उलूक टाइम्स

सोमवार, 26 मई 2014

कोई ना कोई पाल बिल सबसे पहले लाया जायेगा

बहुत ही 
बेवकूफ थी 
पिछली सरकार 

कोशिश में
लगी 
हुई थी
बनाने में 
कागज के टुकड़े से 
आदमी का आधार 

इतना भी
नहीं 
समझी
देश प्रेम
को 
कैसे कागज
में 
उतारा जायेगा 

सारे कागज
ही 
एक जैसे हों जहाँ 

कौन
कितना प्रेमी है 
ऐसे में
कैसे 
हिसाब
लगाया जायेगा 

अब
लग रहा है
लेकिन 
इसका भी समाधान 
आसानी से
ही 
निकल आयेगा 

दिखने शुरु
हो जायेंगे

जैसे ही
पूत के पाँव 
पालने से बाहर 

उसी को
देख कर 
देश प्रेम निर्धारित 
कर
लिया जायेगा 

स्केल मिलेगा 
नापने का
कुछ 
पुराने प्रेमियों को 

उनसे
नापने के लिये 
इशारा दिया जायेगा 

उन में से ही
होगा 
बताने वाला भी 

कितने
अंकों के साथ 
देश प्रेमी होने के लिये 
कोई
योग्यता हासिल 
कर ले जायेगा 

देश प्रेम को
अंदर 
छुपाने वाले को 
नोटिस
दे दिया जायेगा 

लोकपाल
शोकपाल 
आये या ना आ पाये 

अपने पाल
अपने सँभाल 
बिल
सबसे पहले 
बहुमत से
पास हो कर 
सामने से आ जायेगा 

अभिमन्यु

कब से 
सीख रहे थे
पेट के अंदर 

बाहर
आने के बाद 
उनका कमाल 

‘उलूक’
देख लेना 
तू भी

बहुत जल्दी 
अपने
सामने सामने 
ही
देख पायेगा ।

रविवार, 25 मई 2014

रेखाऐं खींच कर कह देना भी कहना ही होता है

पूरी जिंदगी
ना सही
कुछ ही दिन
कभी कभी
कुछ आड़ी तिरछी
सौ हजार ना सही
दो चार पन्नों
में ही कहीं
पन्ने में नहीं
कहीं किसी दीवार
में ही सही
खींच कर
जरूर जाना
जाने से पहले
जरूरी भी
नहीं है बताना
वक्त बदलता है
ऐसा सुना है
क्या पता
कोई कभी
नाप ही ले
लम्बाईयाँ
रेखाओं की
अपनी सोच
के स्केल से
और समझ में
आ जाये उसके
कुछ बताने के लिये
हमेशा जरूरी
नहीं होती हैं
कुछ भाषाऐं
कुछ शब्द
दो एक सीधी
रेखाओं के
आस पास
पड़ी रेखाऐं
होना भी
बहुत कुछ
कह देता है
हमेशा नहीं
भी होता होगा
माना जा सकता है
पर कभी कहीं
जरूर होता है
समझ में आते ही
एक या दो
या कुछ और
रेखाऐं रेखाओं के
आसपास खींच देने
वाला जरूर होता है
रेखाऐं बहुत मुश्किल
भी नहीं होती हैं
आसानी से समझ
में आ जाती है
बहुत थोड़े से में
बहुत सारा कुछ
यूँ ही कह जाती हैं
जिसके समझ में
आ जाती हैं
वो शब्द छोड़ देता है
रेखाओं का
ही हो लेता है ।

शनिवार, 24 मई 2014

धुंध की आदत पड़ जाये तो साफ मौसम होना अच्छा नहीं होता है

कुछ होता है
घने कोहरे के
पीछे से छुपा हुआ
नजर नहीं आने
का मतलब
कुछ नहीं होना
कभी भी नहीं होता है
कोहरा हटने के
बाद की तेज धूप
खोल देती है
सारे के सारे राज
एक ही साथ
पेड़ पौँधे नदी पहाड़
सब अपनी जगह पर
उसी तरह होते हैं
जैसा कोहरा लगने से
पहले हुआ करते हैं
कोहरे के होने
या ना होने से
उस चीज का होना
या ना होना
अभिव्यक्त नहीं होता है
जो कोहरे के इस पार
या उस पार होता है
कोहरे की आदत
हो जाने वाले के लिये
तेज धूप का होना
जरूर एक भ्रम होता है
चीजों का बहुत
नजदीक से बहुत
साफ साफ दिखना
ही सबसे बड़ा
एक वहम होता है ।

शुक्रवार, 23 मई 2014

मदारी जमूरे और बंदर अभी भी साथ निभाते हैं



मदारी जमूरा और बंदर
बहुत कम नजर आते हैं

अब घर घर नहीं जाते हैं

मैदान में स्कूल में
या चौराहे के आस पास
तमाशा अब भी दिखाते हैं

बहुत हैं पर हाँ पुराने भेष में नहीं
कुछ नया करने के लिये
नया सा कुछ पहन कर आते हैं

सब नहीं जानते हैं
सब नहीं पहचानते हैं
मगर रिश्तेदारी वाले
रिश्ता कहीं ना कहीं से
ढूँढ ही निकालते हैं

तमाशा शुरु भी होता है
तमाशा पूरा भी होता है
बंदर फिर हाथ में लकड़ी ले लेता है

चक्कर लगता है भीड़ होती है
साथ साथ मदारी का जमूरा भी होता है

भीड़ बंदर से बहुत कुछ सीख ले जाती है
बंदर के हाथ में चिल्लर दे जाती है

भीड़ छंंटती जरूर है
लेकिन खुद उसके बाद बंदर हो जाती है

बंदर शहर से होते होते
गाँव तक पहुँच जाते हैं
परेशान गाँव वाले
अपनी सारी समस्यायें भूल जाते हैं

दो रोटी की फसल बचाने की खातिर

बंदर बाड़े बनवाने की अर्जी
जमूरे के हाथ मदारी को भिजवाते हैं

बंदर बाड़े बनते हैंं
बंदर अंदर हो जाते हैं

कुछ बंदर दुभाषिये बना लिये जाते हैं
आदमी और बंदरों के बीच संवाद करवाते हैं
ऐसे कुछ बंदर बाड़े से बाहर रख लिये जाते हैं

पहचान के लिये 
कुछ झंडे और डंडे
उनको मुफ्त में दे दिये जाते हैं ।

चित्र सभार: https://www.shutterstock.com/

गुरुवार, 22 मई 2014

पहचान के कटखन्ने कुत्तों से डर नहीं लगता है

पालतू
भेड़ों की
भीड़ को
अनुशाशित
करने के
लिये ही

पाले
जाते हैं
कुत्ते
भेड़ों को
घेर कर
बाड़े तक
पहुँचाने में
माहिर
हो जाने से
निश्चिंत
हो जाते हैं
भेड़ों के
मालिक

कुत्तों के
हाव भाव
और चाल
से ही रास्ता
बदलना
सीख लेती
हैं भेड़े

मालिक
बहुत सारी
भेड़ों को
इशारा करने
से अच्छा
समझते हैं
कुत्तों को
समझा लेना

भेड़ों
को भी
कुत्तों से
डर नहीं
लगता है

जानती हैं
डर के आगे ही
जीत होती है

भेड़ों को
घेर कर
बाड़े तक
पहुँचाने का
इनाम

कुछ
माँस के टुकड़े

कुत्ते
भेड़ों के
सामने से
ही नोचते हैं

भेड़े
ना तो खाती हैं
ना ही माँस
पसँद करती हैं

पर
उनको
कुत्तों को
माँस नोचता
देखने की
आदत
जरूर हो
जाती है

रोज
होने वाले
दर्द की
आदत
हो जाने
के बाद
दवा की
जरूरत
महसूस
नहीं होती है ।