उलूक टाइम्स

रविवार, 11 अगस्त 2013

पता नहीं चलता है तो क्यों मचलता है !

खाली दिमाग 
शैतान के
घर में
बदलता है
दिमाग कुछ
ना कुछ
रख कर
तभी तो
चलता है
जब तक
कुछ नहीं
कहता है
कुछ भी
पता नहीं
चलता है
खुलती है
जब जुबाँ
तब  घर
का पता
चलता है
उस घर
के कोने
में अंधेरा
रखना कभी
भी नहीं
खलता  है
उजाले तक
को देखिये
जिसका
पता नहीं
चलता है
चेहरे को
देख कर
ही बस
दिल का
पता नहीं
चलता है
जब दिल
बिना धुऎं
के ही
हमेशा से
जलता है
सूरज अगर
रात को
और चांद
दिन में
निकलता है
तब आने
का पता
जाने को
भी नहीं
चलता है
बहुतों की
फितरत में
इस तरह
का जब
आजकल
देखने को
मिलता है
तू अपने
खुद के
रास्तों में
अपनी ही
लालटेन
लेकर क्यों
नहीं हमेशा
निकलता है ।

शनिवार, 10 अगस्त 2013

जिन्दगी भी एक प्रतिध्वनी है

उनके मुँह से जैसे ही निकला
कि जिन्दगी
एक प्रतिध्वनी है

पूछ बैठे
क्या हुआ
इसका अर्थ
समझाओगे

मेरे
दिमाग की
खुराफात
ने कहा
अभी तो
कुछ नहीं
बताउँँगा

आज
शाम को
लिखा हुआ
इसी पर आप
कुछ ना जरुर
कुछ पाओगे

अब फलसफा
है तो बहुत ही
जानदार

कहा जा
सकता है
कि इसमें तो हैं
पूरी जिन्दगी के
सारे उतार चढ़ाव

उनके हिसाब से
जिन्दगी एक
प्रतिध्वनी है
का मतलब
होता हो शायद

जो लौट के फिर
कभी ना कभी
एक बार जरूर
वापस आता है

टकरा टकरा कर
हर लम्हा जिंदगी
का फिर दुबारा
कहीं ना कहीं
खुद से खुद को
इस तरह मिलाता है

अपने को भूले हुऎ
को क्षण भर को
ही सही कुछ
अपने बारे में
कुछ कुछ याद
सा आ जाता है

नहीं तो सुबह शुरु
हुई जिंदगी को
संवारने में सारा
दिन कोई भी
गुजार ले जाता है

और
शाम होते होते
ही पता चलने
लग जाता है
कि
इस पूरी कोशिश में
फिर से कोई
कौना जिंदगी का
फटी हूई पैजामे
से निकले घुटनो
की तरह से कहीं
एक नई जगह
से मुँह अपना
निकाल ले जाता है
फिर चिढा़ता है

अब उनके जिंदगी
के इस पहलू पर
जब तक मैं
कुछ सोच भी पाता

क्या किया जाये
मजबूरी है
सोच की भी
कि कौन
सा खयाल
किस की
सोच में आता है

मुझे खुद में वो
बिलाव नजर
आता है जो
चूहे को
सामने से

कुतरते हुऎ
कतरा कतरा
जिंदगी अपने
आप को
बेबस सा
पाता है

पर कर कुछ
नहीं सकता
सिवाय अपने
पंजे के नाखूनो
को एक खम्बे
को नोच नोच
कर घायल
कर जाता है

फिर उसी
रात को
सपने में
उस चूहे
को अपने
पंजो में दबा
हुआ तड़पता
पाता है

इसी तरह कुछ
गुजर जाती
है जिन्दगी
रोज रोज
के रोज ही

जिन्दगी एक
प्रतिध्वनी है
का मतलब
शायद इन
सपनो का होना
ही हो जाता है

जो पूरे नहीं
कभी हो पाते हैं
लेकिन लौट के
आना जिन्दगी
में एक बार फिर
से उनका बहुत
जरूरी हो जाता है ।

शुक्रवार, 9 अगस्त 2013

लिखने में अभी उतना कुछ नहीं जा रहा है

सभी के आसपास 
इतना कुछ होता है
जिसे वो अगर
लिखना चाहे तो
किताबें लिख सकता है
किसी ने नहीं कहा है
सब पर लिखना
जरूरी होता है
अब जो लिखता है
वो अपनी सोच
के अनुसार ही
तो लिखता है
ये भी जरूरी नहीं
जो जैसा दिखता है
वो वैसा ही लिखता है
दिखना तो ऊपर वाले
के हाथ में होता है
लिखना मगर अपनी
सोच के साथ होता है
अब कोई सोचे कुछ और
और लिखे कुछ और
इसमें कोई भी कुछ
नहीं कर सकता है
एक जमाना था
जो लिखा हुआ
सामने आता था
उससे आदमी की
शक्लो सूरत का भी
अन्दाज आ जाता था
अब भी बहुत कुछ
बहुतों के द्वारा
लिखा जा रहा है
पर उस सब को
पढ़कर के लिखने
वाले के बारे में
कुछ भी नहीं
कहा जा रहा है
अब क्या किया जाये
जब जमाना ही नहीं
पहचाना जा रहा है
एक गरीब होता है
अमीर बनना नहीं
बल्की अमीर जैसा
दिखना चाहता है
सड़क में चलने से
परहेज करता है
दो से लेकर चार
पहियों में चढ़ कर
आना जाना चाहता है
उधर बैंक उसको
उसके उधार के
ना लौटाने के कारण
उसके गवाहों को
तक जेल के अंदर
भिजवाना चाहता है
इसलिये अगर कुछ
लिखने के लिये
दिमाग में आ रहा है
तो उसको लिखकर
कहीं भी क्यों नहीं
चिपका रहा है
मान लिया अपने
इलाके में कोई भी
तुझे मुँह भी
नहीं लगा रहा है
दूसरी जगह तेरा लिखा
किसी के समझ में
कुछ नहीं आ रहा है
तो भी खाली परेशान
क्यों हुऎ जा रहा है
खैर मना अभी भी
कहने पर कोई लगाम
नहीं लगा रहा है
ऎसा भी समय
देख लेना जल्दी ही
आने जा रहा है
जब तू सुनेगा
अखबार के
मुख्यपृष्ठ में
ये समाचार
आ रहा है  
गांंधी अपनी
लिखी किताब
“सत्य के साथ 

किये गये प्रयोग “
के कारण मृ्त्योपरांत
एक सदी के लिये
कारावास की सजा
पाने जा रहा है ।

गुरुवार, 8 अगस्त 2013

पता है तुम टीम बनाने वालों में आते हो देश प्रेमियों में भी पहले गिने जाते हो

अब जब
वो कहता है
देश प्रेम
फैल रहा है

 कुर्बान
देश पर
होने के लिये

हर कोई
अपने अन्दर
ही 
अन्दर
भड़की हुई
आग में
बुरी तरह
जल रहा है

इधर मुझे
ही फुर्सत
नहीं है
अपने कुऎं में
बैठ कर
टर्राने से

मेरी तरह
और भी हैं
कुछ मेंढक
जो टर्राते टर्राते
हो चुके हैं
दीवाने से

अब कैसे
कह दूँ
मुझे देश से
प्रेम नहीं है

थोड़ी बहुत
लूट खसोट
बेईमानी
अपने इलाके
में कर ले
जाने से कोई
देश का दुश्मन
जो क्या
हो जाता है

जब भी कभी
देश की बात
पर जुलूस
निकाला जाता है

हर कोई उस
जुलूस में आगे
आगे दिखाई
तो देना हेी
चाहता है

इससे अधिक
देश उससे
और क्या
चाहता है

वैसे भी देश
के लिये
काम करना
अकेले कहाँ
हो पाता है

टीम वर्क
हो तो
सब कुछ ही
बहुत आसानी
से हो जाता है

बस केवल
सीमा पर
कोई गोली
नहीं खाना
चाहता है

इसलिये
वहाँ के लिये
टीम बनाने
की इच्छा
कोई नहीं
दिखाता है

कहता है
देश का
सवाल है
इसलिये
ऎसा काम
हमेशा सामने
वाले को ही
दिया जाता है

बाकी टीम में
कोई कहीं
रखा जाये
इस बात का
देश प्रेम से
कहाँ कोई
नाता है

इसीलिये
हर सरदार
अपनी टीम
अपने हिसाब
से बनाता है

काम किसी को
कुछ आता हो
उससे क्या कुछ
कहीं हो जाता है

ज्यादा काम
समझने वाला
वैसे भी
टीम के
सरदार के
लिये एक
सरदर्द
हो जाता है

देश का झंडा
बस होना
चाहिये कुछ
मजबूत से
हाथो में

उसके नीचे
कौन क्या
कर रहा है
उससे कहाँ
कौन सा
फर्क पड़
जाता है

इतना क्या
कम नहीं
होता है कि
जब सीमा पर
कोई देश प्रेमी
मारा जाता है

देश का
देश प्रेमी
उसके
देश प्रेम से
भावुक
हो जाता है
उसकी
फोटो में
फूल माला
चढ़ाता है

अब
छोटी मोटी
चोरियां अगर
हो भी जाती हैं
किसी से अपने
आस पास कहीं

इससे देश प्रेम
कहााँ कम
हो जाता है

होता होगा
हो ही
रहा होगा
मेरे देश में
देश प्रेम
जागरण

मुझे अपने
कुएं में टर्राने
में बहुत
मजा आता है ।

बुधवार, 7 अगस्त 2013

कुछ उंचे नाम ढूंढ दुकान करेगी बूम

कुछ अच्छा कुछ नया
करने की इच्छा ही
कुछ कुछ करवाती है
ये बात जब सामने
दिखती है तभी जाकर
कुछ समझ में आती है
पलटते हुऎ कल रात
एक पत्रिका एक से
बढ़कर एक लेख
कविता कहानियों
से रूबरू हुआ
नयी चीज से एक
और सामना हुआ
बहुत से नामों की
सूची भी उसमें
दिखाई गई थी
पढ़ रहे हैं ये लोग
इस पत्रिका को
और जीवन भर
मंगा भी रहे हैं
पढ़ने के लिये
ये बात भी
समझाई गई थी
यही चीज पत्रिका
का भार एकदम
से दुगना किये
जा रही थी
एक जमाने में
पता ही नहीं
चल पाता था
कि कौन कौन
कौन सी पत्रिकाऎं
अपने घर के पते
पर मंगवाता था
बिरला ही दुकान
से खरीदता हुआ
कभी दिख पाता था
सभी दुकानदारों को
इस तरीके को
अपना लेना चाहिये
दुकान में अपने
ग्राहकों का फोटो
परिचय पत्र भी
लगवाना चाहिये
कौन ले जाता है
मूँगफली और
कौन ले जा
रहा है बादाम
बस ये ही नहीं
बताना चाहिये
ग्राहक तो खुश
होगा ही बहुत
सामान दुगना
ले जाना शुरु
हो जायेगा
ये ले जा रहा है
कुछ यहाँ से तो
वो भी ले जाना
शुरु हो जायेगा
कितना सरल
तरीका मिला है
एक भारी ग्राहक
का नाम दुकान के
ऊपर लिखने से
दुकान का नाम
ऊँचा हो जायेगा
समझ भी लो अब
क्या होगा अगर
बहुत से भारी भारी
नामों से दुकान का
बोर्ड पट जायेगा ।