उलूक टाइम्स

सोमवार, 25 नवंबर 2013

मत बताना नहीं मानेंगे अगर कहेगा ये सब तू ही कह रहा था

पिछले
दो दिन 
से यहाँ दिखाई
नही दे रहा था

पता नहीं
कहाँ 
जा कर
किस को 
गोली
दे रहा था


खण्डहर में
उजाला 
नहीं
हो रहा था


दिये में बाती

दिख रही थी
तेल पता नहीं
कौन आ कर
पी रहा था

आसमान
नापने 
का
ठेका कहीं

हो रहा था

खबर सच है

या झूठ मूठ  
पता करने
के लिये

उछल उछल
कर 
कुँऐ की
मुंडेर 
छू रहा था

बाहर के उजाले

का क्या कहने
हर काला भी
चमकता हुआ
सफेद हो रहा था

किसी के आँखों में

सो रहे थे सपने
कोई सपने सस्ते 
में बेच कर भी
अमीर हो रहा था

सोच क्यों नहीं

लेता पहले से 
कुछ ‘उलूक
अपने कोटर से
बाहर निकलने
से पहले कभी

अपने और
अपनो के
अंधेरों में
तैरने के आदी
मंजूर नहीं करेंगे

सुबह होती
दिख रही थी कहीं
बहुत नजदीक से

और
वाकई में तू
देख रहा था

और
तुझे सब कुछ
साफ और
बहुत साफ
दिन के
उजाले सा
दिखाई भी
दे रहा था ।

शुक्रवार, 22 नवंबर 2013

घबरा सा जाता है गंदगी लिख नहीं पाता है

कितनी अजीब  
सी बात है
अब है तो है
अजीब ही सही
सब की बाते
एक सी भी तो
नहीं हो सकती
हमेशा ही
कोई खुद
अजीब होता है
उसकी बातों में
लेकिन बहुत
सलीका होता है
कोई बहुत
सलीका दिखाता है
बोलना शुरु होता है
तो अजीब पना
साफ साफ चलता
हुआ सा दिख जाता है
किसी के साथ
कई हादसे ऐसे
होते ही रहते हैं
वो नहीं भी
सोचता अजीब
पर बहुत से लोग
उसे कुछ अजीब
सोचने पर
मजबूर कर देते हैं
थोड़ा अजीब ही
सही पर कुछ अजीब
सा सभी के
पास होता ही है
गंदगी भी होती है
सब कुछ साफ
जो क्या होता है
पर साफ सुथरे
कागज पर जब
कोई कुछ टीपने
के लिये बैठता है तो
गंदगी चेपने की
हिम्मत ही
खो देता है
हर तरफ
सब लोगों के
सफाई लिखे हुए
सजे संवरे कागज
जब नजर आते है
लिखने वाले
के दस्ताने
शरमा शरमी
निकल आते है
अपने आस पास
और अपने अंदर
की गंदगी से
बचे खुचे सफाई
के कुछ टुकड़े
ढूंढ लाते है
सब सब की
तरह लिखा
जैसा हो जाता है
रोज सफाई
लिखने वाले को
तो बहुत सफाई से
लिखना आता है
पर ‘उलूक’ के लिखे
के किनारे में कहीं
एक गंदगी का धब्बा
उस पर खुल कर
ठहाके लगाना
शुरू हो जाता है ।

गुरुवार, 21 नवंबर 2013

कभी तो लिख दिया कर यहाँ छुट्टी पे जा रहा है

बटुऐ की चोर जेब में
भरे हुऐ चिल्लर जैसे
कुछ ना कुछ रोज लेकर
चने मूंगफली की
रेहड़ी लगाने में तुझे
पता नहीं क्यों इतना
मजा आता है
कितना कुछ है
लोगों के पास
भरी हुई जेबों में जब
पिस्ते काजू बादाम
दिखाने के लिये
किसे फुरसत है तेरी
मूंगफली के छिक्कल
निकाल कर दो चार दाने
ढूढ निकाल कर खाने की
एक दिन की बात नहीं है
बहुत दिनों से तेरा ये टंटा
यहाँ चला आ रहा है
करते चले जा तू
मदारी के करतब
खुद को खुद
का ही जमूरा
तुझे भी मालूम है
पता नहीं किस के लिये
यूं बनाये जा रहा है
कभी सांस भी
ले लिया कर
थोड़ी सी देर
के लिये ही सही
नहीं दिखायेगा
कभी कुछ तो
कौन यहाँ पर
लुटा या मरा
जा रहा है
कुछ नहीं
होगा कहीं पर
हर जगह खुदा का
कोई ना कोई बंदा
उसी के कहने पर
वो सब किये
जा रहा है
जिसे लेकर रोज
ही तू यहां पर
आ आ कर
टैंट लगा रहा है
आने जाने वालों का
दिमाग खा रहा है
अब भी सुधर जा
नहीं तो किसी दिन
कहने आ पहुंचेगा यहाँ
कि खुदा का कोई बंदा
तेरी इन हरकतों के लिये
खुदा के यहाँ आर टी आई
लगाने जा रहा है और
ऊपर वाला ही अब तेरी
वाट लगाने के लिये
नीचे किसी को
काम पर लगा रहा है ।

बुधवार, 20 नवंबर 2013

कोई तो लिखे कुछ अलग सा लगे

कभी कुछ
अलग सा
कुछ ऐसा
भी लिख
जिसे नहीं
पढ़ने वाला
भी

थोड़ा सा
पढ़ सके
कुछ ऐसा
जो किसी
झूमती हुई
कलम से
रंगबिरंगी
स्याही से
इंद्रधनुष
सा
लिखा हुआ
आसमान
पर दिखे

कुछ देर
के लिये
ही सही

रोज की
चिल्ल पौं से
थोड़ी देर के
लिये सही
आँख कान
नाक हटे

नहीं पीने
वाले को
कुछ पीने
जैसा लगे
नशा सा
लिखा हो
नशा ही
लिखा हो

पढ़े कोई
तो झूमती
हुई कलम
सफेद कागज
के ऊपर
इधर उधर
लहराती
सी दिखे

हर कोई
शराबी हो
ये जरूरी नहीं
नशा पढ़ के
हो जाने में
कोई खराबी नहीं

लिख मगर
ऐसा ही
कुछ
पढ़े कोई
तो पढ़ता
ही रहे

पढ़ के
हटे कुछ
लड़खड़ाये
इतना नही
कि
जा ही गिरे

रोज ही के
लिये नहीं
है गुजारिश
पर लिखे

कभी किसी
दिन ऐसा
कुछ भी हो
कहीं कुछ
अलग
सा दिखे
अलग सा
कुछ लगे

मुझे
ना सही
तुझे
ही लगे ।

मंगलवार, 19 नवंबर 2013

ये तो होना ही था


जो हो रहा था अच्छा हो रहा था 
जो हो रहा है अच्छा हो रहा है 
जो आगे होगा वो अच्छा ही होगा 

बस तुझे
एक बात का 
ध्यान रखना होगा 

बंदर के बारे में 
कुछ भी कभी भी नहीं सोचना होगा 

बहुत पुरानी कहावत है 
मगर बड़े काम की कहावत नजर आती है 
जब मुझे
अपने 
दिमाग में घुसी भैंस नजर आती है 

अब माना कि 
अपनी ही होती है 
पर भैंस तो भैंस होती है 
उसपर
जब वो किसी के 
दिमाग में घुसी होती है 

जरा जरा सी बात पर 
खाली भड़क जाती है 
कब क्या कर बैठे 
किसी को बता कर भी नहीं जाती है 

दूसरों को देख 
कर लगता है 
उनकी भी कोई ना कोई 
भैंस 
तो 
जरूर होती होगी 

तो मुझे खाली
क्यों 
चिंता हो जाती है 
अपनी अपनी भैंस होती है
जिधर करेगा मन 
उधर को चली जाती है

अब इसमें मुझे 
चिढ़ लग भी जाती है 
तो कौन सी बड़ी बात हो जाती है 

लाईलाज हो बीमारी
तब 
हाथ से निकल जाती है 

अखबार की खबर से 
जब पता चलता है 
कोई भी ऐसा नहीं है 
मेरे सिवाय यहाँ पर 
जिसके साथ इस तरह की कोई अनहोनी होती हुई
कभी यहां 
पर देखी जाती है 

होती भी है
किसी के 
पास एक भैंस 
वो हमेशा तबेले में ही बांधी जाती है 

सुबह सुबह से
इसी 
बात को सुनकर 
दुखी हो चुकी
मेरे 
दिमाग की भैंस 
पानी में चली जाती है 

तब से भैंस के जाते ही 
सारी बात जड़ से खतम हो जाती है 

परेशान होने की 
जरूरत नहीं 
अगर आपके समझ में
'उलूक' 
की बात बिल्कुल भी नहीं आती है । 

चित्र साभार: http://wazaliart.blogspot.com/