उलूक टाइम्स

शुक्रवार, 21 अगस्त 2015

चढ़े हुऐ के होते हुऐ उतर चुके के निशानों को इस जहाँ में कहाँ गिनते हैं

उस जमाने में
लादे गये फूल
मालाओं से
इस जमाने में
सूखे हुऐ पत्तों
में दबे मिलते हैं
भेष बदलने वाले
अब ही नहीं
बदलते हैं भेष
अपने अपने
जो बदलते हैं
बहुत पहले से
ही बदलते हैं
सब चलाते है
चमड़े के अपने
अपने सिक्के
हरेक के सिक्के
हर जमाने में
हर जगह
पर चलते हैं
बाकी कुछ
आम खास
कुछ खास
आम हो कर
हर जमाने में
किसी ना किसी
पतली गली से
चल निकलते हैं
इस देश में
देश प्रेम गीत
बहुत बनते हैं
बनते ही नहीं
खूब चलते है
तेरी नजरे
इनायत ‘उलूक’
तब उन पर हुई
किस को पड़ी है
अब देखते है
उसकी किस्मत को
जिस गधे के सिर
पर सींग आजकल
में ही एक नहीं
कई कई निकलते हैं
एक साथ निकलते हैं ।

चित्र साभार: imageenvision.com

गुरुवार, 20 अगस्त 2015

उसके कुछ भद्दे कहे गये पर बौखलाने से कहीं भी कुछ भी नहीं होता है

तुम्हारे
बौखलाने से
अगर उसे
या
उसके जैसे
सभी अन्य
लोगों को
कोई असर
होने वाला होता
तो वो पहले ही
कोशिश करता

एक
भद्दा गाना
नहीं गाता
ऐसा एक ना
एक गाना
रोज ही
उसके ही किसी
स्टूडियो में
जानबूझ कर
तैयार किया
जाता है

और उसकी
जैसी सोच के
सभी लोगों
की सहमति
के साथ
उसके ही
बाजार में
पेश कर
दिया जाता है

तुम सुनो
ना सुनो
नाक भौं
सिकौड़ो
उसे कोसो
गालियाँ दो
अखबार
में लिखो
आकाशवाणी
दूरदर्शन
में खुली
बहसें रखो
ब्लाग में
पोस्ट करो
उसके बाद
चर्चा में
उसे लाकर
सजाकर धरो

इसके गुस्से
पर किसी
उसकी टिप्प्णी
उसके
खिसियाने पर
किसी इसकी
झिड़कियों
को पढ़ो
कुछ लिखो

होना कुछ
नहीं है
सारी
मसालेदार मिर्ची
भरी तीखी
फूहड़ बातें
करते समय
उसके दिमाग
में अपने जैसे
उसके सभी
वो लोग होते हैं
जिन्होने उसे
और उसके
जैसे लोगों को
ताज पहना कर
बादशाह
बनाया होता है

और
उनकी
अपेक्षाओं में
खरा उतरने
के लिये बहुत
जरूरी होता है

कुछ ऐसी भद्दी
बात कर देना
जिससे
कहीं ना कहीं
कोई नंगा होता है

और इसी सीढ़ी
पर चढ़ कर
उसे अगली बार
कुर्सी पर
चढ़ना होता है

इसलिये
फिर से सुन लो
थोड़े तुम्हारे
हमारे जैसों
के बौखलाने
से उसके
और उसके
समर्थकों का
हौसला बुलंद
ही होता है

हम्माम
भी उसका
पानी भी
उसका
नहाना
उसमें उसे
और उसके
जैसे लोगों
को ही होता है

उसके कुछ
भद्दे कहे गये
पर बौखलाने
से कहीं भी
कुछ भी
नहीं होता है ।

चित्र साभार: www.123rf.com

बुधवार, 19 अगस्त 2015

सरकारी स्कूल में जरूरी है अब पढ़ाना कोर्ट का आदेश है शुरु होना ही है शुरु हो भी जायें

ओ मास्साब
क्षमा करें
ओ मास्टरनी
भी कहा जाये
सारे पढ़ाने वाले
अपने उपर
इस बात को
ना ले जायें
यू जी सी के
प्रोफेसरान
बिल्कुल भी
ना घबरायें
अपनी मूँछों
में मक्खन
तेल लगायें
अगर मूँछे
नहीं हैं बहुत
छोटी सी
बात है
बस एक
मजाक है
परेशान भी
नजर नहीं आयें
सरकारी है
गैर सरकारी है
कान्वेंट का है
कहाँ का
पढ़ाने वाला है
बस इतना
ही यहाँ बतायें
तन्खा रोटी दाल
में घीं डालने
के लिये मिल
ही जाती है
उसके उपर
का तड़का
कहाँ से क्या क्या
करके लाते हैं
जरा जनता को
भी कभी समझाँयें
इंकम टैक्स वाले
भी जरा नींद से जागें
बस बीस करोड़
खाने वालों को छोड़ कर
कभी बीस बीस कर बीसों
जोड़ लेने वालों की
तकियों के नीचे
भी झाँक कर आयें
उत्तर प्रदेश के कोर्ट
के आदेश से जरा
भी ना घबरायें
पूरे देश में ना फैले
ये बीमारी जतन
करने में लग जायें
लगे रहें इसी तरह से
पढ़ाई की क्वालिटी
के ज्ञान विज्ञान
पर चर्चा कर दुनियाँ
को बेवकूफ बनायें
कोई नहीं भेजने
वाला है अपने पूत
कपूतो को कहीं भी
दाल भात बटने वाले
सकूल में बिना इस
देश के भगवान
से पूछे पाछे
इस तरह की अफवाह
कृपया ना फैलायें
‘उलूक’ की तरह रोज
नोचें एक खम्बा कहीं
अपने ही किसी
खम्बों में से ही
देश को इसी तरह
खम्बों के जुगाड़ से
उठाने का जुगाड़
लगाने का जुगाड़
बनायें और बनाते
ही चले जायें
दाऊद बस ये आया
आ गया ये
पकड़ा गया
बस सोचें और
खुल कर मुस्कुरायें।

चित्र साभार: magnificentmaharashtra.wordpress.com

मंगलवार, 18 अगस्त 2015

एक रंग से सम्मोहित होते रहने वाले इंद्रधनुष से हमेशा मुँह चुरायेंगे

अपने
सुर पर
लगाम लगा

अपनी
ढपली
बजाने से
अब
बाज
भी आ

बजा
तो रहा हूँ
मैं भी ढपली
और
गा भी
रहा हूँ कुछ
बेराग ही सही

सुनता
क्यों नहीं

अब सब
अपनी अपनी
बजाना शुरु
हो जायेंगे तो

समझता
क्यों नहीं
काँव काँव
करते कौए
हो जायेंगे

और
साफ सफेद
दूध से धुले हुऐ
कबूतर फिर
मजाक उड़ायेंगे

क्या करेगा
उस समय

अभी नहीं सोचेगा
समय भूल जायेगा
तुझे
और मुझे

फिर
हर खेत में
कबूतरों की
फूल मालाऐं
पहने हुऐ
रंग बिरंगे
पुतले
नजर आयेंगे

पीढ़ियों दर
पीढ़ियों के लिये

पुतलों पर
कमीशन
खा खा कर

कई पीढ़ियों
के लिये
अमर हो जायेंगे

कभी
सोचना
भी चाहिये

लाल कपड़ा
दिखा दिखा कर

लोग क्या
बैलों को
हमेशा
इसी तरह
भड़काऐंगे

इसी तरह
बिना सोचे
जमा होते
रहेंगी सोचें

बिना
सोचे समझे
किसी एक
रंग के पीछे

बिना रंग के
सफेद रंग
हर गंदगी को
ढक ढका कर

हर बार
की तरह

कोपलों को
फूल बनने
से पहले ही

कहीं पेड़ की
किसी डाल पर

एक बार
फिर से

बार बार
और
हर बार
की तरह ही

भटका कर
ले जायेंगे ।

चित्र साभार: www.allposters.com

सोमवार, 17 अगस्त 2015

चलचित्र है चल रहा है मान ले अभी भी सुखी हो जायेगा

जो परेशान है
वो उसकी
खुद की खुद के
लिये बोये गये
बीज से उसी
के खुद के खेत
में उगा पेड़ है
इसमें कोई कैसे
मदद करे जब
कोई भी सामने
वाला दिखता
एक है भी तब भी
एक नहीं है डेढ़ है
घर से शुरु करें
आस पास देखें
या शहर जिले
राज्य और देश
कहीं छोटी कहीं
थोड़ी बड़ी और
कहीं बहुत ही
विकराल समझ की
घुसेड़म घुसेड़ है
बहुत आसान है
समस्याओं के
समाधान किसी
और के नहीं
सब कुछ तेरे
और केवल तेरे
ही खुद के ही हाथ
से तेरे खेत की ही
बनी एक मेढ़ है
मान क्यों नहीं लेता है
चल रही है पर्दे पर
एक फिल्म बहुत बड़े
बजट की है और बस
हीरो ही हीरो है बाकी
उसके अलावा सब कुछ
यहाँ तक तू भी एक
बहुत ही बड़ा जीरो है
सारी समस्यायें चुटकी
में हल हो जायेंगी
दिखाये देखे सपने की
दुनियाँ फिल्म देखने
के दरम्यान के तीन
घंटे की बस एक
फिल्म हो जायेगी
हर सीन वाह वाह
और जय जय का
होता चला जायेगा
कैसे नहीं दिखेगा
आयेगा नहीं भी
तब भी फिल्म का
अंत सकारात्मक
कर ही दिया जायेगा
बिना टिकट खरीदे
फिल्म देखने का
आदी हो जायेगा
अच्छे दिन से
शुरु होगा दिन हमेशा
बिना बीच में रात
के आये ही अच्छे
किसी दिन पर जाकर
पूरा भी हो जायेगा
‘उलूक’ ने देखनी
शुरु कर दी है फिल्म
पूरी होनी ही है
पूरी हो भी  जायेगी
बिना देखे देखने की
आदत हो गई हो जिसे
कुछ देख के दिख जायेगा
तो बताने के लिये
वापिस भी जरूर आयेगा ।

चित्र साभार: www.hyperlino.com