आता
माझी सटकली
सोचते सोचते
किसी दिन पूरा
ही सटक जायेगा
दो और दो पाँच
करने वालों से
पंगा लेना छोड़ दे
उनका जैसा
कभी किसी को
नहीं पढ़ा पायेगा
पाँच चार से
हमेशा ही एक
ज्यादा रहेगा
आगे बहुत दूर
निकल जायेगा
चार पर ही
अटके रहने
वाले को
गिनती करने
के काम से भी
हटा दिया जायेगा
पाँच ही से
पंच परमेश्वर
बनता है
उसे ही मंदिर में
बैठाया जायेगा
चार करने वाले
अभी भी कुछ
नहीं गया है
पाँच सीख ले
नहीं तो दो से भी
हाथ गवाँयेगा
छोड़ दे देखना
वो सब तुझे
जानबूझ कर
तेरे सामने
लाकर दिखायेगा
फर्जी
लोगों का
फर्जीवाड़ा
पंचों की राय
से ही कोई
करायेगा
शातिर जानते हैं
चार पर अटका
हुआ ही जाकर
पाँच के कारनामे
जोर शोर से गायेगा
गाना खत्म होने
से पहले फर्जी
पर्चियों के साथ
गायब हो जायेगा
भजन होंगे
भगत होंगे
रामनामी दुपट्टा
बस रह जायेगा
दो और दो पाँच
ही सिद्ध होगा
चार चार करने वाला
बस गालियाँ खायेगा
पंचों के
मंदिर बनेंगे
शिष्य भी
श्रद्धा से
फूल चढ़ायेगा
दो और दो
पाँच सीखकर
दो और दो पाँच
पढ़ायेगा
‘उलूक’
'आता माझी सटकली'
सोचते सोचते
किसी दिन पूरा
ही सटक जायेगा ।
चित्र साभार: ingujarat.net
हाथी होने का
मतलब एक
बड़ी चीज होना
ही जरूरी
नहीं होता है
किसी चींटी
का नाम भी
कभी किसी ने
हाथी रखा
होता है
दुधारू गाय को
किसी की कोई
मरा हुआ हाथी
कभी कह देता है
परेशान होने की
जरूरत
नहीं होती है
अखबार में
जो होता है
उससे बड़ा सच
कहीं नहीं होता है
चिढ़ किसी
को लगती है
खुश होना चाहिये
चिढ़ाने वाले को
अजीब सी बात
लगती है जब
आग लगाने
वाला ही नाराज
हो रहा होता है
झूठ के साथ
एक भीड़ का
पता भी होता है
बस इसी सच
का पता
बेवकूफों को
नहीं होता है
भौंकते रहते हैं
भौंकने वाले
हमेशा ही
काम करने
वाला अपनी
लगन से ही
कर रहा होता है
लगे रहो लिखने
वाले अपने
हिसाब से कुछ
भी लिखने के लिये
जल्लाद का शेयर
हमेशा मौत से
ज्यादा चढ़
रहा होता है
शेरो शायरी में
दम नहीं होता है
‘उलूक’ तेरी
तू भी जानता है
तेरे सामने ही
तेरा अक्स ओढ़
कर भी सब कुछ
सरे आम
नंगा हो रहा
होता है ।
चित्र साभार: www.clipartof.com
चट्टान पर
बुद्धिमान ने
बनाया
अपना घर
और जोर की
वर्षा आई
बचपन में
सुबह की
स्कूल में की
जाने वाली
प्रार्थना का
एक गीत
याद आ पड़ा
उस समय
जब सामने
से ही अपने
कुछ दूरी पर
जोर के
धमाकों के साथ
फटते पठाकों
की लड़ियों
को घेर कर
उछलता हुआ
एक झुण्ड
दिखा खड़ा
इससे पहले
किसी से कुछ
पूछने की
जरूरत पड़ती
दिमाग के
अंदर का
फितूरी गधा
दौड़ पड़ा
याद आ पड़ी
सुबह सुबह
अखबार के
मुख्य पृष्ठ पर
छपी हुई
ताजी एक खबर
जनता जनार्दन
एक कददू
और कुछ तीर
साथ में अपने
गधे का जनाजा
और उसकी
खुद की ही
अपने लिये
खोदी गई
साफ सुथरी
कबर
सारी खुदाई
एक तरफ
अपना भाई
एक तरफ
जब जब
अपनी सोच
के सोच होने
का वहम
कभी हुआ है
अपना
यही गधा
सीना तान
कर अपनी
सोच के साथ
खड़ा हुआ है
‘उलूक’
इतना कम
नहीं है क्या ?
बनाने दे
दुनियाँ को
रेत के
ताजमहल
पकड़ अपनी
सोच के गधे
की लगाम
और निकल
ले कहीं
तमाशा देखने
के चक्कर में
गधा भी लग
लिया लाईन में
तो कहीं का
नहीं रह जायेगा
अकेला हो
गया तो
चना भी नहीं
फोड़ पायेगा ।चित्र साभार: imgarcade.com
सड़कों पर सन्नाटा
और सहमी हुई सड़के
आदमी कम और
वर्दियों के ढेर
बिल्कुल साफ
नजर आ रहा था
पहुँचने वाला है
जल्दी ही मेरे शहर में
कोई ओढ़ कर एक शेर
शहर के शेर भी
अपने बालों को
उठाये नजर आ रहे थे
मेरे घर के शेर भी
कुछ नये अंदाज में
अपने नाखूनों को
घिसते नजर आ रहे थे
घोषणा बहुत पहले ही
की जा चुकी थी
एक पुराने खंडहर
की दीवारें बाँटी
जा चुकी थी
अलग अलग
दीवार से
अलग अलग
घर उगाने का
आह्वान किया
जा रहा था
एक हड्डी थी बेचारी
और बहुत सारे बेचारे
कुत्तों के बीच नोचा
घसीटा जा रहा था
बुद्धिजीवी दूरदृष्टा
योजना सुना रहा था
हर कुत्ते के लिये
एक हड्डी नोचने
का इंतजाम
किया जा रहा था
बहुत साल पहले
मकान धोने सुखाने
का काम शुरु
किया गया था
अब चूँकि खंडहर
हो चुका था
टेंडर को दुबारा
फ्लोट किया
जा रहा था
हर टूटी फूटी
दीवार के लिये
एक अलग
ठेकेदार बन सके
इसके जुगाड़
करने पर
विमर्श किया
जा रहा था
दलगत राजनीति
को हर कोई
ठुकरा रहा था
इधर का
भी था शेर
और उधर का
भी था शेर
अपनी अपनी
खालों के अंदर
मलाई के सपने
देख देख कर
मुस्कुरा रहा था
‘उलूक’ नोच रहा था
अपने सिर के बाल
उसके हाथ में
बाल भी नहीं
आ रहा था
बुद्धिजीवी शहर के
बुद्धिजीवी शेरों की
बुद्धिजीवी सोच का
जलजला जो
आ रहा था ।
चित्र साभार: imgkid.com
एक
ने नहीं
बहुतों ने
पूछना
शुरु कर
दिया है
बाकी सब
ठीक है
बहुत
सारे लोग
लिखते हैं
लिख रहे हैं
कुछ सार्थक
कुछ निर्रथक
तुम्हारे
बारे में
भी हो
रही है
चर्चा कई
जगहों पर
हमें भी
पता चला है
तुम्हारे
लिखने
लिखाने से
हमें कोई
मतलब नहीं है
कुछ ऐसा
वैसा ही
लिख रहे हो
आस पास
के किसी भी
जाने माने
स्थापित लेखकों
कवियों चर्चाकारों
की सूची में
तुम्हारा नाम
ढूँढ कर भी
नहीं मिला है
अच्छे
खासे तो थे
कुछ दिन पहले
कहीं
चुपचाप से
खड़े भी मिले थे
इधर ही
कुछ दिनों में
कौन सा
ऐसा आया
तूफानी
जलजला है
कुछ भी
कहीं नहीं
कहने वाला
कहीं भी
जा कर
कुछ भी
लिखने
लिखाने
को चला है
चलो
होता है
उम्र का
तकाजा भी है
कुछों को
छोड़ कर
सर और
दाड़ी का
लगभग
हर बाल भी
अब सफेद
हो चला है
वैसे
हमें कहना
कुछ नहीं है
बस
एक शंका
दूर करनी है
जानकारी
रहनी
भी चाहिये
अपने
परायों की
कितना
हौसला है
बस इतना
बता दो
तुम्हारे
लिखने
लिखाने
के साथ
हर जगह
जुड़ा ये
‘उलूक’
कौन सी
और
क्या बला है ?
चित्रसाभार: www.clipartpal.com