उनके मुँह से जैसे ही निकला
कि जिन्दगी
एक प्रतिध्वनी है
पूछ बैठे
क्या हुआ
इसका अर्थ
समझाओगे
मेरे
दिमाग की
खुराफात
ने कहा
अभी तो
कुछ नहीं
बताउँँगा
आज
शाम को
लिखा हुआ
इसी पर आप
कुछ ना जरुर
कुछ पाओगे
अब फलसफा
है तो बहुत ही
जानदार
कि जिन्दगी
एक प्रतिध्वनी है
पूछ बैठे
क्या हुआ
इसका अर्थ
समझाओगे
मेरे
दिमाग की
खुराफात
ने कहा
अभी तो
कुछ नहीं
बताउँँगा
आज
शाम को
लिखा हुआ
इसी पर आप
कुछ ना जरुर
कुछ पाओगे
अब फलसफा
है तो बहुत ही
जानदार
कहा जा
सकता है
कि इसमें तो हैं
पूरी जिन्दगी के
सारे उतार चढ़ाव
उनके हिसाब से
जिन्दगी एक
प्रतिध्वनी है
का मतलब
होता हो शायद
जो लौट के फिर
कभी ना कभी
एक बार जरूर
वापस आता है
टकरा टकरा कर
हर लम्हा जिंदगी
का फिर दुबारा
कहीं ना कहीं
खुद से खुद को
इस तरह मिलाता है
अपने को भूले हुऎ
को क्षण भर को
ही सही कुछ
अपने बारे में
कुछ कुछ याद
सा आ जाता है
नहीं तो सुबह शुरु
हुई जिंदगी को
संवारने में सारा
दिन कोई भी
गुजार ले जाता है
और
शाम होते होते
ही पता चलने
लग जाता है
कि
इस पूरी कोशिश में
फिर से कोई
कौना जिंदगी का
फटी हूई पैजामे
से निकले घुटनो
की तरह से कहीं
एक नई जगह
से मुँह अपना
निकाल ले जाता है
फिर चिढा़ता है
अब उनके जिंदगी
के इस पहलू पर
जब तक मैं
कुछ सोच भी पाता
क्या किया जाये
मजबूरी है
सोच की भी
कि कौन
सा खयाल
किस की
सोच में आता है
मुझे खुद में वो
बिलाव नजर
आता है जो
चूहे को
सामने से
कुतरते हुऎ
कतरा कतरा
जिंदगी अपने
आप को
बेबस सा
पाता है
पर कर कुछ
नहीं सकता
सिवाय अपने
पंजे के नाखूनो
को एक खम्बे
को नोच नोच
कर घायल
कर जाता है
फिर उसी
रात को
सपने में
उस चूहे
को अपने
पंजो में दबा
हुआ तड़पता
पाता है
इसी तरह कुछ
गुजर जाती
है जिन्दगी
रोज रोज
के रोज ही
जिन्दगी एक
प्रतिध्वनी है
का मतलब
शायद इन
सपनो का होना
ही हो जाता है
जो पूरे नहीं
कभी हो पाते हैं
लेकिन लौट के
आना जिन्दगी
में एक बार फिर
से उनका बहुत
जरूरी हो जाता है ।
सकता है
कि इसमें तो हैं
पूरी जिन्दगी के
सारे उतार चढ़ाव
उनके हिसाब से
जिन्दगी एक
प्रतिध्वनी है
का मतलब
होता हो शायद
जो लौट के फिर
कभी ना कभी
एक बार जरूर
वापस आता है
टकरा टकरा कर
हर लम्हा जिंदगी
का फिर दुबारा
कहीं ना कहीं
खुद से खुद को
इस तरह मिलाता है
अपने को भूले हुऎ
को क्षण भर को
ही सही कुछ
अपने बारे में
कुछ कुछ याद
सा आ जाता है
नहीं तो सुबह शुरु
हुई जिंदगी को
संवारने में सारा
दिन कोई भी
गुजार ले जाता है
और
शाम होते होते
ही पता चलने
लग जाता है
कि
इस पूरी कोशिश में
फिर से कोई
कौना जिंदगी का
फटी हूई पैजामे
से निकले घुटनो
की तरह से कहीं
एक नई जगह
से मुँह अपना
निकाल ले जाता है
फिर चिढा़ता है
अब उनके जिंदगी
के इस पहलू पर
जब तक मैं
कुछ सोच भी पाता
क्या किया जाये
मजबूरी है
सोच की भी
कि कौन
सा खयाल
किस की
सोच में आता है
मुझे खुद में वो
बिलाव नजर
आता है जो
चूहे को
सामने से
कुतरते हुऎ
कतरा कतरा
जिंदगी अपने
आप को
बेबस सा
पाता है
पर कर कुछ
नहीं सकता
सिवाय अपने
पंजे के नाखूनो
को एक खम्बे
को नोच नोच
कर घायल
कर जाता है
फिर उसी
रात को
सपने में
उस चूहे
को अपने
पंजो में दबा
हुआ तड़पता
पाता है
इसी तरह कुछ
गुजर जाती
है जिन्दगी
रोज रोज
के रोज ही
जिन्दगी एक
प्रतिध्वनी है
का मतलब
शायद इन
सपनो का होना
ही हो जाता है
जो पूरे नहीं
कभी हो पाते हैं
लेकिन लौट के
आना जिन्दगी
में एक बार फिर
से उनका बहुत
जरूरी हो जाता है ।
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (11-08-2013) के चर्चा मंच 1334 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर उम्दा प्रस्तुति ,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST : जिन्दगी.
बेहतरीन ......
जवाब देंहटाएंहाँ ,हो सकती है प्रतिध्वनि भी !
जवाब देंहटाएं