उलूक टाइम्स

सोमवार, 20 अप्रैल 2015

कभी तो लिख यहाँ नहीं तो और कहीं दो शब्द प्यार पर भी झूठ ही सही

फर्माइश
आई एक

इसी
तरह की कुछ

लिखता हुआ
देख कर
किसी को रोज

सीधे रास्ते पर
कुछ कुछ
हमेशा ही
टेढ़ा मेढ़ा

प्यार पर
दो शब्द
लिखने की
चुनौती
या
ललकार देकर

किसी ने
पता नहीं
जाने अंजाने में
या सच ही में
जान बूझ कर
जैसे हो छेड़ा

प्यार पर
तो लिख रहा है
हर जगह हर तरफ
पूरा का पूरा संसार

पढ़ रहा है
उस प्यार को भी
आ आ कर कई बार
प्यार से

सारा संसार
फैला हुआ हो जो
अथाह
एक समुद्र जैसा
मन में सब के
इस पार से उस पार

उस पर
कैसे लिखे
वो प्यार पर
बस दो शब्द केवल

जिसके दिमाग में
हर वक्त
चलता रहता हो
कोई ना कोई
उतपाती कीड़ा

प्यार पर लिखते हैं

विशेषज्ञ
प्यार में
माहिर प्रवीण या दक्ष

बिना
देखे सुने कुछ भी
अपने आस पास

सोच कर
महसूस कर
कुछ ऐसा ही खास

जिसमें होती भी है
और नहीं भी कोई पीड़ा

‘उलूक’ को
लिखने की
आदत है

रोज की
दिनचर्या

रोज का
देखा सुना सच झूठ

अपना
इसका या उसका

यहाँ
उठाया है उसने
इस बात का
ही जैसे बीड़ा

सबूत है भी
और नहीं भी
इसका

कि
माना जाता है

पर
कहता कोई
नहीं है
उसको येड़ा

प्यार पर
लिखने को
सोचे
दो शब्द

तेरे कहने पर
आज ही जैसे

देख ले
क्या क्या
लिख दिया

जैसे
होना शुरु
हो गया हो

सोच की
लेखनी 
का
मुँह
आकार टेढ़ा।

चित्र साभार: www.clker.com

रविवार, 19 अप्रैल 2015

अपने घर की छोटी बातों में एक बड़ा देश नजर अंदाज हो रहा होता है

एक बार नहीं
कई बार होता है
अपना खुद का
घर होता है और
किसी और का
करोबार होता है
हर कोई जानता है
हर किसी को
उस के घर के
अंदर अंदर तक
गली के बाहर
निकलते ही
सबसे ज्यादा
अजनबी खुद का
यार होता है
खबर होती है
घर की एक एक
घर वालों को
बहुत अच्छी तरह
घर में रहता है
फिर भी घर की
बात में ही
समाचार होता है
लिखते लिखते
भरते जाते हैं
पन्ने एक एक
करके कई
लिखा दिखता है
बहुत सारा मगर
उसका मतलब
कुछ नहीं होता है
उनके आने के
निशान कई
दिखते हैं रोज
ही अपने
आसपास
शुक्रिया कहना
भी चाहे तो
कोई कैसे कहे
नाम होता तो है
पर एक शहर
का ही होता है
शहर तक ही नहीं
पहुँच पाता है
घर से निकल
कर ‘उलूक’
देश की बात
करने वाला
उससे बहुत ही
आगे कहीं होता है ।

चित्र साभार: imgarcade.com

शनिवार, 18 अप्रैल 2015

उसपर या उसके काम पर कोई कुछ कहने की सोचने की सोचे उससे पहले ही किसी को खुजली हो रही थी

‘कभी तो
खुल के बरस
अब्र इ मेहरबान
की तरह’

जगजीत सिंह
की गजल
से जुबाँ पर
थिरकन सी
हो रही थी

कैसे
बरसना
करे शुरु

कोई
उस जगह

जहाँ
बादलों को भी
बैचेनी हो रही थी

खुद की
आवाज

गुनगुनाने
तक ही
रहे अच्छा है

आवाज
जरा सा
उँची करने की

सोच
कर भी
सिहरन
हो रही थी

कहाँ
बरसें खुल के
और
किसलिये बरसें

थोड़ी
सी बारिश
की जरूरत भी
किसे हो रही थी

टपकना
बूँद का
देख कर

बादल से
पूछ लिया
है उसने
पहले भी
कई बार

क्या
छोटी सी चीज
खुद की
सँभालनी

इतनी ही भारी
खुद को हो रही थी

किसे
समझाये कोई
अपने खेत की
फसल का मिजाज

उसकी
तबीयत तो

किसी को
देख सुन कर ही
हरी हो रही थी

उसकी
सोच में
किसी की
सफेदपोशी
का कब्जा
हो चुका है

कुछ
नहीं किया
जा सकता है
‘उलूक’

‘मेरा
बजूद है
जलते हुऐ
मकाँ की तरह’

से यहाँ

मगर
गजल
फिर भी
पूरी हो रही थी ।

चित्र साभार: www.clipartpanda.com

शुक्रवार, 17 अप्रैल 2015

आइना कभी नहीं देखने वाला दिखाने के लिये रख गया

किसी ने
उलाहना दिया
सामने से एक
आइना रख दिया

जोर का झटका
थोड़ा धीरे से
मगर लग गया

ऐसा नहीं कि ऐसा
पहली बार हुआ

कई बार
होता आया है
आज भी हुआ

बेशर्म हो जाने के
कई दिनों के बाद
किसी दिन कभी
जैसे शर्म ने
थोड़ा सा हो छुआ

लगा जैसे
कुछ हुआ
थोड़ी देर के
लिये ही सही

नंगे जैसे होने का
कुछ अहसास हुआ

हड़बड़ी में अपने ही
हाथ ने अपने
ही शरीर पर
पड़े कपड़ों को छुआ

थोड़ी राहत सी हुई
अपने ही अंदर के
चोर ने खुद से ही कहा

अच्छा हुआ बच गया
सोच में पड़ गया
खुद के अंदर झाँकने
के लिये किसके कहने
पर आ कर गया

समझ में आना
जरूरी हो गया
‘उलूक’ उलाहना
क्यों दिया गया

अपने चेहरे को
खुद अपने आइने
में देखने के बदले

कोई अपना आइना
पानी से धोकर
धूप में सुखा कर
साफ कपड़े
से पोंछ कर
तेरे सामने से
क्यों खड़ा
कर गया

जोर का झटका
किसी और का
थोड़ा धीरे
से ही सही
किसी और को
लगना ही था
लग गया ।

चित्र साभार: acmaps.info.yorku.ca

गुरुवार, 16 अप्रैल 2015

‘उलूक’ उवाच पर काहे अपना सर खपाता है

किसी को
कुछ 
समझाने के लिये कुछ नहीं लिखा जाता है

हर कोई 
समझदार होता है
जो आता है अपने हिसाब से ही आता है

लिखे हुऐ पर अगर 
बहुत थोड़ा सा ही
लिखा हुआ नजर आता है

आने वाला 
किसने कह दिया
कुछ लिखने लिखाने के लिये ही आता है

इतनी बेशर्मी होना 
भी तो अच्छी बात नहीं होती है
नहीं लिखने पर किसी के कुछ भी
नाराज नहीं हुआ जाता है

तहजीब का देश है
पैरों के निशान तो होते ही हैं
मिट्टी उठा कर थोड़ी सी सर से लगाया ही जाता है

कोयले का ही एक 
प्रकार होता है हीरा भी
कोयले से कम से कम नमस्कार तो किया जाता है

‘उलूक’ मत 
उठाया कर ऐसे अजीब से सवाल
जवाब देना चाहे कोई तो भी नहीं दिया जाता है

ठेकेदारी करने 
के भी उसूल होते हैं
समझ लेना चहिये
लिखने लिखाने के टेंडर कहा होते हैं
कहाँ खोले जाते हैं
हर बात बताने वाला
एक मास्टर ही हो ऐसा जरूरी भी नहीं है
और माना भी जाता है ।

चित्र साभार: www.mycutegraphics.com