ले दे के
भी पनप जाते हैं
कच्ची जलेबियाँ पकाने
की कोशिश जरूर करूंगा
हलुआ गुड़ का कम से कम
बना ही ले जाउंगा
भैया जी आपकी
परेशानी बेवजह है
किसी लेखन प्रतियोगिता
में भाग नहीं ही
कभी लगाउंगा
अब जब दुकान
खोल के बैठ ही गया
हूँ इस बाजार में
तो किसी ना किसी
तरह जरूर चलाउंगा
कहाँ कहाँ पिट पिटा
के आउंगा मलहम
कौन सा उसके बाद
हकीम लुकमान से
बनवा के लगवाउंगा
अब बोलचाल की
भाषा में ही तो यहाँ
आ के बता पाउंगा
किसी से कहलवा कर
पैसे जेब के लगवाकर
आई एस बी एन नम्बर
वाली कोई किताब भगवान
कसम नहीं छपवाउंगा
चिंता ना करें किसी नयी
विधा का अपने नाम से
जन्म/नामकरण हुवा है
कहकर कोई नया
सेल्फ फाईनेंस कोर्स
भी नहीं कहीं चलवाउंगा
आप अपनी दुकान की
चिंता करिये जनाब
अपने धंधे से आपके
व्यवसाय के रास्ते में
रोड़े नहीं बिछाउंगा
कोई नुकसान आपकी
विद्वता को मैं अनपढ़
बताइये कैसे पहुंचाउंगा।